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Shakuntla Agarwal

Abstract Others

4  

Shakuntla Agarwal

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"आत्मा"

"आत्मा"

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पूजा पिकनिक से घर लौट कर आई तो उसका मूड कुछ उखड़ा हुआ था। वह कहने लगी - मम्मी मेरा शरीर दुःख रहा है, मम्मी ने भी सोचा सुबह से पिकनिक पर गई हुई थी थक गई होगी। 

मम्मी - कोई बात नहीं बेटा खाना खाकर सो जा, सुबह स्कूल भी तो जाना है। 

पूजा भी अपने कमरे में सोने चली गई और मम्मी-पापा भी अपने कमरे में चले गये। छोटा भाई पूजा के साथ उसी के साथ आकर सो गया। अल्प सुबह पुजा सो कर उठी तो वह कुछ बहकी-बहकी बातें करने लगी। 

मम्मी ने कहा - पूजा बेटा, तुम ये कैसी बातें कर रही हो?

पूजा - मम्मी, पता नहीं मुझे कुछ अजीब सा लग रहा है। मेरा शरीर भी भारी - भारी हो गया और मेरी आंखें भी पथरा सी गई है। शरीर टूट रहा है।

मम्मी - तुमने पिकनिक पर क्या खाया था? कुछ गलत तो नहीं खा लिया।

पूजा - नहीं, मम्मी आपने जो दिया था वही खाया और स्कूल वालों ने जो क़ोल्ड ड्रिंक और चिप्स दिये थे वो खाये बस।

मम्मी - फिर ऐसा क्या हुआ?

पूजा - मम्मी, कुछ अजीब सा मन हो रहा है। स्कूल जाने का मन नहीं कर रहा।

मम्मी - कोई बात नहीं। एक दिन में ऐसा क्या पहाड़ तोड़ लगी।

पूरा टाइम वह सोती रही, परन्तु दोपहर में मम्मी ने जब उसे खाने के लिये उठाया तो वह कुछ बहकी-बहकी बातें करऩे लगी।

मम्मी - पूजा, तुम कैसी बाते कर रही हो? मम्मी घबरा गई। सच बता तूने पिकनिक पे ऐसा क्या किया, जो ऐसा व्यवहार कर रहीं है? 

पूजा - मम्मी मुझे बहुत तेज पेशाब आ रहा था। वहाँ शौचालय नहीं था तो मैंने एक पेड़ की ओट लेकर पेशाब कर लिया, मधु भी मेरे साथ थी, आप उससे भी पूछ लो और मैंने ऐसा कुछ नहीं किया। उसने ही चुन्नी की ओट कर रखी थी।

मम्मी - तू तो पहले से बदली बदली नजर आ रही है, मम्मी इतना बोल भी नहीं पाई की पूजा को दौरा पड़ना शुरू हो गया उसके हाथ-पैर मुड़ गये, मुंह से झाग निकलने लगे।

मुंह टेढ़ा हो गया, हाथ और पैर टेढ़े हो गये। मम्मी चीखी तो पूजा का छोटा भाई भागकर आया और हाल देखकर दुकान से पापा को बुला लाया, पूजा को डाक्टर के यहां ले जाया गया दवाईयां शुरू हो गई, परन्तु कोई खास फर्क नहीं हुआ। पूजा बिस्तर पर ही पड़ी रहती थी, चलना फिरना तो दूर, करवट भी नहीं ले पाती थी, वह चिड़चिड़ी रहती और खाने को फेंक देती ,जब मन करता तो गालियाँ देने लगती, घरवाले उसकी हरकतों से बहुत परेशान रहने लगे घर का माहौल बिगड़ता चला गया, एक दिन पूजा इतना चीखी चिल्लाई की सब परेशान हो गये। मम्मी तो रोने लगी, जाने मेरी फूल सी बच्ची को क्या हो गया, किसकी नजर लग गई, इतने में पूजा यकायक करवट लेकर सो गई। दोपहर में पूजा के पापा नवीन जब खाना खाने के लिये आये, तो वह पुजा के कमरे में गये, तो क्या देखते हैं की पूजा बिस्तर से उठकर चलने की कोशिश कर रही है। वह अपने पैरों पर खड़ी हो गई और चलने लगी।

नवीन - अरे ! बेटा पूजा, तुम्हारी टांगो में इतनी ताकत नहीं है, तुम गिर जाओगी।

पूजा - छोटी बच्ची की आवाज में - आप कौन हैं और मुझे चलने के लिये क्यों मना कर रहे हैं, और आप मुझे पूजा क्यों कह रहे हो? मैं तो रीना हूँ।

नवीन - अरे बेटा, तुम ये क्या कह रही हों? मैं तुम्हारा पापा हूं और तुम मेरी बेटी पूजा हो।

पूजा - (मुंह में अंगूठा चूसते हुये) आप मेरे पापा कैसे हो सकते हो, मेरे मम्मी-पापा तो हवाई जहाज के एक्सीडेंट में मर चुके हैं और मैं तो अपने दादा- दादी के साथ हिसार में रहती हूं। 

नवीन - नहीं बेटा, तुम दिल्ली में रहती हो और मेरी बेटी हो। इतने में पूजा की मम्मी ने कमरे में प्रवेश किया। 

नवीन - देखो, तुम्हारी बेटी क्या कह रही है? ये तो मुझे अपना पापा मानने को ही तैयार नहीं है। नवीन ने अंजु का हाथ पकड़ा और पूजा को दिखाते हुये कहने लगा - तुम तो इसको भी अपनी मम्मी मानने से इन्कार कर दोगी।

पूजा - हां, तो मैं क्यों मानू इनको? अपनी मम्मी? ये मेरी मम्मी हैं ही नहीं। मेरी मम्मी तो अब इस दुनियाँ में है नहीं। मुझे परेशान करने की कोशिश मत करो। जल्दी से मेरे दादा - दादी को बुलाओ। मेरे बिस्तर की क्या हालत है। क्या मैं ऐसे बिस्तर पर सोऊंगी। नवीन और अंजु दोऩों पूजा की हरकतें देखकर सकते में आ गये। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था आखिरकार वो क्या करें। अब तो पूजा की स्थिति ऐसी हो गई थी की वह उन्हें माता पिता मानने को ही तैयार नहीं थी। उनका कजन भाई इसी शहर के जाने-माने 

डाक्टर थे, सो उन्होंने उससे सलाह मशवरा लेने की सोची। वे उनके घर के लिये चल दिये।

डा ० पंकज के घर जैसे ही नवीन ने प्रवेश किया-

डा ० पंकज - अरे ! भाई नवीन, तुम तो ईद के चांद हो गये। आज- कल नजर ही नहीं आते।

नवीन - भाई साहिब, क्या बताऊं, एक अजीब सी उलझन में फंसा हूं।

डा ० पंकज - क्या उलझन है बोलो? 

नवीन - पूजा की हालत दिन ब दिन और बिगड़ती ही जा रही है, पहले वह बिस्तर मैं लेटी रहती थी लगता था मानसिक संतुलन ही बिगड़ा हुआ है, और पन अब तो हद ही हो गई, अचानक बिस्तर से उठ कर चलने लगी और छोटी बच्ची जैसी हरकतें करने लगी, अंगूठा उसने कभी नहीं चूसा, अंगूठा चूसने लगी। हम दोंनों को ही पहचानने से इन्कार कर दिया और हमसे पूछने लगी की हम कौन हैं, वह हमें मम्मी-पापा ही मानने को तैयार नहीं है।

डा ० पंकज - क्या बात कर रहे हो, तुम तो कह रहे हो वह चलने लगी यह तो हमारे लिये बहुत हर्ष का विषय है। जिस लड़की को एक डंग भरने में और करवट लेने में ही दिक्कत होती थी वह चलने लगी, इससे अच्छी बात क्या ही सकती है।

नवीन - लेकिन भाई साहिब, हमें पहचान नहीं रही है और छोटी बच्ची जैसा व्यवहार कर रही है।

डा ० पंकज - तुम्हें मम्मी पापा मानने से इन्कार कर रही है? (यही तो परेशानी का सबब है) ये तो छोटी सी परेशानी है, इसका भी कोई उपाय मिल जायेगा। चलो फिक्र मत करो मैं आता हूं, कल शाम को।

नवीन अनमने मन से घर की तरफ चल दिया एक तो बिजनेस में दिक्कत और दुसरा पूजा की परेशानी ने उसे हिलाकर रख दिया था, जैसे ही नवीन ने घर में प्रवेश किया (अंजु हाफती हुई) - अरे ! आप कहाँ चले गये थे जी? पुजा ने पूरा घर सिर पर उठा रखा है। वह वाशरूम गई तो कहने लगी ये क्या है? यहां का तो नक्शा ही बदला हुआ है, मैं ऐसा वाशरूम इस्तेमाल नहीं कर सकती। (नवीन के लगकर रोते हुये) मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा की पूजा को हुआ क्या है।

नवीन - हौसला रखो कल पंकज भाई साहिब आयेंगें, लगता हैं कुछ ना कुछ हल अवश्य निकलेगा। मै अभी उनके पास से ही आ रहा हूँ।

नवीन - पूजा बेटा, क्या खाना है बताओं? हम वही बनायेंगें, तुम्हारी मम्मी कर रही है की तुमने कुछ नहीं खाया।

पूजा - खिचड़ी खाने को दोगे तो कैसे खाऊँगी? कोई अच्छी चीज बनाओ और मैं कह देती हूं, मुझे इस नाम से मत पुकारो। मेरा नाम रीना है और हिसार में रहती हूँ।

नवीन - चलो कुछ खाकर सो जाओ, सुबह बात करेंगे।

सुबह सोकर उठे तो भी पूजा की वही हरकतें, वह मुंह में अंगूठा चूस रही थी और बच्ची जैसे बातें कर रही थी, जैसे वह 8-9 साल की बच्ची हो। नवीन बेटा तुम ऐसे बातें क्यों कर रही हो?

पुजा - हाँ तो, मैं रीना हूं, कितनी बार कहूं की मैं हिसार में रहतीं हूँ, आप लोग मानते क्यों नहीं? मेरा एक्सीडेंट हो गया था, उसके बाद एक बड़ी मूछ वाले अंकल ऊपर लेकर गये। जहां बड़ी सी एक किताब लेकर एक अकंल बैठे थे, उन्होंने किताब में कुछ देखकर कहा की इसको क्यों ले कर आये हो? तुम गलत लड़की को ले आये। उनको बहुत डांटा - फटकारा और कहा की इसको वापिस लेकर जाओ।

वह अकंल मुझे वापिस लेकर आये और रोशनदान में से मुझे नीचे यहाँ फेंक दिया, देखो, रोशन दान का शीशा भी तड़क गया है। पूजा ने कहा तो नवीन ने ध्यान दिया की वास्तव मैं ही रोशनदान का शीशा तड़का हुआ है अब तो वह और सकते में आ गया की अब ये क्या बला है ? अब तो वह अपना माथा पकड़कर बैठ गया।

नवीन - पूजा तुम पहले ही हमें बहुत परेशान कर चुकी हो, अब ये नई कहानी कहाँ से ले आईं। माना तुम चलने लगी, परन्तु अब ये बच्चों की बोली बोलना, अंगूठा चूसना और नई-नई कहानियाँ गढ़ना, अब ये क्या बला है? हम पहले ही बहुत परेशान हैं, हमें और परेशान मत करो। हमें चैन से जीने दो, 

पूजा - मैं सच कह रही हूँ, मैं बहुत बड़े बिजनेसमैऩ की बेटी हूँ और मेरा घर हिसार में है और मैं मेरे दादा-दादी और मेरी बुआ के साथ रहती हूँ और हमारे यहां तरह - तरह की सुविधायें हैं वहां 5-7 नौकर हैं, मुझे तो खुद ही नहीं पता मैं यहां कैसे आ गई, तभी यहां के हालात पचा नहीं पा रही हूँ क्योंकि मैं ऐसे रहने की आदी नहीं हूँ।आप समझ नहीं पा रहे अंकल, मैं आपको क्या समझाना चाह रही हूँ।

नवीन - पूजा भगवान के लिये चुप हो जाओ, नहीं तो मैं पागल हो जाऊंगा। शाम को डा ० पंकज का आगमन हुआ।

डा ० पंकज - अरे पूजा बेटा, तुम तो चलने लगीं कितनी खुशी की बात है। परन्तु नवीन ने बताया की तुम कुछ बहकी- बहकी बातें कर रही हो, ऐसा क्या हुआ की तुम्हारा रुख ही बदल गया। तुमने कोई सपना देखा क्या?

पूजा - नहीं अंकल, मैं रीना हूँ और हिसार में रहती हूँ, आप लोग मान क्यों नहीं रहे?

डा ० पंकज ने पूजा को बहुत समझाने की कोशिश की परन्तु वह अपनी बात पर अडिग रही। आखिरकार डा ० पंकज ने कहा - क्या बेटा तुमने "झुक गया आसमान" पिक्चर देखी थी, जो तुम्हारे दिमाग में वो फितूर घुस गया। सो मैं तुम्हें नींद का इन्जेक्शऩ लगा देता हूँ, तुम्हें नींद भी आ जायेगी और सुकून भी मिलेगा।

उसने अपने शरीर पर हाथ लगाने से मना कर दिया और कहा - आप एक बार मेरे साथ हिसार चलकर देखेंगे तो सारी सच्चाई समझ आ जायेगी, यह बात शहर में आग की तरहा फैल गई, घर के बाहर लोगों का हुजूम पूजा को देखने की खातिर इकट्ठा होने लगा, इस मामले में डा ० और पुलिस भी शामिल हो गये, सब जानने के उत्सुक थे की वास्तव में ये पहेली क्या है?

सबने मिलकर पूजा को समझाने की बहुत कोशिश की परन्तु वह टस से मस नहीं हुई, अब घरवालों को उसकी चिन्ता सताने लगी, उन्होंने उसकी दोनों बुआओं को भी बुला लिया वह उनको भी पहचानने में असमर्थ थी उनकी बात मानने का तो प्रश्न ही नहीं उठता, धीरे- धीरे सबने हथियार डाल दिये, आखिरकार पूजा के पापा ने कहा - क्यों ना हिसार एक बार चलकर देख लिया जाये की मामला क्या है?

किसी की भी इसमें सहमति नहीं थी। सब कहने लगे ये तो पागल हो गई, लगता है तुम भी इसके साथ पागल हो गये। लेकिन पूजा की हालत देखकर पूजा के पापा पसीज चुके थे और उन्होंने पुलिस की निगरानी में पूजा के साथ हिसार जाने का निर्णय लिया, क्योंकि वह दूध का दूध और पानी का पानी करना चाहते थे, वह पुलिस के दो सिपाहियों और पूजा के साथ पूजा के बताये गये पते पर जा पहुंचे। पूजा घर में ऐसे दाखिल हो रही थी जैसे वह वहाँ क़ी एक-एक चीज से वाकिफ है, उसके कहे अनुसार ही घर का नक्शा था, जैसे उसने कहा था वैसे ही दादा- दादी और बुआ का परिवार मौज़ूद था, घर के सामने दो लग्जरी गाड़ियाँ, ड्राइवर और नौकरों की भरमार थी, उसने जो नाम गिनवाये थे वो सब वहाँ मौजूद थे, लेकिन वहाँ की तो हवा ही बदल चुकी थी, उन्हें वहां पता चला की रीना के मम्मी-पापा की वास्तव में ही प्लेन क्रैश में मौत हो चुकी थी और रीना ही सबकी वारिस थी। पन बुआ की नीयत में खोट आ चुका था और उन्होंने अपना स्वामित्व जमा लिया था, जब साथ गये सिपाहियों ने दादा जी से पूछा - क्या आपकी पोती रीना की एक्सीडेंट मैं मौत हो चुकी है? तो उन्होंने हामी भर दी, तारीख भी वहीं थी जो रीना बता रही थी।

पुलिस वालों के सच्चाई जानकर होश उड़ गये। पूजा यहाँ -वहाँ जा जाकर चीजे दिखा रही थी और उनके बारे में अवगत करा रही थी, नौकरों को उनके नाम से पुकार रही थी उसने अपने घर की एक - एक वस्तु से पुलिस वालों को अवगत करवाया, यहाँ तक की उसने अपनी तिजोरी के कोड के बारे में भी बताया, जब रीना के दादा जी से उसके बारे में पूछा तो वह सही था, उसने अपने मम्मी-पापा, दादा-दादी की निशानियों के बारे में और आदतों के बारे में भी बताया, वह सब सच था, एक बार तो सबका सिर चकरा गया। 

पूजा की दादी ने पूजा को गले से लगा लिया और कहा कि ये हमारी बिटिया रीना है, परन्तु अगले ही पल बुआ ने भांजी मार दी।

बुआ - ये बहरूपिया भी तो हो सकती है, इसके कहने से क्या हम विश्वास कर लेंंगे की यही हमारी वही लाडली बेटी रीना है, इतनी धन- दौलत देखकर तो किसी की भी नीयत डोल सकती है, किसी की मिली भगत से या तांत्रिक विद्या से यह सब सम्भव हो सकता है, शक्ल अलग, हुलिया अलग , उम्र का दोगुना फर्क, कैसे मान लें की यह रीना है। दादा जी रामेश्वर दास - हाँ, य़ह सब पाखंड है हमारी जायदाद पर कब्जा करने के लिये, इन्होंने ये साजिश रची है, शहर में सबको पता है की मेरे बेटे-बहु का एक्सीडेंट में देहान्त हुआ था, ये कोई बड़ी बात नहीं है, घर का नक्शा जो बताया वो भी हो सकता है की कोई नौकर साथ मिल गया हो और उसने सभी जानकारियाँ साझा कर दी हो, मैं नहीं मानता यह हमारी रीना है।

रीना- दादा जी आप और मैं एक बार अपने आम के बाग मैं गये थे, मैं वहाँ ठोक़र खाकर गिर गई थी, आपने कितना ताण्डव किया, जरा सी खरोंच आने पर ही तुरन्त अस्पताल लेकर भागे थे की मैं बेटे-बहु को तो खो चुका हूं, परन्तु अब उनकी निशानी को कुछ हो, मुझे ये बर्दाश्त नहीं। आपको याद तो होगा, मैं आपक़ो दादू शाह कहकर बुलाती थी। क्या यह भी झूठ है? इसमें भी किसी साजिश का अंदेशा हो रहा है। आप तो मुझे कितना चाहते थे, फिर अब क्या हो गया। अब क्या मक्खी छींक गई बोलते क्यों नहीं दादू शाह?

लेकिन दादू टस से मस नहीं हुये, उनको यकीन हो भी जाता, परन्तु बुआ जी ने किसी के पंजे लगने नहीं दिये। उनकी नीयत में खोट जो आ चुका था की जिसकी मौत के लिये इतनी पूजा-पाठ किए, जो अर्थी पर जा चुकी, जिसकी चिता जल चुकी वह इस घर में वापिस आये और जायदाद से हाथ धोना पड़े, मुश्किल से अल्लाउद्दीन का चिराग हाथ लगा था, उसे यूहीं कैसे जाने देती, हालांकि पुलिस वालों को और रीना के पापा को रीना की बातों पर विश्वास हो गया था की वह उस घर की बेटी रीना ही है और उसने जैसे बताया वैसे उसकी मृत्यु हुई और अब पूजा में रीना की आत्मा विराजमान है। पूजा के पिता को लगा की कहीं ये उसे पहचान लें और उसे अपना लें तो मुझे मेरी पूजा से हाथ धोना पड़ेगा। उन्होंने कहा - बेटी पूजा, तुम मेरे घर का चिराग हो, तुम्हें तो ये पहचानने से ही मना कर रहें हैं, ये तुम्हें अपनाना ही नहीं चाहते हैं, इसलिये तुम वहाँ चलो जहाँ तुम्हारी कदर है। पैसे वालों को रिश्तों की अहमियत नहीं होती, जिन्हें रिश्तों की कदर है तुम वहीं चलो, कहक़र पुजा के पिता ने पूजा को आलिंगन में भर लिया और रोने लगे और वह पूजा को पुलिस वालों के साथ लेकर दिल्ली आ गये और अब रीना भी पूजा बनकर बिना किसी नाज-नखरें के उनके साथ रहने लगी। धीरे- धीरे समय बीतता गया, रीना ने उसी घर को अपना लिया। अब रीना (जो पूजा बन चुकी थी) ने कहा की पैसे की वजह से मेरे घरवालों ने मुझे ठुकरा दिया, अब मैं बताती हूँ पापा आपको पैसा कैसे कमाना है, वह धीरे -धीरे अपने पापा के बिजनेस को ऊपर ले आई, उसने पापा के बिजनैस में हाथ बटाना भी शुरू कर दिया और मन लगाकर पढ़ना भी। समय पखेरु बन उड़ने लगा और वह जानी-मानी वकील बन गई। घरवालों ने भी सुशील लड़का देखकर उसकी शादी कर दी। आज वह दो बच्चों की माँ है और उसके दोनों बच्चे विदेश में सैटल हैं, उसे अपने अतीत से घृणा होती है जिसमें रिश्तों से ज्यादा अहमियत पैसों को दी गई। उसे अपनी जिन्दगी से कोई शिकवा नहीं, भगवान ने उसे सब खुशियों से नवाजा हुआ है।



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