Aarti Ayachit

Abstract

3.4  

Aarti Ayachit

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"नाला-नाला जिंदगी नाहीं होवन दई"

"नाला-नाला जिंदगी नाहीं होवन दई"

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अरे चलो आज पिपरिया की जगहों का मुआयना करके आते हैं और योजना बनाते हैं कि कहां मल्टी-कॉम्प्लेक्स बनाए जा सकते हैं ताकि हमारे व्यवसाय में मुनाफा हो ।


"राकेश आया नहीं अभी तक!उसको बोला भी था कि और जगहों का पता तो लगाए!"पर वो है कि समय पर कभी उपस्थित ही नहीं होते ।"


किशोर जी मुआयना करने अपन चल देंगे, पर उफ़ ये बारिश भी तो रूकने का कदापि नाम ही नहीं ले रही! अशोक ने कहा ।


खैर इस मुसलाधार बारिश में हम कर भी क्या सकते हैं? एक तो काम की अधिकता वैसे ही है! ऊपर से पूरे देश में कोरोनावायरस के संक्रमण के चलते सब जगह ऊहापोह मची हुई है और अक्सर यही देखा गया है कि "कोई भी व्यक्ति वास्तविक जीवन की आवश्यकताओं को दुर्लक्ष कर सिर्फ अपनी झोली भरने में लगा रहता है ।" किशोर ने अशोक से कहा।


इतने में बाइक के हार्न की आवाज सुनाई देती है! मालिक लोगों को सुप्रभात जी! राकेश जो रैनकोट पहने हुए भी भीग चुका था, "मालिक माफ किजीएगा तनिक देर भई हमें आवन को ।"


"क्या बात हो गई राकेश? सब खैरियत है ?" अशोक ने पूछा।


फिर राकेश ने बताया! "वो हमार घर के पास एक मोड़ा जो है, नाला में गिर गओ! अब बड़े सबेरे मोहल्ला में सब इकट्ठो हुई गवे! बस चर्चा ही करतरहीन। कछु देखनो तो चाहीं! वो नहीं, इतने में हमारो ध्यान मोड़ो की तरफ गओ तो हल्की-हल्की सांसवा चलत रहीन!"फिर हम ऐसन ही बारिश में भीगत-भीगत उसे अस्पताल पहुंचाईंन और भर्ती करायत रहीन! नाही तो मोड़ो ने तो मौत को गले लगा लिवो थो।"


"बस मालिक इसी चक्कर में देर भई!आप लोगन से यही कहनो है हमारो कि जल्दबाजी में कोन्हु काम नाही करवे! नाही तो गलत परिणाम भुगतनो पड़े।

अब चीन का ही देखत रहीन हम लोग सभी! और पूरा देश में उस मनहूस कोरोनावायरस का दूष्परिणाम भुगत रहीन की नाहीं? कछु काम शुरू करवे! तब हजार बार सोचत रहीन हम क्योंकि सरकार योजना तो बनात रहीन और लागू भी कर देईं! उसका परिणाम आम जनता को भुगतनों पड़त।हमार भतीजा सोहनवा! वो ग्वालियर में हॉस्टल में पढ़त रहीन! और वही हमको अखबार का खबर बताए रहीन मालिक कि

"सरकार की संस्थाएं निर्धारित अवधि बीत जाने के बाद भी अपने निर्माण कार्य को पूरा नहीं कर पाती ऐसा एक बार नहीं कई बार देखा गया है, इन संस्थाओं को कई बार चेतावनी भी दी गई है लेकिन ये संस्थाएं किसी तरह का सुधार करना नहीं चाहती। ताजा मामला ग्वालियर के जीवाजी विश्वविद्यालय के सबसे बड़े प्रोजेक्ट मल्टी आर्ट कॉम्प्लेक्स का है। जिसका निर्माण पूरा होने की अवधि 8 बार बढ़ाई जा चुकी है। पिछले महीने इसकी निर्माण एजेंसी पीआईयू को दी गई अंतिम दिनांक बीत जाने के बाद भी अभी तक ये बिल्डिंग जीवाजी विश्वविद्यालय को हैंडओवर नहीं की गई है।"


"तो साहब चहुंओर ध्यान रखना पड़त रहीन की नाहीं? आप लोगन तो मुनाफा ही सोचत रहीन!आपको पतो भी चलत रहीन कि इतनी मुसलाधार बारिश में गांवों का जन-जीवन ही ठप्प हो जावत रहीन! शहरों में सिर्फ बिल्डिंग-बिल्डिंग बनावत रहीन! अनुमति मिलत ही बिल्डिंग तो बनजावत रहीन! और बेचन को तो आप लोग बेच दईं और खरीदनवाला मजबूर बिचारो खरीद भी लई! पर बारिश में जो परेशानी आवत है! वो कोन्हू जानने की कोशिश ही नाही करवे जाई।"

"बिल्डिंग बनात बखत नाली का लाने बारिश का पानी बहन को स्लोप देना पड़त! उसमें भी बारिश के पानी को संचित करन के लाने जल-संरक्षण योजना का पालन हमहु करनो पड़त!आप जैसन बिल्डरवा केवल अपनों फायदो न देखा करिवो । आपको पतो भी चलत रहीन कि जहां भी भवन बन गओ!वहां लोगन के आवन-जावन के लाने सड़क बनवे की नाही?" 

तो अशोक जी और किशोर जी माफी चाहता हूं आपसे!छोटो मुंह बड़ो बात करने पड़ी मोए!

इतने में खबर आती है कि जिस मोड़ा को राकेश ने अस्पताल ने भर्ती कराया!वो खतरे से बाहर है ।

"फिर तीनों जन आपस में बात करते हुए"

वर्तमान स्थिति में हम सभी कोरोनावायरस के संक्रमण की भयावहता से जूझ रहे हैं तो हम सभी को जन-मानस के स्वास्थ्य-कल्याण को ध्यान में रखकर ही हर सामाजिक कार्यों को अंतिम रूप देना सुनिश्चित करना होगा।

नाहीं कभहुं नाहीं हमरा सतत कोशिश यह रहीन कि हम लोगन का लाने नाला-नाला जिंदगी नाही होवन दई! साथ ही भविष्य में ध्यान रखिन और दूसरे बिल्डरों को भी समझावन का भलो काम करिवे।



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