सिस्टम : स्वतंत्रता
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"शेखर आज तो संडे है; कम से कम आज तो अपने बच्चों और अपने परिवार को कुछ समय दे दो।"
"रश्मि समझा करो यार आज बॉस के बच्चों को मनोरंजन पार्क ले जाना है अगर टाइम से न पहुँचा तो बहुत गड़बड़ हो जाएगी।"
"भला सुनु क्या गड़बड़ हो जाएगी। लगे हाथ यह भी समझा दो मनोरंजन पार्क में बॉस के बच्चो को घुमाने का खर्च कौन देने वाला है।"
"जब मैं उन्हें पार्क ले जा रहा हूँ तो खर्च भी मुझे ही उठाना पड़ेगा।"
"अरे वाह यह तो कमाल है, अपने बच्चो को आज तक अपने शहर के शॉपिंग मॉल तक ले जाने की हिम्मत नहीं हुई तुम्हारी और बॉस के बच्चों को मनोरंजन पार्क ले जाओगे वो भी अपने खर्चे पर।"
"यहाँ ऐसा ही चलता है........."
"अब यह लेक्चर शुरू न करो कि यहाँ देश के राष्ट्रपति के अलावा सब किसी न किसी के आधीन है और सबको अपने बॉस की सुननी पड़ती है; अजीब हाल है, जरा बच्चों के साथ समय बिताने की बात क्या कह दी शुरू हो गए लेक्चर देने के लिए।"
"सॉरी रश्मि मेरा ऐसा कोई उद्देश्य नहीं था; बस इतना ही कहुँगा यदि शकुन से रहना है तो सिस्टम से न उलझो बस सिस्टम को फॉलो करते रहो, क्या हुआ अगर आज मेरा संडे बेकार हो रहा है और दो पैसे भी जेब से खर्च हो रहे है लेकिन बाद में मुझे आकस्मिक अवकाश लेने में, अर्जित और अन्य अवकाश लेने में कभी कोई दिक्कत नहीं होगी।"
"कमाल है, क्या उन सब अवकाशों पर तुम्हारा कोई कानूनी हक नहीं है?"
"हक है पगली पूरा हक है लेकिन साल के अंत में सिर्फ एक खराब सी आर इस हक पर भारी पड जाती है।"
"और सी आर तुम्हारा बॉस लिखता है।"
"हाँ बॉस ही लिखता है, तीन खराब सी आर और नौकरी खतरे में।"
"बाबा रे बाबा और तुम कहते हो कि तुम अपने ऑफिस के बॉस हो और स्वतंत्रता से काम करते हो, लेकिन आज पता लगा तुम्हारा बॉस तुम्हे नौकरी से निकलवाने की ताकत रखता है।"
"यही सिस्टम है रश्मि।"
"तो नाम के ऑफिसर महोदय तुम भी तो किसी की सी आर लिखते होंगे?"
"हाँ मेरे अंडर स्टाफ की सी आर मैं ही लिखता हूँ।"
"अरे वाह लगता है तुम्हारी कलम तुम्हारे बॉस की कलम से कुछ कमजोर है, मैंने तो आज तक तुम्हारे ऑफिस के किसी आदमी को तुम्हारे बच्चों को घुमाते फिराते नहीं देखा है।"
"कमजोर नहीं है रश्मि लेकिन कोई जरूरी तो नहीं है कि जैसा मेरा बॉस करता है वैसा मैं भी करूँ?"
"यानि तुम्हारा स्टाफ अपनी नौकरी स्वतन्त्रता के साथ करता है?"
"स्वतन्त्रता सही शब्द नहीं है, वो सरकार के बनाए नियम के अनुसार काम करते है जिसमे मैं बिना मतलब का हस्तक्षेप नहीं करता हूँ।"
"धन्य हो तुम, तुम्हारी बाते समझ से परे है.......बाबा जो करना है करो लेकिन हमारा संडे खराब न करो।"
"तुम लोग एन्जॉय करो, दोपहर बाद मैं भी आ जाऊँगा। रश्मि जो बात मुझे अपने लिए खराब लगती है वो किसी और के साथ मुझे नहीं करना है। सिस्टम को तो मैं बदल नहीं सकता हूँ लेकिन अपने स्टाफ को बिना मतलब परेशान न करके एक छोटा सा बदलाव ला ही सकता हूँ उन्हें उनकी स्वतंत्रता को एन्जॉय करने का अवसर तो दे ही सकता हूँ।"
"बिलकुल अवसर दो और अब जाकर आओ ताकि तुम्हारी थोड़ी बहुत स्वतन्त्रता तुम्हारे परिवार के भी काम आ सके।"
"ठीक है।"
कहकर शेखर घर से बाहर निकल गया।