झूठी जीत : सफलता
झूठी जीत : सफलता


"महाराज यह दुर्गम गढ़ का किला हमारे सिर का सबसे बड़ा दर्द बना हुआ है इस किले में मौजूद १०० सैनिक हमें दुर्गम पुर पर कब्जा करने से रोकने के लिए दिन रात तैनात है।" सेनापति लखन सिंह ने कठोर सिंह पैरों में बैठते हुए कहा।
"मुर्ख सेनापति आज हम अपने किले मक्खन गढ़ में पड़े पड़े एक महीना बीत चुका है।" कठोर सिंह गुर्रा कर बोला, "तुम हमसे रोज वादा करते हो कि आज तुम दुर्गम गढ़ पर कब्जा कर लोगे लेकिन तुमसे कुछ भी नहीं हो पाया है। अब बताओ हम अपने राज्य से कब तक दूर रहे और इस मनहूस किले में पड़े रहे?"
"महाराज मुझे एक सप्ताह का समय दीजिए मेरे पास एक ऐसी योजना है......." लखन सिंह बोला, "यदि वो काम कर गई तो दुर्गम गढ़ हमारे कब्जे में होगा।"
"चल दिया एक सप्ताह का समय।" कठोर सिंह गुस्से से बोला, "यदि तुम्हारी योजना सफल न हुई तो तुम्हारा सिर मैं खुद कलम करूँगा।
उसी समय दुर्गम गढ़ में
"सेनापति कालू सिंह तुमने मुझे एक महीने से यहाँ दुर्गम गढ़ में फँसा रखा है, तुमने हमें सपने दिखाए थे कि पलक झपकते ही मक्खन पुर के मक्खन गढ़ पर कब्जा कर के मक्खन पुर को हमारा गुलाम बना दोगे।" महाराजा जालिम सिंह गुस्से से बोला।
"महाराजा मक्खन गढ़ में पूरे १०० सैनिक है जो मक्खन गढ़ पर हमारे हर हमले को नाकाम कर रहे है।" सेनापति कालू सिंह महाराजा जालिम सिंह के सामने घुटनो पर बैठ कर बोला, "लेकिन अब मैंने एक ऐसी योजना बना ली है जिससे हम मक्खन गढ़ पर आसानी से कब्जा कर लेंगे और एक बार किले पर कब्जा होते ही पूरा मक्खन पुर हमारे पैरो में होगा।"
"अच्छा जरा मैं भी सुनु एक महीने से जो तुम न कर सके वो अब कर लोगे?" महाराजा जालिम सिंह आश्चर्य से बोला, "बोलो कालू सिंह ये बात मैं तुम्हारे मुँह से सुनना चाहता हूँ।"
"महराज अब कहने के बजाय कुछ करके दिखाने का टाइम आ गया है।" कालू सिंह विचारपूर्ण मुद्रा में बोला, "महाराज जो मैं करना चाहता हूँ उसके लिए सिर्फ एक सप्ताह का समय दीजिए; आगर मैंने एक सप्ताह में मैंने मक्खन गढ़ पर कब्जा न किया तो आप सरे आम मेरा सिर कलम करवा देना।"
"तुझे धरती में गाड कर तेरे ऊपर घोड़े दौड़वा दूँगा।" जालिम सिंह दाँत पीसते हुए बोला, "संभल जा कालू सिंह तेरी वजह से एक महीने में इस फटीचर किले में सड़ रहा हूँ।"
एक सप्ताह बाद
मक्खन गढ़
"सैनिको दुर्गम गढ़ तक जाने वाली सुरंग अब दुर्गम गढ़ तक पहुँचनी वाली है सबके सब अपनी तलवारे ले कर तैयार हो जाए।" सेनापति लखन सिंह जोश के साथ बोला, "महाराज आप भी आज अपनी वीरता का प्रदर्शन कर सकते है, दुर्गम पुर के महाराज जालिम सिंह को आप ही नर्क के द्वार पर छोड़ कर आएंगे।"
"ठीक है-ठीक है।" कठोर सिंह गुर्रा कर बोला, "अगर आज दुर्गम गढ़ पर कब्जा न हुआ तो तेरा सिर मैं आज ही कलम करूँगा।
लखन सिंह ने गौर से दुर्गम गढ़ तक जाने वाली सुरंग को देखा और सैनिको को सुरंग में प्रवेश करने का इशारा किया। लखन सिंह के पीछे सैनिक धड़धड़ाते हुए सुरंग में घुस गए, कठोर सिंह सबसे पीछे सुरंग में घुसा।
दुर्गम गढ़
"आइये महाराज आज मक्खन गढ़ को फतह करने का समय आ गया है।" कालू सिंह ने गर्म हवा से उड़ने वाले गुब्बारों से बंधी टोकरियों में बैठे सैनिको की तरफ देखते हुए कहा, "हम किले की छत के रास्ते मक्खन गढ़ में प्रवेश करेंगे और वहाँ मौजूद सैनिको को गाजर मूली की तरह काट देंगे, वहाँ का राजा कठोर सिंह आपका शिकार है, उसे आप जैसे चाहे नर्कलोक पहुँचा सकते है।"
"बहुत बड़ी बड़ी बातें न कर, अगर आज अगर मक्खन गढ़ पर हमारा कब्जा न हुआ तो कल सुबह तेरा तमाशा सारा दुर्गम पुर देखेगा।" जालिम सिंह गुस्से से बोला।" चलो अब सैनिको के साथ कूच करो।"
जालिम सिंह के इशारे पर किले के सारे सैनिक गर्म हवा वाले गुब्बारों में उड़कर मक्खन गढ़ की तरफ चल पड़े। दस मिनट बाद पूरे १०० सैनिक मक्खन गढ़ की छत पर जा उतरे। सभी सैनिको के मक्खन गढ़ की छत पर आने के बाद कालू सिंह चिल्ला कर बोला, "चलो सैनिको आज अगर तुम बहदुरी से लड़े तो सफलता हमारे कदम चूमेगी और यह किला हमारे कब्जे में होगा।"
सैनिक धड़धड़ाते हुए किले में जाने वाली सीढ़ियों के रास्ते पूरे किले में फ़ैल गए।"
उसी समय
मक्खन गढ़ के सारे सैनिक दुर्गम गढ़ में जा पहुँचे।
"अब इस सुरंग को तबाह कर दो।" महाराज कठोर सिंह बोला, "इस सुरंग का दुरूपयोग हो सकता है।"
लखन सिंह जो सुरंग में जगह जगह बारूद लगाते हुए आया था उसने बारूद में आग लगा दी और कुछ ही पलों में पूरी सुरंग ध्वस्त हो गई।
दूसरे ही पल में पूरा किला मक्खन गढ़ के सिपाहियों के कब्जे में था लेकिन ये क्या किले में कोई सैनिक तो क्या चूहे का बच्चा भी वहाँ न था।
"ये क्या तमाशा है लखन सिंह?" कठोर सिंह गुस्से से बोला, "इस किले के सैनिक कहाँ है?"
"कुछ समझ नहीं आ रहा महाराज।" लखन सिंह आश्चर्य से बोला, "किले की छत पर जाकर देखते है कहीं वो सैनिक किले की छत पर तो नहीं।"
जब तक मक्खन गढ़ के सैनिक दुर्गम गढ़ की छत पर पहुँचे तब तक दुर्गम गढ़ के सैनिक भी पूरे महल में धक्के खाकर मक्खन गढ़ की छत पर आ चुके थे।
जब दोनों किलो के सैनिकों ने देखा कि वो एक दूसरे के किलो पर कब्जा करने में सफलता प्राप्त कर चुके है तो उन्हें अपनी सफलता का मतलब समझ नहीं आया क्योंकि वो सफलता तो प्राप्त कर चुके थे लेकिन किस कीमत पर? अपना किला हार जाने की कीमत पर।
एक दूसरे के किलो पर कब्जा करके भी दोनों राज्यों के सेनापति और राजा अपना सिर पीट रहे थे और अपना किला वापिस लेने की योजना बना रहे थे।