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Shakuntla Agarwal

Abstract Others

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Shakuntla Agarwal

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"माँ की ममता"

"माँ की ममता"

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डा० साहिब ने आकर कहा - मुबारक हो नवीन! अब किडऩी मिल जायेंगी और उसकी कमर पर थाप लगाते हुये हस दिये - लो और जीयो अपनी जिन्दगी के पल, सपने सजाओ जो तुमने सोचे हैं| परन्तु नवीऩ गम्भीर मुद्रा में अब भी बैठा था| उसे समझ नहीं आ रहा था की क्या प्रतिक्रिया दे| वह हसे या रोये, क्योंकि जो उसे किडनी देने वाला था वो कोई और नहीं उसकी अपनी माँ थी, उसे लगा मैं तो बच जाऊंगा, परन्तु मेरी अपनी माँ मेरे लिये कितना बड़ा त्याग करने जा रही हैं? उसने एक पल को भी नहीं सोचा की वह अपने शरीर का कितना कीमती हिस्सा मुझे देने जा रही है, उसे तो बस एक ही जुनून है - मेरे बेटे को बचा लो चाहे मेरे शरीर का एक - एक खून का कतरा ले लो। जैसे ही उसे पता चला बेटे की किडनी खराब हैं, डाक्टर साहिब के कदमों पर गिरकर गिड़गिड़ाने लगी - हम गरीब लोग हैं, हमारे पास इतना पैसा नहीं हम किडनी खरीद सकें, किडनी तो क्या दो वक्त की रोटी के फांके हैं|

डा ० साहिब आप मेरा और नवीन का मिलान करेंगे तो पायेंगे की मेरी किडनी नवीन को लग सकती है| हम तो आई खेती है, न जाने कब जिन्दगी की शाम हो जाये, उसका अभी भरा - पूरा जीवन हैं, वह हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाए जा रही थी और उसका परिणाम यह

हुआ की नवीन की किडनी ट्रांसप्लांट की राह आसान हो चली थी। आज वह रो-रोकर बेहाल थी क्योंकि जिस नवीन को उसने अपनी किडऩी देकर क्रूर काल के हाथों से छीन लिया था, आज वहीं नवीन कोरोना वायरस की भेंट चढ़ गया| क्रूर काल नवीन को छीनकर लें गया और वह हाथ मलती रह गई| काश! मैं पहले की तरह अपऩे बेटे को बचा पाती|

वह बार-बार रो रोकर बेहोश हो रही थी और उसके सगे-सम्बन्धी उसे समझाने में लगे थे, तुमने जो बलिदानी दी थी, शायद ही कोई दे, तुम धन्य हो, तुम्हें

नमन है ,पर वह जोर-जोर से दहाड़े मार कर कह रही थी - परन्तु मेरी बलिदानी का क्या मोल? मेरा बेटा तो चला गया। उसके बदले मैं क्यों ना चली गई| उसके बीबी-बच्चों का कुरुदन क़ैसे सह पाऊंगी? माँ के होते बेटे की अर्थी। ये कोरोना कितनों का घर उजाड़ कर दम लेगा? इसमें ना पैसा, ना रुतबा और ना ही रिश्ते काम आ रहे हैं, यह तो नियति का कोई चक्रव्यूह लगता है जिसमें इन्सान फंसता जा रहा है और उसे अभिमन्यु की तरह बाहर निकलने का रास्ता नजर नहीं आ रहा है| भगवान - जैसे तुमने मेरे घर के चिराग को बुझाया, वैसे किसी के घर के चिराग को मत बुझाना| सबकी आँखों की रोशनी और बुढ़ापे की लाठी बनी रहे।



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