इक्कीसवाँ दिन
इक्कीसवाँ दिन
प्रिय डायरी
21days लॉक डाउन का आखिरी दिन
वैसे तो 21 दिन लॉक डाउन डायरी का ये अंतिम दिन था... पर.....
मेरे इस सफर पर तो आज अल्पविराम लग गया पर लॉक डाउन खत्म होने के लिए लिए और इंतज़ार करना पड़ेगा.......
जब इक्कीस दिन पहले ये सफ़र शुरु किया था तो सोचा तो यही था कि इस सफर का, इस कहानी का एक सुखद अंत होगा....एक 'हैप्पी एंडिंग'......
पर उसके लिए अभी और इन्जार करना पड़ेगा......
आज मोदी जी का इंतजार सभी को था.....अपने अपने हिसाब से अटकलें सभी लगा रहे थे.....मैं भी....
कुछ हद तक मेरा सोचना सही भी हुआ और अभी अगली तारीख पड़ गई हमारे मुकदमे की....3 मई...
शायद प्रकृति से खिलवाड़ करने के जुर्म की हमारी सज़ा अभी बाकी है....
पर अभी भी ल
ोगों को.....
या तो समझ नहीं आ रहा......
या उनकी मजबूरी ज्यादा है....
आज मुंबई बांद्रा में प्रवासी मजदूरों का हज़ारों की संख्या में जमा हो जाना इसका एक उदाहरण है....
अभी तो पता नहीं है...पर उस भीड़ में यदि एक भी कोरोना से पीड़ित हुआ तो.....
वजह जो भी हो, पर अगर अभी भी न संभले तो परिणाम भयंकर होंगें.....
अपना और अपनों का खयाल रखें..
अफवाहों से दूर रहें.....
मैं अपने इस 21 दिन का सफ़र को यहीं विराम देती हूँ..... फिर मिलेंगे... किसी राह पर ...किसी मोड़ पर....
बस अंत में किसी और की लिखी हुई कुछ पंकितयाँ याद आ रहीं हैं कि......
रात भर का है मेहमाँ अँधेरा
किसके रोके रुका है सबेरा..