Sunita Shukla

Inspirational Thriller Children

4  

Sunita Shukla

Inspirational Thriller Children

अनोखी रात

अनोखी रात

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बात है ये उस सियाह रात की है जब चारों ओर घनघोर

बरसात हो रही थी। और मैं अपने कमरे में प्यारे से टैडी के साथ रजाई ओढ़कर सो रही थी कि माँ ने आवाज दी और पास आकर मुझे उठाया और अपने बाहर जाने की बात बतायी।

बोले मेरी प्यारी बिटिया जाना बहुत जरूरी है। तुम्हारे पापा के दोस्त का प्रमोशन हुआ है। हम उन्हें बधाई देने जा रहें हैं। तुम चिन्ता नहीं करना, और आराम से सो जाना।

अभी तुम दरवाजा बंद कर लो और जब हम आएं तब ही खोलना। जब पापा और मम्मी चले गये तो मैं अपने कमरे में जाने लगी कि तभी बड़ी जोर से बादल गरजे और लगातार बिजलियाँ चमक रहीं थी तड़-तड़-तड़-तड़....। हाॅल की खिड़कियाँ जोर-जोर से चरर-चरर की आवाज के साथ मानो अपने आप ही हिलती-डुलती जातीं। बड़ी तेज-तेज से हवा चल रही जैसे करती सरर-सरर.... खिड़की से बरसात की बूँदें भी आ रहीं थी घर के अंदर....।

अजीबोगरीब आवाजों से मुझको बड़ा डर लग रहा था तभी ऊपर के कमरे में भी जैसे कुछ हलचल सी हुई, डरते-डरते, धीरे-धीरे सीढ़ियाँ चढ़कर मैं ऊपर पहुँची

और धीरे से कमरे का दरवाजे को खोला धकेलकर....।

सामने का दृश्य देखकर तो मेरे होश उड़ गए, मुँह से मेरे कोई आवाज भी न निकली और पलकें भी न झपकीं.... घुल-मिल अँधेरे में दर्जनों जोड़ी आँखें चमक रहीं थीं, मैं कुछ समझ पाती उसके पहले ही अचानक सोफे से दो बाहें निकली और मेरी तरफ वो लपकीं उनसे बचने की खातिर मुझको कुछ भी समझ न आ रहा था। कुछ सोचने का भी वक्त नहीं था इसलिये मैंने खुद को आलमारी में छिपा लिया।

घुप अंधेरे में आलमारी से पीली-पीली आँखें झांक रहीं थीं। घबराहट में डर के मारे जैसे मेरी तो सांस ही रुक गई...क्या करूँ अब इस बड़े भयानक मंजर से खुद को मैं कैसे बचाऊँ .... इन सारी खतरनाक सी चीजों से कैसे बाहर आऊँ। आलमारी से निकल कर भागने की कोशिश की तो देखा सर्दी वाला मेरा कोट कमरे में दौड़ लगा रहा था। मोटर के पहियों के जैसी डरावनी आवाज के साथ घड़ी की सुईयाँ दौड़ लगा रहीं थीं।

जाने कैसे उस कमरे की हर चीज जिन्दा हो गई थी अगर सब मेरे मेरे पीछे पड़ गईं....डराए जा रहीं थी। माँ...पापा मुझे बचा लो....प्लीज....पर हाँ कोई नहीं था मेरी मदद के लिये। घबराहट में मैं कमरे में भाग रही थी, खुद को बचते-बचाते मैं थक चुकी थी लेकिन फिर भी वो सब थे मेरी ओर को आते ही जा लिए थे।

डर के मारे आँखें भींचकर मैं माँ-माँ-माँ चिल्लाई अंदर तभी लगा जैसे कमरे में रोशनी हो गई है और माँ की आवाज दे रही है।

आँखें खोलकर मैंने जब देखा तो माँ दरवाजे पर खड़ी थी।

तब जाकर मुझे जैसे चैन आया और मैं दौड़कर उनके आँचल में छुप गई। बड़े प्यार से माँ ने फिर मेरा सिर सहलाया और बिस्तर पर लिटाया। तब धीरे-धीरे मैंने उनको सारी बात बताई तो वह मुस्कुराने लगीं और बोलीं मेरी प्यारी बिटिया रानी लगता है तुमने कोई डरावना सपना देखा है... इसी लिये तो मैं तुमसे टीवी कम देखने के लिये कहती हूँ, और फिर माँ और बेटी दोनों नींद के आगोश में सो गईं।


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