स्वर्ग से सुंदर।
स्वर्ग से सुंदर।
नहीं मुझे भूख नहीं है, मुझे कुछ नहीं खाना, अच्छा चलो खाना नहीं खाओ बस सिर्फ थोड़ी सी दाल और सब्जी ही ले लो। मां हमेशा वैसे ही कहती थी और बस दाल और सब्जी खाने बैठो तो फुल्के खुद ब खुद ही प्लेट में आ जाते थे। मोहिनी ने जैसे खाने की थाली गगन के सामने रखी तो गगन उसका हाथ पकड़ कर फूट फूट कर रो उठा।
घर में सिर्फ 3 लोग रहते थे मां दीदी और गगन। पापा की यादें तो गगन के जेहन में थी ही नहीं। जब से होश संभाला है सिर्फ मां ही दिखती थी। घर आने के बाद मां अक्सर अपने बुटीक में ही व्यस्त दिखती थी। घर के आगे की दुकान में उन्होंने अपने तीन टेलर रखे हुए थे। कभी साड़ी पर फौल लगवाने के के या किसी भी कारण से घर में अक्सर औरतों का जमघट लगा ही रहता था। दीदी भी मां के काम में हाथ बंटवाती ही रहती थी और गगन दोनों के लिए एक राजकुमार था। अगर मां व्यस्त होती तो दीदी ही गगन का पूरा ख्याल रखती थी।
पापा की पेंशन और यह बड़ा सा घर ही सब का सहारा था। घर के पिछवाड़े में कच्ची जगह में बहुत सी सब्जियां लगी हुई थी। पिछवाड़े में अमरूद और अनार का भी एक बहुत बड़ा पेड़ था। मां को भले ही 100 कमियां होती हो लेकिन उन्होंने कभी भी गगन को कोई कमी नहीं होने दी। दीदी की शादी के बाद घर में बहुत खालीपन आ गया था उधर दीदी की शादी हुई और अगले ही साल गगन का इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला हुआ। गगन महसूस करता था की दीदी की शादी के बाद मां भी काफी अकेली हो गई थी लेकिन यदि वह दीदी के बारे में कोई भी बात करता तो मां एक ही बात कहती थी लड़कियां अपने घर पर खुश रहे इससे अच्छी तो कोई बात नहीं नहीं सकती । तू भी पढ़ाई लिखाई कर एक दिन इस घर में भी इस घर की लड़की आ जाएगी। कभी गगन शर्मा जाता और कभी मां से गुस्सा हो जाता बस मां ने का तो सिर्फ एक ही मकसद था कि गगन का ध्यान कहीं भी लग जाए वह दीदी को याद करके उदास ना रहे । क्या मां को तब अकेलापन नहीं लगता होगा। उसने तो कभी कुछ जाहिर होने से नहीं दिया। गगन की आंखों से आंसू बरसते ही जा रहे थे।
4 साल के लिए गगन इंजीनियरिंग कॉलेज में चला गया। मां हमेशा के जैसे घर में ही व्यस्त थी। समय बीत रहा था हॉस्टल में नई दुनिया पाकर गगन भी व्यस्त हो गया था। कॉलेज में पहली बार ग्रुप में उसकी लड़कियां दोस्त भी बनी। पढ़ाई में बेहद होशियार और अपने काम समय पर करने का पारितोषिक शायद उसे यह मिल रहा था कि लड़कियां खुद ही उसकी और खींची चली आती थी। उम्र के उस मोड़ पर दोस्ती यारी बहुत महत्व रखती थी। उसका ख्याल था कि प्रिया उसकी दोस्त है प्यार से बोल कर प्रिया अपना प्रैक्टिकल का काम अक्सर उससे ही करवाया करती थी। कोई भी बहाना बनाकर जब वह चली जाती थी तो कॉलेज में भी उसकी प्रोक्सी गगन ही लगाता था। एक दिन जब फेसबुक में उसने प्रिया को समीर के साथ देखा तो गुस्सा और दुख की अतिरेक मैं उसने प्रिया को फोन पर जाने क्या क्या कहा। दूसरे दिन प्रिया ने सबके सामने उसको बेइज्जत करते हुए कहा कि तुमको इतना हक किसने दिया है कि तुम मुझे अपना दोस्त समझो। समीर का और तुम्हारा कोई मुकाबला है समीर के पापा बहुत बड़े इंडस्ट्रियलिस्ट्स और तुम। अगर दोबारा से मेरे साथ में बात भी करने की कोशिश करी तो कल तुमने जो भी मुझे फोन पर बोला है वह मेरे पास में टेप है मैं उसे वायरल कर दूंगी। गगन बहुत दुखी हुआ उसे मां की बहुत याद आई थी और जाने मां फोन पर बात करके ही गगन की मन:स्थिति कैसे समझ जाती थी।
उसके बाद जब कॉलेज की 4 दिन की छुट्टियां थी और गगन अपने हॉस्टल के अंधेरे कमरे में ही बैठा था कि तभी पता चला कि दीदी और जीजाजी आए हैं। वह एनआईटी कुरुक्षेत्र में था दीदी और जीजा जी ने गगन को लेकर शिमला घूमने का प्लान बनाया। इसी बीच दीदी ने उसमें आत्मविश्वास भरा और उसे सिर्फ पढ़ने के लिए प्रेरित करा। हालांकि उसने तो किसी को कुछ नहीं कहा पर शायद दीदी भी उसके टूटे हुए दिल को समझ रही थी। यह तो उसे बाद में ही पता चला कि मां ने ही दीदी को गगन के पास भेजा था। प्रिया के बाद आनंदी भी कॉलेज में गगन से हमदर्दी और दोस्ती रखती थी। कैंटीन में और उसके बाहर भी कई बार वह दोनों घूमने जाते थे और काफी देर तक लाइब्रेरी में भी दोनों साथ साथ ही पढ़ते थे।
गगन को शायद अपने टूटे दिल को जोड़ने की जल्दी थी जो कि वह आनंदी के साथ बंधता ही चला गया। कॉलेज में कैंपस सिलेक्शन के लिए लोग आए थे। गगन की सिलेक्शन गुड़गांव की कंपनी में हुई आनंदी की हैदराबाद। फाइनल ईयर के बाद उसके घर आने के इंतजार मां जोरों से कर रही थी। मां ने फोन पर ही उसे खुशी-खुशी कहा कि दिल्ली से गुड़गांव तो ज्यादा दूर नहीं है चलो अच्छा है अब हम लोग फिर साथ रह सकेंगे। गगन को लग रहा था कि उसका घर फिर से आएगा आनंदी गगन और मां। नौकरी तो उसको मिल ही गई है। फाइनल ईयर के बाद कॉलेज छोड़ने से पहले उसने आनंदी को कहा तुम हैदराबाद वाली कंपनी ज्वाइन मत करना। हम दोनों विवाह कर लेंगे और तुम भी कोई दिल्ली या गुड़गांव में जॉब देख लेना । आनंदी हैरान थी उसने कहा नहीं मैं अपनी जिंदगी के इतने अच्छे मौके को ऐसे ही थोड़े ही छोडूंगी। मुझे अभी शादी करने की कोई जल्दी नहीं है हम दोस्त हैं और दोस्त ही रहेंगे मैंने अभी शादी के बारे में कुछ नहीं सोचा है मुझे तो अभी कैरियर में बहुत आगे तक जाना है।
गगन एक बार से टूट कर बिखर गया। घर आने पर उसने देखा कि मां की तबीयत भी अब जल्दी ही खराब हो जाती थी। जब तब उनका सांस फूल जाता था। गगन भी अपने ऑफिस में व्यस्त हो गया। उसने ख्याल किया कि अब मां के बुटीक में सिर्फ एक ही टेलर है और मां अब इतना ज्यादा व्यस्त भी नहीं रहती। पूछने पर मां ने गगन को बताया कि अब ज्यादातर लोग बने बनाए कपड़े ही ले लेते हैं इसलिए अब बुटीक पर इतने सारे लोग नहीं आते। अब ना तो इतना ज्यादा काम है और ना ही उनसे कोई काम होता है। मां ने गगन को कहा कि अब तू भी शादी कर ले तो घर में थोड़ा सा मेरा भी मन लगे और मैं निश्चिंत हो सकूं। कॉलेज में दो बार दिल देने और धोखा खाने के कारण गगन को अब शादी में कोई चाव नहीं दिखता था। वह शादी करना ही नहीं चाहता था। लेकिन जब दीदी ने भी मां की बीमारी और मोहिनी के रिश्ते की बात लाई तो वह मना नहीं कर पाया।
मोहिनी वास्तव में ही बहुत प्यारी सी लड़की थी। ग्रेजुएशन होते ही उसकी शादी हो गई थी और वह आगे भी पढ़ना चाहती थी। शादी के बाद वह अपने पढ़ने में ही व्यस्त रहती थी। मां भी अब
बेहद खुश थी पर उनकी तबीयत अब और भी ज्यादा खराब रहने लगी थी। मोहिनी को घर का काम करना अच्छे से नहीं आता था और कभी मां ने भी उसे कोई काम करने को नहीं कहा। मोहिनी के घर आने से अब गगन को भी घर पूरा लगने लगा था। जैसे दीदी मां और वह तीनों रहते थे अब भी वह तीनों ही रह रहे थे। घर में मानो पहली सी खुशियां फिर लौट आईं
अभी 4 महीने पहले ही जब मां की तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गई थी । उनसे कुछ खाया पिया भी नहीं जा रहा था तो टेस्ट करवाने पर पता चला कि उनको कैंसर हो गया है। उस दिन जब मम्मी बिस्तर से उठी ही नहीं तो मोहिनी ने खुद ही रसोई में सारा काम संभालना शुरू कर दिया। दीदी के आने पर और सबका ख्याल करते करते मोहिनी कब एक प्यारी सी लड़की से एक सुघड़ ग्रहणी में तब्दील हो गई, गगन हैरान होकर देखता था। वह मां का ख्याल भी बहुत अच्छे से कर रही थी।4 महीने बाद मां को हॉस्पिटल में भर्ती कर दिया गया था। दीदी भी घर पर आ गई थी। घर वैसे ही सुचारू गति से चल रहा था जैसे कि मां के ठीक होने के समय में चलता था। यहां तक कि मां का बुटीक भी बंद नहीं हुआ था। मोहिनी ने वह भी संभाल लिया था।
और उस मनहूस रात में जब डॉक्टर ने मां के ना रहने की खबर सुनाई थी तो पूरी रात मोहिनी ने ही गगन को संभाला था। उसके बाद मां के बाद आए उस खालीपन को मोहिनी ने खुद ब खुद भर दिया था। दीदी भी ऐसे ही विदा हुई मानो घर में मां बैठी हुई हो। आज फिर मां की बहुत याद आ रही थी कुछ भी खाने को मन नहीं कर रहा था तो मोहिनी ने जब मां के जैसे ही कहा चलो रोटी मत खाओ सिर्फ दाल और सब्जी तो ले लो तो ऐसा लगा कि मां इस घर में ही है। हम को आशीर्वाद दे रही है। मां की आत्मा मोहिनी के रूप में ही घर में अपना प्यार बरसा रही है। गगन जानता है वह आदमी है और इस तरह से उसे रोना शोभा नहीं देता लेकिन सच में आज ऐसा लग रहा था मोहिनी नहीं सामने मां है और उस रोते हुए गगन को शांत करवा रही है।
उस दिन उसने गलत कहा था कि मुझे कोई आवश्यकता नहीं है कि मैं शादी करूं , वह गलत था घर को, उसको, घर में सबको मोहिनी की बहुत जरूरत थी। उसने कभी पिता को नहीं देखा लेकिन इस घर को स्वर्ग बनाने के लिए वह भी अच्छा पिता बनेगा। कुछ ऐसा ही सोचते हुए उसने मोहिनी को कहा हम तुम दोनों साथ ही खाएंगे और देखना हमारे बच्चे के रूप में मां ही आएगी। सही कह रहे हो तुम ,अपनी प्लेट लेकर मोहिनी भी गगन के साथ बैठ गई। और घर स्वर्ग से सुंदर कैसा होता है यह गगन महसूस कर रहा था। मां भले ही दुनिया छोड़ कर चली गई हो लेकिन अपना ही रूप उसने मोहिनी को दे दिया था। अब घर में होली दीवाली सब त्यौहार वैसे ही मनेंगे
बस पापा की जगह गगन बैठा होगा और मां की जगह मोहिनी। और घर में हम दोनों के रूप में एक छोटा सा बच्चा हम दोनों के बीच होगा ऐसा सोच कर ही वह मुस्कुरा दिया।
