"स्वाभिमान"
"स्वाभिमान"
बहुत सोचना पड़ा उस समय!.....इधर मुझे घर की जिम्मेदारी, बच्चों की परीक्षा के दरम्यान रूकावट नहीं आए, असहाय माता-पिता, ससुराल में रत्तीभर सहारा नहीं! बहु जो ठहरी घर की।
भले अधिकारी ने कहा! बेटी सवाल सिर्फ स्वास्थ्य का है! हिम्मत के साथ समस्या बता दो उपायुक्त को। मेरा सम्मान दांव पर लगा! मजबूरी ही कुछ ऐसी थी! डॉक्टर द्वारा हस्ताक्षरित सर्जरी का पर्चा लेकर गई!
पर्चा देखकर भी जूं तक नहीं रेंगी उन पर! फिर शर्म हया बाजु-रखकर बढ़ी हुई हार्निया से ग्रसित नाभि दिखाने हेतु मजबूर मैं!
आंखों में गुस्से की अग्नि प्रज्वलित होकर मानो कह रही अंतरात्मा से, बस बहुत हुआ!..... स्वाभिमान जीवित रखना समाज में।