पंद्रहवाँ दिन
पंद्रहवाँ दिन


21दिन लॉक डाउन की उल्टी गिनती कर तो जरूर रहें है पर कहीं से यह नहीं लगता कि ये 21 दिन, 21 दिन ही रहेंगे.. खैर इसमें क्या सोचना जो होगा सो होगा.....
आज बहुत दिन बाद फिर से बाहर जाना हुआ, घर का सामान आखिर कितने दिन का रखें....
बाहर गई तो...पर सामान्य होकर भी कुछ सामान्य नहीं लग रहा था , एक अजब सा खौफ़ साफ झलक रहा था सबके चेहरे पर, बेचैन , बौखलाए हुए...
ये कैसा समय आ गया है जब हम हमारे लोगों से ही डर रहे है....आदमी आदमी से ही डर रहा है.....दूर खड़े बस एक फीकी सी मुस्कान उछाल देते है....
कब होगा इसका अंत....जब होगा तो क्या हम वैसे ही हो जायेंगे जैसे थे या बदल जायेगा सब कुछ.......
फिर से क्या जैसे .....
दौड़ के गले लगा लेते थे , .......
मजमा लगा कि गपबाजी किया करते थे...
भीड़ को चीरते हुए भागते थे भले ही पिक्चर देखना हो या भगवान के दर्शन.....
ये या ऐसी बहुत सी बातें करते थे....कर पायेंगे?
इंसान की फितरत है हमेशा परेशान ही रहते है...
अभी परेशान है कि घर में बंद हैं... उनका क्या जो इधर उधर भटक रहे हैं..
अभी परेशान हैं कि बाहर होटल रेस्तरां में खाना नहीं खा पा रहे.. उनका क्या जो बाहर क्या घर क्या ...खाने की ही मुश्किल है....
ये ख़यालो का सिलसिला जब शुरू होता है तो खत्म होने का नाम ही नहीं लेता...हज़ारो सवाल दिल मे आते हैं जिसका जवाब शायद तभी मिले जब इस कोरोना से निज़ात....
अब बस इसी कक इंतज़ार...