सोलहवाँ दिन
सोलहवाँ दिन
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प्रिय डायरी, सोलहवाँ दिन
आज का दिन भी ख़तम हुआ, बढ़ते पारे के साथ आंकड़े भी बढ़ते जा रहे हैं.....5834....और कितना ये सवाल मन को परेशान कर देता है और दिल को बोझिल।
सब कुछ कोरोना के जैसे गिरफ्त में आता जा रहा हो जैसे...आशंका और दुःख इस बात का और ज्यादा है कि कल स्थिति शायद और भी बदतर हो..
सब कुछ ठहर सा गया है। इस ठहराव में भी तेज़ रफ़्तार से कोई बढ़ता जा रहा है तो वो है कोरोना।
बरसों से हम एक ढर्रे पर अपना जीवन जीते आ रहे हैं। पूरा दिन समय के साथ साथ चलता रहता है। पर अब...सब कुछ बदल से गया है।
एक महीना भी नहीं हुआ है कि है हमारा रहन-सहन, खान-पान, उठना-बैठना, सब कुछ तहस नहस हो है। दिन गिन-गिन कर काट तो रहे है, पर अब घड़ी की सुइयों के साथ नहीं चलते। ठहरे हुए हैं एक ही जगह समय के इंतजार में। एक झुँझलाहट मन में लिए हुए....ये मन लगता भी नहीं कहीं...कब मिलेगा सुकून जिसकी तलाश है।