स्वाध्याय है लाभकारी
स्वाध्याय है लाभकारी


बहुधा हम कोई बहुत अच्छा विचार पढ़ते हैं तो उसे अन्य लोगों से बांटना अथवा अन्य लोगों को सुनाना चाहते हैं।कोई अच्छी कथा अथवा पुस्तक पढ़ कर उसकी चर्चा करना चाहते हैं ,यही क्रिया स्वाध्याय का प्रारम्भ है।स्वाध्याय की क्रिया न केवल हमारे स्वयं के जीवन को एक आवश्यक ऊंचाई देती है बल्कि अन्य लोगों के साथ साहित्य चर्चा करने पर उन्हें भी पढ़ने के लिए प्रेरित करती है।इसे गतिमान रखना और इस प्रक्रिया का नियम पूर्वक पालन करना स्वाध्याय की प्रवृत्ति को अक्षुण्ण रख सकता है।
किसी भी कार्य की सफलता हमारी एकाग्रता, उत्साह और संकल्प पर निर्भर होती है। एकाग्रता की कमी कार्य में उसकी वांछित सफलता में कठिनाई उत्पन्न कर सकती है, वहीं उत्साह की कमी सफलता को संदिग्ध बनाए रखती है। एक निरुत्साहत नेता उत्साही कार्यकर्ता तैयार कर पाए यह असंभव प्रतीत होता है। तात्कालिक लाभ चाहने वाले अथवा आधी अधूरी तैयारी कर मैदान में उतर जाने वाले खिलाड़ी सफलता का शीर्ष नहीं छू पाते , वहीं सतत प्रयासरत साधारण मानव भी ऊंचाइयों को लांघ जाता है। इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा हुआ है।
स्वाध्याय को सुखद अनुभूति कैसे बनाया जाए ?स्वाध्याय मनोरंजक किस प्रकार लगे ? क्या स्वाध्याय को भी हौबी बनाया जा सकता है ?आदि अनेक विचार मन में उठते हैं,जिनका सरल सा उत्तर है; जिस प्रकार शारीरिक व्यायाम को नियम पूर्वक करना व्यक्ति को अति उत्साह और उमंग से भर देता है और किसी बाधावश यदि वह एक दिन शारीरिक कसरत नहीं कर पाता तो अनमना सा रहता है, ठीक उसी प्रकार स्वाध्याय को भी यदि आदत और नियम में परिवर्तित कर लिया जाए तो यह मानसिक व्यायाम जब तक नहीं किया जाएगा मन बेचैन रहेगा।
आवश्यकता तो है बस जीवन में अनुशासन की उससे भी अधिक स्वानुशाान की। साहित्यिक पुस्तकें हर घर में पढ़ना, बच्चों में साहित्य के प्रति रुचि पैदा करता है।बच्चों को अल्प आयु से ही पुस्तकें पढ़ाई जानी चाहिए। इसके लिए उनके लिए अच्छी पुस्तकें प्रतिमाह मंगवा कर देनी चाहिए, उपहार स्वरूप भी बालकों को अच्छी पुस्तकें देनी चाहिए । बच्चे अत्यधिकतम ज्ञान लाभ ले सकें इसके लिए उन्हें उन पुस्तकों की समीक्षा करने को भी प्रेरित करना चाहिए। हर घर में एक घरेलु पुस्तकालय होना ही चाहिए। हम सभी जानते हैं कि पुस्तकें सच्ची मित्र होती हैं ,व्यक्तित्व के संपूर्ण विकास और कुसंगति से बचाव का इससे अच्छा कोई संसाधन नहीं है। एक पुस्तक प्रेमी व्यक्ति माननीय संवेदनाओं को जिस प्रकार समझने की दक्षता रखता है उतना शायद अन्य नहीं।
स्वाध्याय हमें आत्म विश्लेषण और आत्ममंथन का अवसर देता है, हम गलतियों को दोहराने से स्वयं को बचा सकते हैं और जीवन की कठिनाइयों से पार उतरने में सक्षम हो सकते हैं।
स्वाध्याय के अभाव में हम जीवन की खुशियों से दूर होते जा रहे हैं। हम कहेंगे, जीवन की आपाधापी हमें अवसर ही नहीं देती तो हम स्वाध्याय कब करें किंतु आजकल आपके पास समय ही समय है। आइए समय का भरपूर सदुपयोग करें।