यथार्थ
यथार्थ


सुरूची ! आज फिर क्या हाल बना रखा है सखी ?
क्या करूं नेहा घर और नौकरी दोनों ही जगह मुझे अपनी सेवाएं देना जरूरी भी तो था न ?
इसका मतलब यह कतई नहीं! स्वयं के लिए वक्त ही न निकाल पाओ।वह भी बहुत जरूरी है न ?
बचपन से अभी तक घर में बुजुर्गों का और नौकरी में अधिकारियों का आज्ञापालन ही तो करती रही मैं ! मध्यावधि में स्वास्थ्य साथ निभाने में कमजोर पड़ने से नौकरी से हाथ धोना पड़ा।
मुझे पता है तू कविताएं लिखती थी!इस शौक को स्वयं की खुशी हेतु रंगीन-आकार दे !"सुनो सबकी करो अपने मन की"कहावत को यथार्थ कर।