क्या माल लोंज हुआ है
क्या माल लोंज हुआ है


वैसे तो औरत होने पर मुझे गर्व है, क्योंकि औरत के पास वह ताकत है जो उसे सबसे अलग बनाती है। माँ की ताकत तो बूंद के कतरे को इन्सानी जामा पहना देती है, यानि बूंद को जैसे सीप मोती का आकार देती है, ठीक वैसे ही औरत रक्त की बूंद को जीव आकार देती है। नौ माह गर्भ में रखती है और अपना जीवन दाव पर लगाकर जीव को जीवन दान देकर दुनिया में लाती है। परन्तु उसी औरत को शर्मिन्दगी का सामना करना पड़ता है, जब उसे सिर्फ भोग्या की दृष्टि से ही देखा जाता है। मै पास की ही मार्केट में कुछ सामान लेने गई थी, वहीं आस-पास की दुकान वाले लड़के झुरमुट बनाकर बात कर रहे थे। मैं भी वहाँ खड़ी हो गई।
मैंने कहा - क्यों ? मनीष, सुबह - सुबह कुछ काम - वाम नहीं है, जो ऐसे गप्पे लगा रहे हो?
<p>मनीष - आने जाने वाली लड़कियों से मन बहला लेते हैं, आंखे भी सेक लेते हैं और मऩ भी लगा रहता है, बिन पैसे का मनोरंजन।
मैंनें कहा - लडकियाँ क़्या मनोरंजन का सामान है? इतने में बंटी हाफता हुआ आया और सड़क की तरफ इशारा करके कहने लगा - अरे क्या माल लौंज हुआ है?
मैने बड़ी उत्सुकता से सड़क की तरफ देखा तो मैं शर्म से और गुस्से से लाल हो गई, क्योंकि वहां से एक बहुत ही हसीन, कमसिन लड़की जा रही थी। मैं सोचने पर मजबूर हो गई जिस इन्सान को जीवन देने के लिये औरत अपना जीवन दांव पर लगा देती है, वह इतना भेड़िया हो सकता है की वह औरत को सिर्फ भोग्या ही समझता है । वह मां, बहन, बेटी भी तो है। वह देवी भी तो है, जिसकी घर-घर में पूजा होती है। अगर नहीं तो फिर आडम्बर क्य़ों ?