Sunita Shukla

Abstract

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Sunita Shukla

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सस्पेंशन

सस्पेंशन

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प्रिय सखी...

तुम तो मेरी वो दोस्त हो जिससे मैं अपनी दिल की सारी बातें करती हूँ। मेरे हर राज की राज़दार हो तुम, सुख-दुःख सफलता-असफलता हर परिस्थिति में तुमने मेरा साथ दिया है, आज फिर मेरा मन बहुत उदास है, जानती हो क्यों??

अब क्या बताऊँ मैं तुम्हे, इस महामारी के दौर ने लोगों का हाल बेहाल कर दिया है। काम-काज न होने से कई लोगाें को दो वक्त का खाना मिलना भी दूभर हो गया है।

ऐसे में मुझे पिछले साल के अपने यूरोप दौरे की एक पुरानी बात याद आ गई...।

क्या कहा तुम्हें भी जानना है, दर-असल

यूरोप का एक देश है नार्वे ....

वहां जब मैं गई तो

यह सीन आम तौर पर दिख जाता....

एक रेस्तरां है ...

उसके कैश काउंटर पर एक महिला आती है

और कहती है -

"5 Coffee, 1 Suspension"..

फिर वह पांच कॉफी के पैसे देती है

और चार कप कॉफी ले जाती है ...

थोड़ी देर बाद ...

एक और आदमी आता है ,कहता है-

"4 Lunch, 2 Suspension" !!!

वह चार Lunch का भुगतान करता है

और दो Lunch packets ले जाता है...

फिर एक और आता है ...

आर्डरदेता है - 

"10 Coffee, 6 Suspension" !!!

वह दस के लिए भुगतान करता है,

चार कॉफी ले जाता है...

थोड़ी देर बाद....

एक बूढ़ा आदमी जर्जर कपड़ों में 

काउंटर पर आकर पूछता है- 

"Any Suspended Coffee ??"

काउंटर-गर्ल मौजूद कहती है-

"Yes !!"

और एक कप गर्म कॉफी उसको दे देती है ...

कुछ देर बाद वैसे ही

एक और दाढ़ी वाला आदमी अंदर आता है,

पूछता है-

"Any Suspended Lunch ??"

तो काउंटर पर मौजूद व्यक्ति

गर्म खाने का एक पार्सल और

पानी की एक बोतल उसको दे देता है ...

और यह क्रम ...

एक ग्रुप द्वारा अधिक पेमेंट करने का

और

दूसरे ग्रुप द्वारा बिना पेमेंट खान-पान ले जाने का

दिन भर चलता रहता है ....

यानि ...

अपनी "पहचान" न कराते हुए

और

किसी के चेहरे को "जाने बिना" भी

अज्ञात गरीबों, जरुरतमन्दों की मदद करना...

यह है यहाँ के नागरिकों की परंपरा !!!

और बताया गया कि

यह "कल्चर" अब दुनिया के अन्य कई देशों में

फैल रही है...

और हम ...???

हमारे देश का तो मूलमंत्र ही परोपकार और दीन दुखियों की सेवा रही है,

और आज भी अनेक लोग और समाजसेवी संस्थाएं जनहित के इन कार्यों को बिना किसी शोर-शराबे और ब्रेकिंग न्यूज में आए करते जा रहे हैं।

परंतु कभी-कभी बहुत अफसोस भी होता है जब हम देखते हैं कि मदद के नाम पर

अस्पतालों में एक केला,एक संतरा

मरीजों को बांटेंगे...

सारे मिलकर अपनी पार्टी, अपने संगठन का

ग्रुप फोटो खिंचाकर

अखबार में छापेंगे !

है ना ?

कभी-कभी तो ऐसी स्थिति में मदद लेने वाला भी शर्मसार हो जाता है पर क्या करे उसकी तो मजबूरी होती है।

इन सबसे बचने के लिये हम चाहें तो भारत में भी इस प्रकार की खान-पान की

"Suspension" जैसी प्रथा की शुरुआत कर सकते हैं जिससे आम आदमी भी निजी तौर पर अपने सामर्थ्य अनुसार

बिना किसी लब्बोलुआब के लोगों की भलाई में अपना योगदान कर सकता है।

अच्छा, आज के लिये इतना बहुत है। अब मुझे बहुत तेज नींद आ रही है, अगली बार फिर तुम्हारे साथ अपनी यादें ताजा करूँगी।


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