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Seema Khanna

Abstract

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Seema Khanna

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सत्रहवाँ दिन

सत्रहवाँ दिन

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स्थिति वहीं बनी हुई है

आँकड़े बढ़ते हुए और हौसले घटते हुए

सवाल भी वही कि आखिर कब तक ?

जवाब भी कही कि पता नहीं।


अब तो समाचार भी देखना

बन्द या कह लीजिए कम हो गया है

देख के बस हताशा ही होती


हमेशा एक बात सुनने को मिलती है कि

अपने कर्मों का फल हमें मिलता ही है

अच्छा किया तो अच्छा

बुरा किया तो बुरा


तो आज क्या आज मानव जाति

जिस बुरे दौर से गुज़र रही है

वो हमारे ही किसी बुरे कर्मों का फल है ?

क्या हम अपने ही कर्मो की सज़ा भुगत रहे है ?

ऐसा है तो न सिर्फ चिंता की बात है,

बल्कि चिंतन-मन

न की बात है


आज नहीं तो कल ये

स्थिति सुधरने वाली है ही

एक नए सिरे से शुरुआत करनी होगी

अपनी ही गलतियों से सीखना होगा

जिससे ये दिन न हमें फिर

देखने पड़े न हमारी आने वाली पीढियों को


अपने आने वाली पीढ़ी को

कुछ और दे या ना दे

पर कम से कम एक

सुंदर स्वस्थ वातावरण तो दे


जो भी हमने गढ्ढे खोदे हैं

पाटना तो हमें ही पड़ेगा

आने वाली पीढ़ी को एक ऐसी

दुनिया दे के जाएं जहाँ अनजाना सा

डर न हो इंसान ही इंसान का दुश्मन ना हो

जहाँ हो तो बस चैन, सुकून और खुशियाँ

इंतज़ार है मुझे वो सुबह कभी तो आएगी।


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