बारहवाँ दिन
बारहवाँ दिन
लॉक डाउन के दौरान दूसरा रविवार
पिछला रविवार तो स्कूल के कामों में ही निकला
इस रविवार सोच रखा था कि कुछ नहीं करूँगी। पूरी तरह छुट्टी मनाऊँगी।
पर दिन की शुरुआत हुई तो फिर वही स्कूल के कामों से ही।
क्या कहें और किससे कहें। शायद उनकी भी मजबूरी है या उससे भी ज्यादा ज़िम्मेदारी हैं।
व्यस्त तो हो ही गये है अब धीरे धीरे अभ्यस्त भी हो रहे हैं नई नई तकनीकों और शिक्षा पद्धति से। पारंगत होते जा रहे है धीरे धीरे।
कभी तो लगता है कि ऐसे ही लॉक डाउन चलता रहा तो हममें दो बदलाव तो आ जायेंगे। एक चश्मे का नम्बर बढ़ जाएगा दूसरा कंप्यूटर इंजीनियर न बन जाये । खैर
ये मज़ाक की बात अलग है।
आज का इंतज़ार तो लोग 2 दिन से कर रहे थे। प्रकाश पर्व जो मनाना था।
प्रकाश पर्व कह ले या एकता पर्व। नाम कुछ भी दे दें।मकसद तो एक ही था।
कुछ और करे , ना करे।सकारात्मक ऊर्जा का संचार तो कर ही गया और यही ऊर्जा तो मुश्किल हालात में हमारा हौसला बनाये रखती है।
सबसे अच्छी बात ये थी कि सब ने।या कह लीजिए अधिकतर लोगों ने।मन से या बे मन से।हिस्सा लिया।एकजुट होकर
सब इसका श्रेय मोदी जी को दे रहे है।पर मैं तो इसका श्रेय दूँगी ।आपको।हम सबको।
जिन्होंने इसे सफल बनाया।सार्थक बनाया।
इसी हौसले और एकजुटता के साथ हम कोरोना जंग भी जीतेंगे।