Aarti Ayachit

Abstract Inspirational

3.5  

Aarti Ayachit

Abstract Inspirational

शीर्षक-"बरसात की एक रात" (संक्षिप्त कहानी)

शीर्षक-"बरसात की एक रात" (संक्षिप्त कहानी)

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गहराए बादल अचानक गड़गड़ाहट करने लगें और बिजली भी जोर से चमकने लगी! मैंने अपने शौक के मुताबिक गरमागरम चाय बनायी और बालकनी में बैठ कर चाय पीते हुए इन बारिश के बूंदों को निहारने लगी। "अचानक से इस बारिश का दीदार करते हुए याद आ गई वो मुंबई की बारिश और बरसात की यादगार रात, हमेशा की तरह मन में यादों के दरवाजों को यूं धकेलते हुए जैसे फिर चाचाजी छतरी लेकर मेरे सामने खड़े हैं!" पल भर में सब रुक सा गया, बारिश की वो मोतीरूपी बूंदे, चाय से उठती गरम भाप और पेड़ों की पत्तियां सब की सब बागवानी के साथ लगा जैसे ज़िंदगी फ़िर उसी जगह पर जा कर रुक गयी हो!जहाँ मैं इंदौर से मुंबई पहली बार ट्रेन से रेलवे की परीक्षा देने गई थी ।


मुझ पर बारिश की वो बूंदें जो टिकी थी बालकनी की रेलिंग से ध्यान से निहारा तो उसमें वो सब पिछला दृश्य आंखों के सामने नाचने लगा, परिवार वालों का यह कहना कि ऐसे तो तुम्हें अकेले जाना ही होगा और हर परेशानी का सामना भी हिम्मत के साथ करना ही होगा से लेकर, ट्रेन के पहिए तभी पटरी से उतरने और ट्रेन से पहली बार मंजिल पर पहुंचने तक का सफ़र और वो चाचाजी! उनके तो क्या कहनें!ट्रेन रात को मुसलाधार बारिश के चलते देर से दादर पहुंचने पर भी स्टेशन पर मेरा इंतजार करते हुए, हाथ में छाता लिए यूं मुस्कुराते हुए स्वागत करना, और कहना बेटा! तुम कुशलपूर्वक आ गईं, और कहीं सुकून खोजते हुए, मेरे सिर पर हाथ रखकर कहना, अब खुली सांस ले ले बेटा और जीप में बैठ कर, सीधे घर की ओर जहां चाची इतनी रात को भी खाने पर कर रही इंतजार और फिर अगले ही पल में निंदिया रानी की आगोश में कब चली गई, कुछ भी न रहा होश! अगले दिन ही हुई परीक्षा, तब भी पूर्ण व्यवस्था के साथ मेरी फिकर करते हुए देखा उन्हें । एक तरफ बाहरी दुनिया में मजबूती से भतीजी को खड़ा करने का सपना और वहीं दूसरी तरफ सुरक्षा व्यवस्था की भी चिंता! मैं मन ही मन सोचकर भी क्या करूं! अगले ही पल तैयारी हो गई उनकी तो हरे रामा हरे कृष्णा मंदिर घुमाने की! साथ ही पूरा परिवार, हंसी मौसम लुत्फ उठाते हुए और सौभाग्य देखिए उसी समय मेरी दूसरी चचेरी बहन भी साथ में हो ली । फिर झमाझम मुंबई की बारिश में मन ही मन भीगते हुए! यादों में समाएं सपनों के पिटारे से खुद को नींद में से जागते हुए पाया तो पतिदेव बेल बजा रहे हैं! फ़ोन उठाया और फिर हमेशा की तरह इस हंसी मौसम में चाय-पकौड़ी के साथ किया उनका स्वागत! पर मन भावविभोर हो गया था यादों के झरोखों में! क्यों कि चाचाजी तो विशाल आसमां के क्षितिज पर हैं विराजमान और एक पल भी सोचूं कि क्या ऐसी हस्ती से फिर होगी मेरी मुलाकात?


यूं तो साथियों हर मौसम आते-जाते ही करते हैं बरसात

पर जीवन में हमें हर परिस्थिति में देना होगा एक-दूजे का साथ


इन्हीं लाईनों को गुनगुनाते हुए मानो बरसात की वह एक रात मुझसे कह रही हो! रख ऐतबार, बस थोड़ा सा इंतजार!



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