Kumar Vikrant

Abstract

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Kumar Vikrant

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षड्यंत्र

षड्यंत्र

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मयखाना बार अभी खाली सा था। कोने की एक टेबल पर वीर अकेला बैठा था और उसके सामने थी ऐशट्रे में रखी अधजली सिग्रेट, हाथ में शराब का प्याला और आधी भरी शराब की बोतल । उसके २६ वर्षीय चेहरे पर मनहूसियत छायी हुई थी । उसके सामने बैठा था रंजीत आँखों में सवाल लिए । 

"बोल भाई क्या चाहता है तू?"

"भाई मैंने शादी इसलिए की थी कि बहन की शादी में हुए खर्च की कुछ भरपाई हो जाएगी, लेकिन मीरा को उसके बाप ने कुछ लाख रूपये का दहेज़ देकर मेरे माथे जड़ दिया । मै मीरा से छुटकारा चाहता हूँ ।"—वीर बोला। 

"कैसे?" 

"भाई कोई ऐसा चाहिए जो मीरा को इस तरह ठिकाने लगा दे की उसकी मौत एक्सीडेंट लगे ।"

"अबे ये मारना-काटना गए ज़माने की बात है, तेरी बीवी को बिना मारे ठिकाने लगवा सकता हूँ ।"

"वो कैसे?"

"दो तरीके है; पहले में तुझे खर्च करना पड़ेगा, दुसरे में मैं तुझे कुछ पैसा दे सकता हूँ ।"—रंजीत ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा । 

वीर ने उत्सुकता भरी निगाह से रंजीत की और देखा । 

"भाई तुझे अपने घर में मेरा एक आदमी पेइंग गेस्ट रखना पड़ेगा, छह महीने में तुझे तेरी बीवी से छुटकारा मिल जायेगा ।"

"क्या करेगा वो?"

"तू अपनी बीवी को थोड़ा सा इग्नोर करना, बाकी काम वो आदमी कर देगा । छह महीने के अंदर या तो तुझे तेरी बीवी की चरित्रहीनता के सबूत मिल जायेंगे, जिनके दम पर तू उस से कानूनी तौर पर छुटकारा पा सकता है । या तेरी बीवी उस आदमी के साथ भाग जाएगी, और तू आजाद हो जायेगा दूसरी शादी कर मोटा दहेज़ लेने के लिए ।"

"खर्चा बोल ।"

"पाँच लाख तेरी बीवी की चरित्रहीनता के सबूत देने के लिए तुझे देने होंगे । और अगर तेरी बीवी को भगाना है तो तुझे एक लाख रूपये दे सकता हूँ ।"

"भगाकर क्या करोगे तुम उसका?"—वीर ने पूछा । 

"क्या करेगा जानकर?"

"अरे मैं कही फंस न जाऊ ।"

"नहीं फंसेगा, तुझे फंसाने के लिए वो कभी वापिस नहीं आएगी । वो ऐसी जगह बेच दी जाएगी जंहा से वो जीते जी निकल न सकेगी ।"

"ठीक है दूसरे वाला तरीका ठीक रहेगा । कब देगा तू एक लाख रुपया?"

"जब मुझे मिल जायेगा, तुझे भी दे दूंगा ।"

"कब भेजेगा तू पेइंग गेस्ट को?"

"जब तू चाहेगा ।"

"इसी हफ्ते भेज दे, शुभ काम में देरी ठीक नहीं ।"

रंजीत उठ खड़ा हुआ और वीर से साथ हाथ मिलकर बार से बाहर चला गया । 

वीर के चेहरे पर अब एक मुस्कान थी, उसने अपना अधूरा प्याला गले के नीचे उतारा और नया पैग तैयार कर सिगरेट सुलगा ली । 

तभी उसके मोबाइल की रिंग बज उठी । मोबाइल में उसकी बहन सरिता की ससुर का नंबर चमक रहा था । 

उसने मोबाइल की स्क्रीन को टच करके कॉल को कनेक्ट किया, दूसरी और सरिता का ससुर दहाड़ रहा था । 

"अबे कैसी चरित्रहीन लड़की बाँध दी तुमने मेरे लड़के के साथ?"

"………क्या हुआ?" वीर ने घबरा कर पूछा । 

"अबे भाग गयी वो अपने यार के साथ, मेरे लड़के की जिंदगी ख़राब करके । छोडूंगा नहीं तुम लोगों को मैं।" कहकर उसने फ़ोन काट दिया । 

वीर के माथे पर पसीना आ गया । उसने बार का बिल चुकाया और तेजी से बाहर भागा, रंजीत की तलाश में, ये जानने के लिए की कही उसकी बहन भी तो किसी षड्यंत्र का शिकार तो नहीं हो गयी।


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