आँसुओं की बारिश
आँसुओं की बारिश
शहर के जाने माने वकील मेहरा जी कल रात से ही परेशान हैं। पूरे घर में अफरातफरी मची हुई है। उनकी पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल है। विदेश में पढ़ रहे बेटे को अब तक तीन-चार बार फोन कर चुकी हैं। पूरा एक दिन बीत गया उसे गये हुए....पता नहीं कहाँ चला गया मेरा बच्चा... कह कर आँखों में लुढ़क आए आँसुओं को पोंछा और नौकरों को डाँट लगाई। कल शाम यही कोई चार बजे वह किटी पार्टी के लिए निकली थीं और तभी वह कहीं चला गया। घर से नौकर के फोन आने पर पार्टी बीच में ही छोड़ वह घर की ओर भागीं और तुरंत ही मेहरा साहब को भी खबर की।
कुछ दिनों का ही तो था जब उनका उस पर दिल आ गया था, पहली नजर में ही उसकी मासूमियत भा गयी थी। घर में उसकी आवभगत और उसके रहने के इंतजाम में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी गई। एक नौकर अलग से सिर्फ उसकी देखभाल के लिए रखा गया आखिर वह था भी तो सबका लाड़ला। परिवार का एक महत्वपूर्ण सदस्य जिसके बिना उनके दिन की शुरूआत नहीं होती। सुबह की पहली चाय और शाम को वकील साहब के लौटने पर वो अगर न दिखे तो चैन नहीं पड़ता था।
पूरे दिन की दौड़ भाग के बाद भी जब कुछ पता नहीं चला तो अगले दिन अखबार में उसके फोटो के साथ गुमशुदगी की खबर छपवायी गयी और लाने वाले के लिए इनाम भी रखा गया। मिसेज मेहरा ने पूरे दिन कुछ खाया पिया नहीं और न ही कहीं गईं।
इसी तरह दूसरा दिन भी बीतने को आ गया पर उसकी खबर नहीं मिली। वकील साहब जिस मुकदमे की पैरवी कर रहे थे आज उसकी कोर्ट में तारीख थी लेकिन उनका मन किसी काम में नहीं लग रहा था सो अस्वस्थता का बहाना कर तारीख आगे बढ़वा दी और दोनों पति-पत्नी उसकी शरारतों को याद कर उसकी ही बातें किये जा रहे थे कि तभी मेहरा साहब का मोबाइल बजा। फोन उठाया तो उधर किसी महिला की आवाज थी, उसने बताया कि अखबार में छपी खबर देखकर फोन किया है जिसे वह खोज रहे हैं वह यहाँ पर है, आप अभी यहाँ आ जाइये।
मेहरा साहब को जैसे काटो तो खून नहीं, जगह का पता सुनकर वह सन्न रह गये। कुछ समझ में नहीं आ रहा था मानो दिमाग सुन्न पड़ गया हो। बाहर बड़ी मूसलाधार बारिश हो रही था और मेहरा साहब के दिलो-दिमाग में ढेरों बिजलियाँ एक साथ कौंधने लगी हों। मिसेज मेहरा समझ नहीं पा रही थीं कि अचानक उनके पति को क्या हो गया। उन्होंने पूछने की कोशिश की तो भी वह कुछ बोले नहीं सिर्फ उन्हें साथ आने का इशारा भर किया।
पति-पत्नी गाड़ी लेकर चल दिये और गाड़ी जिस गेट के सामने रुकी वहाँ शहर के सबसे ज्यादा सुविधासम्पन्न "आशीर्वाद वृद्धाश्रम" का बड़ा सा बोर्ड लगा हुआ था और वहीं खड़ी एक सहायिका जैसे उनका ही रास्ता देख रही थी। सहायिका ने बताया सर, पिछले दो दिन से वो यहीं पर है, पहले दिन तो वो गेट पर ही बैठा रहा और सेक्योरिटी गार्ड की नजर से बचकर कब अंदर आ गया पता ही नहीं चला। बहुत कोशिश की उसे यहाँ से भगाने की पर वो तो जाने का नाम ही नहीं ले रहा, आज जब अखबार में छपी खबर देखी तो मैंने आप लोगों को फोन किया। उन दोनों को लेकर वह एक कमरे की ओर बढ़ चली लेकिन मेहरा साहब के बोझिल पैर आगे बढ़ने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उन्हें अब सब समझ में आ चुका था। हृदय जोर-जोर से धड़क रहा था, उन्होंने धीरे से दरवाजे को खोला तो अंदर का दृश्य देख वह पानी-पानी हो गये।
जिन्दगी का इतना बड़ा सबक उन्हें एक बेज़ुबान जानवर सिखाएगा, इसकी तो उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। अंदर उनका प्यारा कुत्ता जिसे वह पिछले दो दिन से ढूँढ रहे थे, वृद्धाश्रम में रहने वाली उनकी माँ जिसे वो पिछले महीने ही यहाँ छोड़ गये थे, की गोद में बैठा अपनी झबरीली पूँछ हिला रहा था और माँ अपने झुर्रीदार हाथों से उसकी पीठ को सहला रही थीं। उस कुत्ते और माँ की आँखों से आँसुओं की धार बह रही थी।
यह दृश्य देखकर मेहरा साहब की आँखों से भी गिरती अविरल अश्रुधारा और पश्चाताप की दामिनी ने उनके मन की ग्लानि को धो डाला और वह दौड़कर माँ के पैरो में गिर पड़े। माँ का हाथ बेटे के सिर को सहलाने लगा। किसी के मुँह से एक शब्द नहीं निकला, लेकिन वहाँ खड़े हर व्यक्ति का हृदय भर आया और सभी की आँखों में आँसू थे। आज ये समझना बहुत मुश्किल था कि बारिश कहाँ पर ज्यादा तेज थी, बाहर बादलों से बरसता मूसलाधार पानी या माँ-बेटे की आँखों से झर-झर गिरते अनवरत आँसू...!!