"ललक मातृभाषा सीखने की"
"ललक मातृभाषा सीखने की"
विद्यालय में हिंदी शिक्षक जब भी विद्यार्थियों को हिंदी विषय पढ़ाते। तो रमेश की आंखें नम हो जाती। शिक्षक ने कारण जानने पहुंचे घर। जहां रमेश का भाई विशाल मूक-बधिर उत्सुकता से सांकेतिक-भाषा का अध्ययन कर रहा। ट्रेन हादसे में माता-पिता नहीं रहे। विशाल मूक-बधिर हुआ। परंतु रमेश ने हिम्मत न हार अपने भाई के साथ हजारों मूक-बधिरों को यह भाषा सीखने हेतु सहायता उपलब्ध कराई।
जीवन की तमाम कठिनाइयों के साथ भी नित-नए विचारों के प्रवाहों को नवीन दिशा देते हुए
ऐसे लोगों को राष्ट्रगान सांकेतिक-भाषा में गाना सिखाया। विशाल ने सलामी देकर सुनाया भी। शिक्षक ने कहा, रमेश इसीलिए गर्व से कहते "हिंदी मेरा अभिमान।"