"रूप की रोय भाग्य की खाये"
"रूप की रोय भाग्य की खाये"


उर्वशी यही नाम देना चाहुंगी मैं उस कमसिन हसीना को! तीखे नैन-नक्श ,घने बाल, छरहरे बदन की सुन्दर बाला, विनोद उसे घुमाने लेने आने वाला था। एक ही शहर में दोनों का परिवार घरवालों की रजामन्दी से रिश्ता तय हुआ था, वह अब जयपुर जब आता उसे घुमाने ले जाता और वह भी राह तकती कि विनोद आयेगा और हम साथ घुमने जायेंगें, मस्ती करेंग़े। उसका चंचल मन हिलोरें लेने लगता। विनोद के नाम से ही उसके शरीर के रोम-रोम प्रफुल्लित हो उठते। उसके बदन में एक अजीब सी सिहरन दौड़ने लगती। उस का मन सोच में डूबा ही हुआ था की गाड़ी का हॉर्न सुनाई दिया। वह भाग कर बाहर आई। उर्वशी की नजरें जैसे ही विनोद की नजरों से मिली, वह कातुर हिरनी जैसे तिलमिला उठी, जो कस्तुरी की खोज में घुमती रहती है। धड़कते दिल के साथ विनोद को निहारने लगी। इतने में उर्वशी की मम्मी बाहर आ गई।
उर्वशी की मम्मी - अरे बेटा विनोद, बाहर ही कैसे रह गये अन्दर चलो।
विनोद - नहीं मम्मी, अभी मैं उर्वशी को लेने आया हूँ शाम को देखता हूं।
उर्वशी की मम्मी - वो तो मुझे भी पता हैं, परन्तु कभी तो पांच मिनट हमारे लिये भी निकाल लिया करो। उर्वशी विनोद के साइड़ में बैठ जाती है, दोनों नजरों-
नजरों में कुछ बातें करते हैं और रवाना हो जाते हैं। जैसे ही गाड़ी स्टार्ट होकर थोड़ी दूर जाती है, विनोद उर्वशी का हाथ दबाता है और उठा कर चूम लेता है।
विनोद - उर्वशी आज तो तुम कहर ढ़ा रही हो, पिंक कलर तुम पर खूब फब रहा है, तुम जैसे ही बाहर आई मेरी नज़रें तुम्हारे से हटने का नाम नहीं ले रही थी। दिल में एक कसक़ सी उठी काश ! तुम्हें आगोश मे ले सकता। हाथ उठाकर दो बार चूम लेता है, वो भी थोड़ा विनोद की तरफ खिसक जाती है, जैसे वह विनोद को यह सब करने की हामी भर रही हो। तुम्हें इजाजत है यह सब करने की। दोनों ऐश् करके घर वापिस आ जाते हैं, विनोद घरवालों से गप्पे लगा कर चला जाता है, जब विनोद को एकांत मिलता है तो वह उर्वशी को अपनी बाहों में जकड़ लेता है और उसके माथे को चूम कर कहता है, ये जुदाई के पल अब कटते नही हैं, जाने अब कब मिलना होगा। घरवाले हमारी शादी की तारीख जल्दी से निकलवा क्यों नहीं देते ताकि ये इन्तजार खत्म हो।
ऐसे ही मिलते जुलते 9-10 महीने निकल गए। अब वो घड़ी भी आ पहुंची जिसका विनोद और उर्वशी को इन्तजार था। अब उर्वशी अपने पापा द्वारा दी गई गाड़ी में विनोद के घर के सामने थी। दोनो परिवारों की खुशी का ठिकाना नहीं था, दोनों की ही मन मांगी मुरादें पूरी हो गयी थी, शाम को विनोद के घरवालों ने रिसप्सन रखा था। विनोद का परिवार शहर का प्रतिष्ठित परिवार था। दोनों ही आज बहुत सुन्दर लग रहे थे। उर्वशी ने विनोद की पसंद का गुलाबी रंग पहना था, वह गजब की खूबसूरत लग रही थी, सुन्दर तो वो थी ही पार्लर वाली ने और चार-चाँद लगा दिए।
उन दोनों की जोड़ी खूब फब रही थी। दोनों को साथ देखकर विनोद की मम्मी ने बलाये ली कि किसी की नजर ना लग जाए। कुर्सी पर बैठे हंसी -ठिठोली कर रहे थे, इतने में विनोद के कुछ साथियों ने प्रवेश किया। जिनमें लड़कियाँ भी थी, आते ही एक लड़की ने विनोद के कंधे पर हाथ रखा और कहा - शादी की इतनी भी क्या जल्दी थी और करनी भी थी तो हम मर गए थे क्या? जो इस बच्ची को उठा लाया और वह विनोद को एकांत में ले गए जहां शुरु हुआ दौरे जाम।उर्वशी कुर्सी में धसी अपलक उन्हें ही घूर रही थी, विनोद अब आये या अब, परन्तु वह नहीं आया। उर्वशी को अकेले बैठना बड़ा दूभर हो रहा था। उसे यह नागवार था की नई नवेली दुल्हन उसका इन्तजार कर रही है और वह मौज मस्ती में लगा है। उर्वशी ने अपनी नन्द को बुलाया और कहा - प्लीज, विनोद को बुला दो, अकेले बड़ा अजीब सा लग रहा है। अरे, कर लेने दो मस्ती, रात तो आपकी ही है, कहां जायेगा आपको छोड़कर और आँख और कंधे से कंधा मारकर चली जाती है।
पार्टी खत्म हो गई उर्वशी के घरवाले भी चले गये। उर्वशी को एक सजे हुए कमरे में पलंग पर बिठा दिया गया, जैसे ही उसने विनोद के पैरों की आहट सुनी उसने अपने पल्लू को थोड़ा नीचे सरका लिया और कनखियों से विनोद को वह निहारने लगी, वह अगर उर्वशी लग रही थी तो विनोद भी कामदेव से कम नहीं लग रहा था, हष्ट-पुष्ट शरीर ,चौड़ा माथा, चौड़ी छाती, सांवली-सलोनी सूरत, उस पर सिक्स पैक, वह देखती ही रह गई।
उर्वशी ने विनोद को इस रुप में पहली बार देखा था, वह ऐसी मन्त्र-मुग्ध हुई उसका दिल आपे से बाहर हो गया, ऐसा लग रहा था काहे की लाज -शर्म उठ कर बाहों में भर लूँ और चूम लूँ ,परन्तु ये क्या विनोद उसके पास ना आकर दूसरी तरफ पलंग पर पीठ कर के सो गया। निढ़ाल हो गया। उर्वशी रुआंसी सी होकर विनोद को कहने लगी - यार, तुमने स्टेज पर भी मुझे अकेला छोड़ दिया और अब भी ये बेरुखी, विनोद क्या है यार, लड़का-लड़की इस दिन का कितना बेसब्री से इन्तजार करते हैं। तुम्हें हुआ क्या है? विनोद कुछ नहीं बस तुम अभी सो जाओ, दिमाग खराब मत करो।
उर्वशी - विनोद कैसे सो जाऊँ, मेरी आज सुहागरात है हमारे जीवन में फिर नहीं आने वाली तुम तो इस दिन के लिए बहुत उत्साहित थे अब क्या हुआ ?उर्वशी मुस्कुराते हुये गाना गाने लगती है कभी -कभी मेरे दिल ये खयाल आता है सुना कर विनोद के सीने पर अपना सिर रख कर उसे आलिंगन में लेने की कोशिश करती है इतने में विनोद उसे अपने से दूर करते हुये ये क्या बचकाना हरकत है उर्वशी मेरी दोस्त ठीक ही कह रही थी कोई और नही मिली थी तुम्हें शादी करने के लिये जो इस बच्ची से शादी कर ली कहते हुये पीठ घुमाता है और दुसरी तरफ मुंह कर के सोने की कोशिश करने लगता है। उर्वशी विनोद तुम तो मेरे कितने दीवाने थे । चांद तारे तोडने की बात करते थे और अब इतनी बेरुखी क्या हो गया और सुबकने लगती है थकी हुई तो थी ही रोते -रोते उसकी कब आंख लग गई उसे पता ही नही चला । विनोद की बहन नेहा ने जब आकर दरवाजे पर दस्तक दी, तब जाकर उसकी निद्रा टूटी। उर्वशी ने जैसे ही दरवाजा खोला सामने नेहा चाय की ट्रे लेकर खड़ी थी।
नेहा - उन्हीं कपडों में सो गई, इतनी भी क्या बेसब्री कपड़े तो बदल लिए होते, अपना कंधा उर्वशी के कंधे पर मारकर हंसने लगती है। उर्वशी भी कनखियों से देखती है और मुस्कुरा देती है।
नेहा - भाभी जल्दी से चाय पी लो और झटपट से तैयार होकर नीचे आ जाओ, कुछ रीति-रिवाज होने हैं। मोहल्ले की औरते भी सरगुंदी और मुंह दिखाई के लिए आना शुरु हो जायेंगी।
उर्वशी राहुल के लिये चाय डालने लगती है, परन्तु ये क्या राहुल बिना चाय पीये नीचे चला गया। उर्वशी देखती ही रह गई ऐसा हुआ क्या है?
मैंने तो ऐसा कुछ नहीं किया फिर ये बेरुखी क्य़ों? उर्वशी नीचे आती है कुछ घण्टे उसके रीति-रिवाज़ो और गप्पे लगाने में निकल जाते हैं। परन्तु उसका दिल बेचैन है, जैसे कोई अनहोनी होने जा रही है। आखिर उसका दिल इतना बेचैन क्यों है? उसने अपनी ननद नेहा से पुछा उर्वशी - नेहा दीदी, आपके भाई कहीं दिखाई नहीं दे रहे, सुबह से नजरें दौड़ा रही हूं।
नेहा - अरे भाभी, इतनी बेचैन क्यों हो रही हो? यहीं कहीं होग़ा कहां जायेगा तुम्हें छोडकर, पल्लू से बाधंने का इरादा है क्या? भाई ने ऐसा जादू कर दिया आप दिन में भी बेचैन नजर आ रही हो। रात दोऩों को कम है क्या? वह खिलखिला पड़ती है।
उर्वशी भारी मन से सीढिय़ाँ चढ़ने लगती है और आकर अपने बै
ड पर धम से निढाल हो जाती है, ऐसा लग रहा था जैसे उसके शरीर में जान ही नहीं है। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। सांसे जैसे उखड़ रही हों। उसकी नजरें दरवाजे को निहार है की राहुल कमरे में आये तो वह पूछे की आखिरकार हुआ क्या है? वह उससे इतना खफा क्यों है?
उर्वशी पूरा दिन इन्तजार करती रही, पर वह कहीं दिखाई नहीं दिया, रात को खाने की मेज पर ही दिखा। उर्वशी सीढ़ियां उतर रही थी, तब राहुल और उर्वशी की नजरों ने रसास्वादन किया, परन्तु ये क्या राहुल मुँह फेरकर दूसरों से बातें करने में मशगूल हो गया।
नेेहा - आओ भाभी, कुर्सी खींचकर उसे राहुल की बगल में बिठाती है, इतने में अन्दर से राहुल की मम्मी की आवाज आती है - तुम दोऩो का खाना एक साथ परोस दूँ?
राहुल - नहीं मां, संग मत परोसो, मैं खा नहीं पाउँगा, आधा भूखा रह जाऊँगा। दोऩों खाना खाते हैं और अपने कमरे में चले जाते हैं। उर्वशी बहुत सुन्दर लग रही थी, उस पर कथई रंग की साड़ी खूब फब रही थी, पर राहुल ने उसकी तारीफ में एक शब्द नहीं बोला, बल्कि मुँह घुमाकर सो गया, जैसे उसे उर्वशी को जानता ही ना हो।
नेहा ने झीने कपड़े का नाइट गाउन पहना और वह राहुल के बगल में आकर लेट गई, परन्तु राहुल का मुँह दूसरी दिशा में ही रहा, उर्वशी ने राहुल के बालों में उंगलियाँ घुमाते हुए कहा - पूरा दिन आँखे तुम्हें देखने के लिए तरस गई, कहां थे?
राहुल ने हाथ झटकते हुये - क्या मुझें अब एक-एक पल का हिसाब देना होगा? मुझे ऐसा पता होता तो शादी ही नहीं करवाता, मैं तो शादी करके पछता रहा हूँ।
उर्वशी - मैंने ऐसा क्या कह दिया जो इतना भड़क रहे हो? पहले तो मेरी तारीफ के पुल बांधते नहीं थकते थे, चांद तारे तोड़ने की बातें करते थे और अब ये बेरूखी जिस सुहागरात का जोड़े बेसब्री से इन्तजार करते हैं, तुमने मुझे छुआ तक नहीं, फिर ये नीरसता?
राहुल - मुझे नहीं चाहिए, तुम्हारे ये चोंचले, चुप करके सो जाओ, आवाज कोई सुनेगा तो क्या कहेगा? बकबक करना बन्द करो।
नेहा सुबकने लगती है, पहले तो मेरी आवाज कोयल जैसी लगती थी और अब मैं बक रही हूँ। राहुल प्लीज बताओ क्या हुआ है?
राहुल - कुछ नहीं तुम सो जाओ, नाटक करना बंद करो।
उर्वशी - राहुल का हाथ पकड़कर झिझोंडने लगती है, प्लीज राहुल बताओ क्या हुआ है? राहुल हाथ छुड़ाते हुए, ये क्या बदतमीजी है, एक बार कह दिया ना तुम भी सो जाओ और मुझे भी सोने दो। मुझे बेकार के नाटक पंसद नहीं, रोकर मुझे डराने की कोशिश मत करो, मैंने बहुत रोने वाले देखे हैं और अपने मैयके की धौंस भी मुझे मत दिखाना, मैं किसी से डरता -वरता नही हूँ। कहकर सोने का नाटक करने लगता है।
उर्वशी रोते-रोते कब खाव्बों की नगरी में पहुंच गई उसे पता ही नहीं चला। सुबह जब उसकी नन्द नेहा ने आकर दरवाजा खटखटाया तब उसकी तन्द्रा टूटी। वह जल्दी से उठकर हड़बड़ी में दरवाजा खोलती है और नेहा को खिल-खिलाते हुये पाती है। क्या भाभी, यार इतनी भी बेसब्र मत होओ, रात तुम्हारी है पन दिन हम सबका है। इतना बोलना था कि उर्वशी सुबकने लगती है। वह नेहा को अपनी बाहों में भर लेती है, फिर तो जैसे उसके सब्र का बांध ही टूट जाता है।नेहा उर्वशी के चेहरे को ऊपर उठाते हुए कहती है - ऐसे चांद से चेहरे पे इतनी मलिनता। घर की याद आ रही है। उर्वशी ना में गर्दन हिला देती है। फिर क्या बात है भाभी मुझे बताओ?
राहुल भैया ने कुछ कहा है? उर्वशी जोर-जोर से रोने लगती है। प्लीज भाभी, कुछ बोलो मुझे चिन्ता होने लगी है। उर्वशी नेहा को अपनी स्थिति से अवगत करवाती है। नेहा क्या बात कर रही हो भाभी? भैया ने आपको छुआ तक नहीं और वह आपसे रूखा व्यहवार कर रहा है। पहले तो आपके नाम से ही उसका चेहरा खिल जाता था, फिर ऐसा क्या हुआ की वह आपसे दूरियाँ बना रहा है?
नेहा- भैया मुझे आपसे बात करनी है, आपने भाभी का तीन दिन में ही क्या हाल बना दिया? उनका रो-रोकर बुरा हाल है, वह बेचारी दूसरे घर से आई है वह आपके भरोसे ही तो आई है, अगर आप इतनी बेरूखी अपनाओंगे तो उनका क्या होगा इतना तो सोचो?
राहुल - (नेहा को झिड़कते हुए) - तू अपने प्रवचन अपने पास ही रख, मेरी जिंदगी में दखल अंदाजी करने की कोशिश मत कर। नेहा भैया ही कह पाती है, राहुल हाथ जोड़कर मुझे माफ कर देना कहकर घर से निकल जाता है। नेहा राहुल का यूँ जाना नजर अंदाज नहीं कर पाती। वह अपने पिता को सब स्थितियों से अवगत करवाती है। वह इसको अपनी इज्जत से जोड़कर देखते हैं और कहते हैं आने दो पाजी को देखता हूँ, पराई जाई को लाकर ये व्यवहार। रात को जैसे ही राहुल घण्टी बजाता है, पापा जी पिये हुए तो थे ही, जाता लेकर पिल पड़ते हैं राहुल पर साले तु नई- नवेली के साथ ये व्यवहार करेगा? तु पराई जाई की ये दुर्गति करेगा ।मुझे तुझसे ये उम्मीद नहीं थी। गालियां बकते जाते हैं और हाथ साफ करते जाते हैं। राहुल की बीच बचाव करने आती है तो एक -दो उनको भी पड़ जाते हैं। उर्वशी को ऊपर आवाजें आती हैं परन्तु उसकी नन्दें बीच में बोलने से मना कर देती हैं।
राहुल सुबकते-सुबकते कमरे में प्रवेश करता हैं, उर्वशी पानी का गिलास देने की कोशिश करती है तो राहुल पानी के गिलास को फैकते हुए - साली, पहले तो आग लगा दी, मेरा तमाशा बनवा दिया, सरेआम पिटवा दिया और अब हमदर्दी दिखाती है। बड़बड़ाते हुए, अब मैं दिखांऊगा रूखापन क्या होता है? कपड़े बदल कर करवट लेकर पूरी रात रोता रहता है। उर्वशी के दिल की धड़कन बढ़ जाती है, परन्तु वह चुप ही रहती है की पापा जी ने इसे पीटा और ये कहीं मुझ पर हाथ साफ ना कर दे। सुबह उर्वशी जब सोकर उठती है तो उसे राहुल कहीं भी नजर नही आता तो वह अपनी नन्द से पूछती है। उर्वशी राहुल को मैसेज पे मैसेज भेजती है, नई - नई इमोजी भेजती पर राहुल कोई जबाव नहीं देता, वह बेचैन हो जाती है, ऐसे ही तीन महीने बीत जाते हैं। उर्वशी राहुल का इंतज़ार करती रहती है, ना वह आता ना उसका कोई पैगाम। ससुराल वाले भी खूब कोशिश करते हैं, पन वह टस से मस नहीं होता, कभी मायके तो कभी ससुराल के चक्कर लगाती रहती है।
आखिर एक दिन उसके सब्र का बांध टूट जाता है, वह अपनी स्थिति के बारे में अपने भाई -भाभी को अवगत करवाती हैं और फिर उर्वशी का भाई कोर्ट केस कर देता है और शुरू हो जाता है एक-दूसरें पर लांछनो का दौर, जो बहू अच्छी थी वो कलंकित बना दी जाती है, जिन ससुराल वालों ने एक शब्द भी नहीं कहा उन पर दहेज और मार पिटाई के मिथ्या आरोप लगा दिये जाते हैं। वकीलो का घर भरता रहता है और दोनों पक्ष मानसिक बीमार नजर आने लगते हैं, बात कुछ नहीं, बतगंड बन जाती है। उर्वशी और राहुल अपनी करनी पर पछता रहे हैं - काश ! हम दोंनों ने समझदारी से काम लिया होता, हँसता-खेलता परिवार यूँ बर्बाद ना होता। उर्वशी काश ! मैंने सब्र किया होता। काश ! मैं रूखेपन को पचा जाती। काश! मैं जल्दबाजी ना करती, तो आज मुझे ये दिन ना देखना पड़ता। सब मुझे ये फिकर ना कसते "रूप की रोय ,भाग्य की खाये" इसलिए रिश्तों की अहमियत को पहचानो। अपना मारेगा तो छाया में तो डालेगा, मेरा यही अनुरोध है - रिश्तों की मिठास को बरकरार रखो, समझौता जीवन का नाम है, हमें समझौते पग-पग पर करने ही पड़ते हैं, फिर रिश्तों में उतावलापन क्यों?