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Shakuntla Agarwal

Abstract Others

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Shakuntla Agarwal

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"एहसास - ए- जिंदगी"

"एहसास - ए- जिंदगी"

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मैं बहुत थकी हुई थी कि निढ़ाल होकर बिस्तर पर जो लेटी, तो पता ही नहीं चला निद्रा रानी ने कब आकर घेर लिया। मैं गहरी नींद की गोद में समा चुकी थी। मुझे लगा जैसे मैं एक मिट्टी के पहाड़ पर चढ़ी चली जा रही हूं। दूर-दूर तक कहीं कोई ओर कोई छोर नजर नहीं आ रहा था। मेरे पति देव भी मेरे साथ थे और हम दोनों ही चलते चले जा रहे थे। चलते- चलते हम दोनों ही हाफ चुके थे, हमें पानी की प्यास सता रही थी, पानी कहीं नजर नही आ रहा था, पानी की तो बात क्या कोई परिंदा भी नजर नहीं आ रहा था। अनजान शक्ति हमें ना जाने कहां लेकर जा रही थी। आखिरकार हम एक स्थान पर पहुंचें, वहां हमें कुछ चहल -पहल नज़र आई, वहां लोगों का हुजुम लगा हुआ था, परन्तु मुझे अपना कोई परिचित नजर नहीं आ रहा था। बरबस मेरी निगाह दूर खड़े एक व्यक्ति पर पड़ी तो मुझे कुछ परिचित सा नजर आया। मैं जैसे ही उनके पास पहुंची, उन्होंने मुझे पहचान लिया।


उऩ्होंने कहा - अरे! बेटा गुड्डी! तू यहाँ कैसे? 


मैंने अपनी यादाश्त पर जोर डाला, तो मुझे याद आया की ये तो मेरे बाबा के दोस्त रामायण ब्राह्मण थे जो अक्सर हमारी कपड़े की दुकान पर आ धमकते थे और घण्टो गपयाते रहते थे।


बाबा का रोज का नियम था - अरे! छोटू दो कप चाय तो भिजवाना और दोनों देर तक अपनी सर पंचायत के किस्से सुनाते रहते।

मैंने कहा - रामायण बाबा आप यहां कैसे?

रामायण बामण- अरे! बेटी मरने के बाद में कहाँ होंगा।

मैंने पूछा - मतलब? 

रामायण बामण- छोड़ पर तू ये बता तू यहां कैसे?

मैंने कहा - मैं अकेली नहीं आपक़ा बटेऊ भी साथ है। 

रामायण - के बात कर रही है या उम्र तो मरण की कोनया।

मैंने कहा - पता नहीं हम चलते-चलते यहां पहुंच गये।

रामायण ब्राह्मण ने "अच्छा खुश रह" कहते हुये मेरे सिर पर हाथ फेरा। कहने लगे तेरा बाबा भी आडै सै।

मैंने कहां - ये कैसी लाईन लगी हुई है?


रामायण बामण - रोटियाँ की मारी लाईन सै सब अपनी बारी की बाट में बैठे हैं - कहते हुये हमें मेरे बाबा के पास ले गये। बाबा हाथ में प्लेट लिए बैठे थे, हमें देखते ही बाबा सकते में आ गए - तू और बटेऊ आडै तुतर ? जैसे पहले तुतलाते थे वैसे ही तुतला कर बोल रहे थे। तुम दोऩों ती इबी दरूरत तोनी, टुम तुं आये हो - कहते हुये हमसे दूर होते चले गये, पीथै मुद्कै भी मत देथीयो। मैं इनका हाथ पकड़ कर वहां से वापिस भागने लगी। हम दोनों बुरी तरह हाफ रहे थे। मेरा हलक सूख रहा था, मैं पसीनों में नहाई हुई थीं जैसे की सब कुछ सच में घटित हो रहा हो। 


मेरी आँखें खुली तो मैं आश्चर्यचकित थी की यह तो एक सपना था, मैं सोचने लगी की क्या वास्तव में कोई ऐसी जगह हैं जहाँ मौत के बाद हमें जाना है और वहां यह हाल क्या बारह दिनों के अंदर जो गरुड़-पुराण सुनाई जाती है, उसमें जो लिखित है वह सब सच है? मैं सोचने पर मजबूर हो गई थी।

मेरे बेटा- बहू आये हुए थे, सो मैं काम में व्यस्त हो गई। सपने को लगभग भूल गई। मेरे बेटे-बहू की बंगलौर की फ्लाईट जयपुर की बजाय दिल्ली से थी। मेरी बिटिया गुडगांव रहती है, सो हम सब का मन हुआ की नया साल बेटी-दामाद के साथ मनाया जाए। हम गुडग़ांव के लिये रवाना हो गये।


शिमाली -अरे! कृति यहां पास में ही सुल्तानपुर है, जहाँ तरह- तरह के पक्षियों का जमावड़ा होता है, चलो घूम आते हैं।


कृति - हाँ दीदी, घुमने ही तो आये हैं जहां चाहो वहाँ ले चलो।


सुबह पांच बजे तैयार होकर सुल्तानपुर के लिये रवाना हो गये।क्या तो ठन्ड और क्या तरह-तरह के पक्षी। पक्षियों को देखकर ठन्ड का एहसास ही नहीं हुआ। मन प्रफुल्लित हो गया। वहाँ बहुत से सैलानी अपने बड़े-बड़े कैमरों के साथ पक्षियों को अपऩे-अपने कैमरे में कैद करने आये थे। मेरी बेटी शिमाली ने भी अपने कैमरे से उनकों अपनी फोटो ग्राफी में कैद किया और वहाँ मस्ती करने के बाद घर के लिये रवाना हो गये। अगले दिन 31 दिसम्बर था। तो सबने जश्न मनाने की सोची।


आजकल बार्बीक्यू चलन में है, गुडगाँव में जगह-जगह लोगों की पार्टी के लिए बार्बीक्यू मिल रही हैं और फिर शुरू हुआ बालकनी में बार्बीक्यू बनाने का सिलसिला।

शक्करकन्दी, मशरूम, मुंगफली सेंकनें का सिलसिला शुरू हो गया और फिर म्यूजिक के साथ डांस और खाने का दौर देर रात तक चलता रहा, सबने खूब मस्ती की। सब थककर चूर हो गये थे। कब नींद ने आ घेरा पता ही नहीं चला। सुबह शिमाली ने आकर झकझोरा तब आखं खुली । मैं मन ही मन बल्लियां ले रही थी की मेरे घर की खुशियां यूहीं बरकरार रहें, भगवाऩ किसी अला-बला से बचाये रखे।


शिमाली - मम्मी ओजस्वी रात भर तपती रही।

मम्मी - क्या कह रही है। रात को तो ठीक थी, खूब मस्ती कर रही थी। थर्मामीटर लगा कर देखा कितना बुखार है?

शिमाली - हाँ! मम्मी अमित ने लगाया था। 104 बता रहा था।

मम्मी - क्या बात कर रही है? पानी की पट्टी रखो। रख दी। रखते हैं तो 100 पर आ जाता है।फिर बढ़ जाता है। डाक्टर साहिब को दिखा कर दवाईयाँ शुरू कर दी। कृति और हरित की आज बंगलौर के लिए फ्लाईट थी।

शिमाली - मम्मी आप और पापा लांच करके जयपुर निकल जाओ ताकि समय रहते पहुंच जाओ। भैया भाभी को एयरपोर्ट मैं छोड दूंगी।

मम्मी - नहीं ओजस को बहुत तेज बुखार है। हम छोड़ते हुये निकल जायेंगे। 

लेकिन शिमाली ने कहा - नहीं मम्मी, आप का लम्बा रस्ता है, आप मानो मैं छोड़ दूंगी। हम जयपुर के लिए निकल गये।मेरा फोन घनघनाया तो मैंने रिसीव किया।


शिमाली - मम्मी मैंने भैया-भाभी को एयरपोर्ट छोड़ दिया है और उन्हें बोर्डिंग पास भी मिल गया है, आप किसी बात की चिन्ता मत करना, इतने में क्या देखती हूँ की हमारी गाड़ी फिसलती जा रही थी। सड़क पर कांच बिखरे पड़े थे, मेरे पति देव का गाड़ी पर लगभग नियन्त्रण ना के बराबर हो गया था। गाड़ी के दो पहियें साईड में खुदी हुई दरारनुमा जगह जो की 7-8 फीट चौड़ी थी, उसमें उतर चुके थे और थोड़ी दूरी पर ही डिवाइडर नजर आ रहा था। अगर हमारी गाड़ी डिवाडर से टकराती तो पलट जाती। हम शायद ही बचते लेकिन मेरे पति देव ने हौसला बनाये रखा और ईश्वर ने साथ दिया, उन्होंने गाड़ी को नीचे ही उतार लिया, गाड़ी हिचकोले खाती झाडियों से रगड़ती हुई चल रही थी। 2-3 किलो मीटर तक हमारी गाड़ी ऐसे ही चली। हम दोऩों ही सकते में थे की न जाने क्या होगा, यह सोचकर मेरी चीख निकल गई। शिमाली मेरी चीख सुनकर रोने लगी। शिमाली का रोना और मेरी चीख सुनकर ओजस भी जोर-जोर से रोने लगी और शिमाली कहने लगी - आप लोग कहां हो? मैं वहाँ आती हूँ। 


मैंने कहा - बेटा अभी तुम तसल्ली रखो और फोन रखो क्योंकि हमें भी कुछ सूझ नहीं रहा और रोना बंद करो। हम तब काफी दूर चले तब हमें रोड़ पर निकलने का रास्ता मिला, तब हम कहीं बाहर हाईवे पर निकल पाये लेकिन किस्मत अच्छी थी या यों क़हें मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। हमारी गाड़ी के दो पहिये पंचर हो चुके थे, लेकिन गनीमत थी की चाय़ की थड़ी और पंचर लगाने की दुकान पास-पास थी, जैसे की हमारे लिए ही बनवाई गई हों। हमने अपनी गाड़ी वहां खड़ी की और चैन की सांस ली। थड़ी वाले ने हमें बिठाया और पानी पिलाया, इन्होंने चाय का आर्डर दिय़ा।


मैंने कहा - मैं कहां चाय पीती हूँ। ये कहने लगे - कोई बात नहीं, आज तो तू भी पी ले। किसी का दिया-लिया आड़े आ गया। हमारे पितरों की छत्र छाया ने हमें बचा लिया, जो हम दोनों सही-सलामत जिन्दा थे। मैंने शिमाली को फोन किया - बेटा चिन्ता मत करना हम दोनों ठीक हैं और गाड़ी को भी ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है। तुम भैया-भाभी को कुछ मत बताना वरना वो फ्लाईट छोड़कर आ जायेंगे। 


शिमाली - मम्मी आप झूठ तो नहीं बोल रही हो? आप दोनों ठीक तो हो? मेरे पति देव ने झिड़कते हुए कहा - आने की जरूरत नहीं, हम ठीक हैं तुम ओजस को सम्भालो। हमें संयत होने में काफी समय लगा क्योंकि मौत का तांडव हमने सामने देखा था, यह वास्तव में ही ऐसा एहसास था की आज भी उसकी याद रोंगटे खड़े कर देती है। ज़िन्दगी के किस पड़ाव पर क्या हो जाए ये किसी को पता नहीं। हम सोचते कुछ हैं और होता कुछ और ही है, हम एक कठपुतली हैं और हमारी डोर किसी अन्जान शक्ति के हाथ में है। इसलिये हमें ईश्वर का धन्यवाद पल- पल करते रहना चाहिये।



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