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Sunita Shukla

Tragedy

4  

Sunita Shukla

Tragedy

तारों से बातें !

तारों से बातें !

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सुबह से ही रमिया कुछ परेशान थी, यूँ भी जब से उसकी बुढ़िया माई मरी है वो ऐसे ही अनमनी, खोई-खोई सी रहती है। रमिया का जीवन भी कुछ कम संवेदनात्मक नहीं है। कोई नहीं है उसके आगे-पीछे, यहीं फुटपाथ पर उसका जन्म हुआ था और जन्म देते ही उसकी माँ भी चल बसी, छोड़कर उसे इस भरी दुनिया में नितांत अकेला।

एक दिन की बच्ची भूख-प्यास के मारे बिलबिला रही थी, वो तो भला हो बुढ़िया माई का जिसने तरस खाकर उसे गोद में उठा लिया। बुढ़िया माई भी उसी फुटपाथ पर रहती, वो खुद एक-एक दाने को मोहताज, लेकिन उस पल अभागी दुधमुही बच्ची के लिये तो वही भगवान थी। ये रमिया नाम भी उसी का दिया हुआ था, कहते हैं बुढ़िया माई का एक बेटा भी है पर आज तक किसी ने उसे कभी नहीं देखा और वो यहीं दूसरों के सहारे जिन्दगी के बचे हुए दिन काट रही है।

दूसरों के सहारे दिन गुजारने वाली बुढ़िया माई आज रमिया का सबसे बड़ा सहारा थी। रमिया भी धीरे-धीरे बड़ी होने लगी, कभी कोई तरस खाकर फटे पुराने कपड़े दे देता तो कहीं न कहीं से कुछ खाने को मिल जाता और नहीं तो कभी दोनों भूखे ही रात गुजार देतीं। उस पर बदकिस्मती ये कि रमिया कुछ बोल नहीं सकती थी और उसकी हरकतों से जल्दी ही पता चल गया कि वह और बच्चों जैसी नहीं है, कुछ कमअक्ल है, लेकिन बुढ़िया माई की हर बात वह बखूबी समझती।

बड़ी होती रमिया फुटपाथ पर बुढ़िया माई के साथ लेटी हर समय आसमान में देखती रहती, एकटक उन झिलमिलाते तारों को निहारती रहती। माई ने बताया था तेरी माँ दूर आसमान में चली गई सो वह उन सितारों में ही उसको ढूँढा करती। किस्मत की मार इतनी ही नहीं थी एक रात बुढ़िया माई जो सोई तो फिर उसकी सुबह कभी न हुई।

एक बार फिर रमिया अनाथ हो गई। चौदह पंद्रह साल की ही तो रही होगी उस वक्त। अब उसे एक और सितारे की खोज रहती, अपनी बुढ़िया माई की. दूर कहीं आसमान में, इसीलिए सारी रात वो उन तारों में ही खोई रहती। अब तो वह खाना माँगने भी कभी-कभार ही जाती। कहते हैं न, अगर पैसा हो तो हर ऐब छुप जाता है लेकिन गरीबी, वह कुछ छिपा नहीं पाती बल्कि दुनिया वाले तो और उधेड़-उधेड़ कर देखना चाहते हैं। ऐसे ही उम्र का बदलाव अर्धविक्षिप्त रमिया के शरीर पर भी दिखने लगा। वो फटे पुराने कपड़े शरीर के उभारों को छिपाने में असमर्थ थे, सो दुनिया वालों की नजर तो पड़नी ही थी।

ऐसे ही जाने किसकी नजर पड़ गई उस पर और इसका पता भी तब चला जब उसके मरियल से शरीर में उसका पेट अलग से दिखने लगा। अब तो जो उसे देखता उसकी बदकिस्मती पर अफसोस भरी साँस लेकर ही आगे बढ़ता। एक तो अबोली, अर्धविक्षिप्त और उस पर से ये बच्चा, अब शब्दों से तो हर कोई उसके साथ था लेकिन मदद को एक भी हाथ आगे नहीं आया।

फिर एक दिन कुछ लोग आये और उसे अपने साथ ले गए, पूछने पर पता चला कि एक समाजसेवी संस्था है जो ऐसे जरूरतमंद लोगों की सहायता करती है, शायद आते-जाते लोगों में से किसी को रमिया की हालत देख, उस पर तरस आ गया और उसने उन लोगों को उसके बारे में बता दिया।

अब रमिया के सिर पर एक छत थी, उस के जैसी और भी कई किस्मत की मार खाईं औरतें थीं वहाँ और उसका ख्याल रखने वाले लोग भी लेकिन एक बात अब भी पहले जैसी ही थी वह था, खुले आसमान में तारों से बातें करना, दूर अंतरिक्ष में खो गई उसकी माँ और बुढ़िया माई को उन झिलमिलाते सितारों में ढूँढना। शाम होते ही वह उस कमरे से लगे बड़े अहाते से आसमान की ओर टकटकी लगाए रहती।

अब उसे शायद अपनी हालत का आभास हो गया था और समझ भी आ रहा था तभी तो अपने हाथों से अक्सर ही अपने बढ़ते पेट को सहलाती और कुछ कहने की कोशिश करती। शब्द तो स्पष्ट नहीं थे लेकिन उसके अंदर जागृत हो रही मातृत्व भावनाएँ हर कोई बखूबी समझ सकता था।

समय था सो बीतता रहा, अच्छा हो या बुरा, ये थोड़े ही टिकता है। रमिया को यहाँ आये चार-पांच माह गुजर चुके हैं, लेकिन कभी किसी ने उसे मुस्कराते या दूसरों से घुलते-मिलते नहीं देखा। उसकी अपनी एक अलग ही दुनिया थी जिसमें अभी तक सिर्फ वो और दूर आसमान के वो सितारे थे पर अब एक तीसरा भी है उसकी कोख में पल रहा नन्हा जीव।

उसके प्रसव का दिन भी लग रहा है नजदीक आ गया तभी तो आज सुबह से ही वह कुछ परेशान है, बोल तो सकती नहीं लेकिन हाव-भाव से उसकी पीड़ा समझी जा सकती है। संस्था की डाॅक्टर दीदी ने आकर उसका मुआयना किया और जो बताया उसे सुनकर सब सन्न रह गये। शायद रमिया की मनोदशा का गहरा प्रभाव बच्चे पर पड़ा था और उसने पेट में हिलना डुलना कम कर दिया था।

डाॅक्टर दीदी ने प्यार से रमिया का सिर सहलाया, उसे दवाई खिलाई और कुछ देर उसके पास बैठीं, फिर आया को रमिया का ख्याल रखने को कह कर चली गई ।

दूसरे दिन सवेरे ही रमिया को दर्द से कराहते देख आया ने डाॅक्टर दीदी को फोन करके बुलाया और दुपहरी तक रमिया की गोद में उसका बच्चा था लेकिन डाॅक्टर दीदी ने पहले ही आगाह कर दिया कि बच्चे की हालत ठीक नहीं है और उसके बचने की उम्मीद भी बहुत कम है पर कुछ कहा नहीं जा सकता कि अब क्या होगा...और फिर वही हुआ शाम होते-होते बच्चा दूर आसमान में खो गया....।

अपने मरे हुए बच्चे को सीने से लगाए, रमिया सारी रात अहाते में तारों को निहारती रही...कुछ गुनगुनाती रही शायद अपने बच्चे के लिये लोरी गा रही थी। उतनी समझदार नहीं थी तो क्या आखिर वह भी थी तो एक माँ ही...।

उसकी स्थिति देख सबने उसे वहीं रहने दिया कि शायद सुबह तक वह कुछ संभल जाए और वह मरे हुए बच्चे को सीने से लगाए निहारती रही दूर आसमान में तारों को,...उनमें से एक सितारा उसकी माँ,... बुढ़िया माई और.. एक नया नन्हा टिमटिमाता सितारा उसका अपना बच्चा, बस ताकती रही उन्हें निस्तेज, निस्तब्ध और निस्सहाय सी....।

पूरी रात ऐसे ही बीत गई और वो वहाँ से हिली भी नहीं, सुबह आया ने देखा तो उसे कुछ शंका हुई, पास जाकर जब आया ने उसे हिलाया तो उसका शरीर वहीं ढुलक गया और बच्चे का मृत शरीर उसके हाथों से छिटक कर दूर जा गिरा....।

शायद बड़ी दूर निकल गई रमिया जिंदगी के ताने-बाने से ...अब वह भी एक सितारा बन गई थी ऊपर आसमान में... चली गई दूर कहीं अंतरिक्ष में......।


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