Aarti Ayachit

Abstract Inspirational Children

4.2  

Aarti Ayachit

Abstract Inspirational Children

"अवगुणों को नहीं गुणों को देखो"

"अवगुणों को नहीं गुणों को देखो"

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नन्ही सी परी स्कूल से घर आईं और आते ही मां से बोली! मां इस बाल-दिवस पर हमारी शिक्षिका ने "प्रेरणास्पद" कहानी सुनाने के लिए बोला है तो आप मुझे कोई अच्छी सी कहानी सुनाना न।

मां ने कहा हां बिल्कुल बिटिया!पर तू कपड़े बदलकर खाना तो खा ले पहले! फिर इत्मिनान से मैं तुझे सुनाती हूं कोई "प्रेरणास्पद" कहानी।

मां कोई ऐसी कहानी सुनाना!जो हम विद्यार्थियों को सदैव ही प्रेरित करते हुए एक अमिट छाप छोड़े और राजा की कहानी सुनाओगी तो मुझे बहुत पसंद आएगी मां!ऐसा परी ने कहा।

फिर मां ने परी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहानी सुनाना कुछ यूं शुरू किया-

"राजा भोज विद्वानों और साहित्यकारों को बहुत आदर करते थे बेटी। उनके राज्य मे कला, साहित्य और संस्कृति का बहुत संवर्धन हुआ करता था। मालूम है बेटी!उनके राज्य मे आम नागरिक भी संस्कृत भाषा बहुत ही सरलता से बोलता था।

राजा भोज के दरबार मे महान महाकवि कलीदास रहते थे। कालिदास आशुकवि थे। आशुकवि यानि जो तुरंत कविता रचनेवाले। राजा भोज के नवरत्नों मे महाकवि कालिदासजी को सर्वोच्च शीर्ष स्थान प्राप्त था। राजा भोज उनके शासनकाल में सभी कवियों को कविता सुनाने पर अवश्य ही पुरस्कृत भी करते थे बेटी। सभी कवि काव्य रचना करते और दरबार मे अपनी कविता सुनाकर पुरस्कार पाते।

पता है बेटी!एक बार महाकवि कालिदासजी से राजा ने पूछा, “आप इतने बड़े कवि और विद्वान हैं। फिर भी ईश्वर ने आपके साथ ऐसा क्यों किया कि बुद्धि के समान काया और सुंदरता नहीं दी?”

महाकवि कालिदासजी राजा के इस व्यंग को तत्काल समझ गए, मगर उस वक्त तो वे बिल्कुल शांत रहें क्योंकि वे किसी उदाहरण के माध्यम से उत्तर देना अधिक मुनासिब समझते थे।

जब वे महल में पहुंचे तो उन्होंने दो बर्तन मंगवाए। इनमें से एक मिट्टी का था और दूसरा सोने का। उन्होंने दोनों बर्तनों में पानी से भर दिया। इसके बाद महाकवि कालिदासजी ने राजा से पूछा, “महाराज किस बर्तन का पानी ठंडा और मीठा होगा?”

फिर राजा ने तपाक से जवाब दिया, “मिट्टीवाले बर्तन का।” कालिदास मुस्कुराए और बोले, “राजन्, जिस तरह जल का ठंडापन बर्तन के मिट्टी का या सोने का होने पर निर्भर नहीं करता, उसी तरह बुद्धि भी व्यक्ति की बनावट पर कभी निर्भर नहीं करती।

इसलिए व्यक्ति के गुणों को सर्वप्रथम महत्व देना चाहिए, न कि उसके शारीरिक बनावट को। आत्मा की सुंदरता ही सबसे बड़ी सुंदरता है। बुद्धि व महानता का संबंध सीधे आत्मा से होता है, न कि शरीर से।”

महाकवि कालिदासजी के इस जवाब ने राजा की तो आंखे ही खोल दी बेटी। "इसलिए बेटी जीवन में हमें भी किसी भी व्यक्ति के अवगुणों को नहीं गुणों को ही देखना चाहिए।"

नन्ही परी मां से यह कहानी सुनकर बहुत खुश थी और रातभर कहानी को याद ही कर रही थी ताकि दूसरे दिन स्कूल में वह शिक्षिका और अपने साथियों को बाल-दिवस के अवसर पर यह "प्रेरणास्पद कहानी बेझिझक सुना सके।

नन्ही परी ने स्कूल में यही कहानी शिक्षिका और अपने साथियों के सामने सुनाई और बाल-दिवस के दिन शिक्षिका के मन को भी यह "प्रेरणास्पद" कहानी भा गई और मन ही मन विचार कर रही थी कि इस तरह हर बच्चे के माता-पिता अपने बच्चों को "प्रेरणास्पद" कहानी सदैव सुनाएं तो बच्चों का भविष्य संवारने में हमारे लिए शैक्षणिक-विकास की दिशा में वे भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।


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