सच्चा मोती
सच्चा मोती
गांव में सब उन्हें खेदन बाबा के नाम से जानते हैं। सीधे साधे, मेहनतकश और मृदुभाषी हैं । हमेशा सफेद धोती और कुर्ता पहनते हैं। मिट्टी का खपरैल पुश्तैनी घर है। जिसे वो और उनकी पत्नी अपने मेहनत के बल पर अभी तक खड़ा रखा है। थोड़ी सी ज़मीन है खेती-बाड़ी करने के साथ-साथ मजदूरी का कार्य भी करते हैं।
उनका एक बेटा है जिसे जी तोड़ मेहनत करके उन्होंने इंजीनियर बनाया।
बेटे को नौकरी मिल गई तो उन्होंने चैन की सांस ली, ईश्वर को सौ बार शीश नवाया |उनकी मेहनत सफल हो गई। उन्होने बेटे की शादी बड़ी धूपधाम की, बहू भी बहुत सुशील मिली। बेटा जब भी छुट्टियों में आता उन्हें खेती बाड़ी में हाथ बंटाता। कौन सी फसल लगाओ, कौन सी बीज डालो, जैविक खाद डालो वह पिता को बताता रहता। कभी-कभी खेदन बाबा अपने बेटे सोहन से कहते हैं-का रे सोहना तू इंजीनियरिंग का पढ़ाई किया है की किसान का?
वह मुस्कुरा देता आखिर हूँ तो किसान का ही बेटा।
बाबा मेरा मन इंजीनियरिंग में नहीं लगता, आप को यहां अकेले छोड़ कर जाने का जी नहीं करता और आप की जिद्द है कि आप गांव छोड़ कर कहीं जायेंगे ही नहीं। मुझे ही कुछ करना पडे़गा, मैं ही आ जाऊँगा, मेरा मन भी खेती-बाड़ी में लगता है।
ऐसा सोचना भी मत सोहना? ईमे कउनो फायदा नहीं है और मेहनत जी तोड़ करना है।
पिछले साल सोहन एक सप्ताह पर्ल फार्मिंग की ट्रेनिंग भुनेश्वर में किया और नौकरी छोड़कर घर आ गया। पिता बहुत समझाएं मगर वह अपने इरादे में टस से मस ना हुआ।
खेदन बाबा ने कहा ...यहां पीने का पानी तो चार मटका तेरी मां सरकारी बोरिंग से ले आती है तेरे सीप पालन के लिए इतना पानी कहां से आएगा और मेरे पास इतना पैसा भी नहीं की बोरिंग करवा सकूं।
सोहन ने कहा बाबा आप चिंता ना करो, इसमें ज्यादा खर्च नहीं है, मैं सब कर लूंगा। उसने 10 फीट गहरा चकोर गड्ढा बनवाया। एक बड़ी सी प्लास्टिक गड्ढे को चारों तरफ से कवर कर दिया, ताकि किसी तरफ से मिट्टी पानी ना खींच सकें। मानसून आया, इंद्रदेव जमकर बरसे और इसके साथ ही सोहन के सपनों को पंख मिल गए.....सोहन ने ढेर सारे सीप को उपचारित कर भोले बाबा का नाम लेकर गड्ढे में डाल दिया। बाकी बची जमीन में सूर्यमुखी और गेंदे की फसल लगवा दी ।6 महीने बाद डिज़ाइनर मोती तैयार हो गए। गोल मोती के लिए कुछ सीपों को छः माह और छोड़ दिया |इससे उसकी लगभग 7लाख की आमदनी हुई । खेदन बाबा बेटे की सूझबूझ पर गदगद हो गए। इस बार कई और गड्ढे बनाए गए, जिसे सीमेंटेड कराया गया, लेकिन पुराने गड्ढे को बिल्कुल वैसे ही रखा सोहन ने, 1 साल में ही सोहन ने पक्का मकान लिया बोरिंग भी करवा लिया ।
इस वर्ष जब कोरोना का संकट गहराने लगा, शहर बंद हो गया लोग घर लौटने लगे, गांव लौटने लगे, तो खेदन बाबा ने राहत की सांस ली बेटा तूने बिल्कुल सही निर्णय लिया था| हम सब साथ भी हैं, सुखी भी और अब धन की भी कोई कमी नहीं।
मानसून सही समय पर आया बिजली कड़कती रही और लगातार 2 दिनों तक वर्षा होती रही। किसानों के चेहरे खिल उठे वह हल, बैल, भैंसा, कुदाल लेकर खेत की ओर चल पड़े। सोहन भी अपने बाबा के साथ खेत की जुताई के लिए निकल पड़ा। बाबा जानते हो ये बादल सृजन भी और विध्वंस भी...तेरी बड़ी बड़ी बातें मैं न समझ पाती रे। सोहन ने कहा -बाबा अब आप मेहनत मत किया करो आप बैठो मैं सब कर लूंगा जरूरत पड़ी तो यह तो आदमी रख लूंगा।
खेदन बाबा ने कहा बेटा अभी मेरे हाथों में काम करने की क्षमता है धरती मां की सेवा करने की शक्ति है अभी मैं नहीं बैठ सकता। दूसरे दिन दोनों ने मिलकर फूलों के पौधों को करीने से लगा दिया।
देखना बाबा इस बार और अच्छे फूल आएंगे और अच्छी आमदनी होगी ।
जानता हूं बेटा यह तुम्हारी समझदारी और मेहनत है जो फूलों के रंग में ढ़ल जानी है ।
सोहन तेरा सीपों वाला गड्ढा भी भर गया होगा।
हां बाबा आज ही सीप उपचारित करके गड्ढे में डाल दूंगा।
सुन सोहन! इस बार मुझे भी सीप उपचारित करना सिखा दे । मैं भी तेरी तरह समझदार किसान बनना चाहता हूं ।
दोनों खिलखिला कर हंस पड़े।