Shakuntla Agarwal

Abstract Others

4.0  

Shakuntla Agarwal

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"तनाव"

"तनाव"

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मालती विवेक के पैरों में लिपटी हुई थी और वह उसे दुत्कार रहा था | अपने दूसरे पैर से उस पर बराबर प्रहार कर रहा था, परन्तु मालती ने पूरी ताकत से उसके पैर को जकड रखा था और वह रोती जा रही थी और बुदबुदा रही थी कि मेरा दिल घबराता है, मुझे अच्छा नहीं लगता, मुझे रातों को नींद नही आती।

किसी डाक्टर से परामर्श ले लो | अगर किसी डाक्टर के पास जायेंगें तो लोग़ क्या कहेंगे, कि मेरी बीबी पागल हो गयी तो कुछ नहीं, मालती ने कहा -परन्तु आज आफिस  मत जाओ |  विवेक ने अपने हाथों से मालती की जकड़न कम की ओर चिल्लाते हुये कहा -अगर आफिस नहीं जाऊँगा तो खायेंगे क्या भूखे मरेंगे -भूख़े ,  यह सब नाटक मेरे साथ नहीं चलेगा कहते हुये सीढ़ियाँ उतरते हुये नीचे चला गया और मालती सिसकती रही। रात को उसके मन में आया कि क्यों ना अपने आपको खत्म कर दूँ। मालती का मन किया क्यों ना ऊपर से द्दलांग लगा दूँ, परन्तु उसने अपने आप को संयत किया, उसने अपने गले में चुन्नी का फंदा भी लगाया परन्तु विवेक ने उसे ढ़ीला करा दिया और मालती को एक चाटा जड़ दिया कि तुम जानती भी हों तुम क्या करने जा रही हों।

लेकिन मेरा मानसिक संतुलन सही नहीं है आप मुझे किसी डाक्टर को दिखा दें। विवेक - ये नहीं हो सकता समाज में मेरी भी कोई इज्जत है मैं उसे धूल में नहीं मिला सकता। मालती सोच रही थी की काश.! उसने इस निर्मोही से प्यार नहीं किया होता जिसको अपनी ही भावनाओं की कद्र है, मालती अपनी पुरानी यादों के समुन्दर में गोते खाने लगी कि वह अपने मायके में कितनी लाडली थी उसकी एक फ़रमाईश पर सब हाजिर और अब उसकी ये बेकद्री मायके वालों को इसकी भनक लग गई वो उसको लिवाने आ गए। मालती - भैया मैं विवेक के बैगर नहीं रह सकती। भैया-भाभी ने अच्छे से समझाया की वो किसी डाक्टर से इलाज करवायेंगे और माहौल भी बदलेगा। उन्होंने विवेक को भी बहुत समझाया - जीजा जी आप थोडे दिन के लिये चल पड़ो शायद ये ठीक हो जाए परन्तु विवेक टस से मस नहीं हुआ सो वह मालती को लेकर चले गये। वह बच्चों को साथ लेकर मायके चली गई।

वहाँ उसे मनोचिकित्सक को दिखाया गया, हल्का सा अवसाद बताया गया | दवाईयां शुरू हो गई परन्तु मालती का विवेक के प्रति जुनून कम नहीं हुआ।वह विवेक को याद करके रोती रहती तो ये ऩिर्णय लिया गया कि मालती की भाभी मालती के साथ वहां जा कर रहेंगी और वहीं के डाक्टर से उसका इलाज करवाया जायेगा। धीरे धीरे सबकी मेहनत रंग लाई | मालती अपने दिमागी फतूर के मकड़जाल से बाहर आ गई |

परन्तु मैं ये कहना चाहती हूँ कि ये हादसे किसी के साथ भी हो सकते हैं। हमें बीमार के प्रति उदार नजरिया अपनाना होगा जैसे और बीमारियाँ परामर्श करने से ठीक हो जाती है, वैसे ही यह भी एक बीमारी है,  झाड-फुंक के चक्र में ना पड़े। बीमार की मनोस्थिति को समझे उसे जरूरत होती है प्यार और अपनेपन की | दुनिया क्या कहेंगी की परवाह ना करके उसका ईलाज करवायें उसे ममत्व की छाया दें | कितने लोग अवसाद के कारण आत्महत्या कर लेते हैं | हमारे देश में  एक साल में डेढ़ से दो लाख लोग आत्महत्या कर लेते हैं। इसमें कमी नही आना बेहद चिन्ताजनक है। एनसीआरबी की 'भारत में आकस्मिक मौतें एवंआत्महत्याएं-2021' से साफ है कि रिश्तों में टुटन, पारिवारिक कलह, आर्थिक उतार-चढ़ाव भी अवसाद और आत्महत्या के कारण हैं।


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