Kumar Vikrant

Others

4.0  

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फरिश्ता : अजनबी

फरिश्ता : अजनबी

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सुधा ने जब स्कूल छोड़ा तो शाम के पाँच बज चुके थे। हेडमास्टर धर्मदास ने उस रोज तो हद ही कर दी थी; रोज की तरह उसने आज भी सुधा को स्कूल के अतिरिक्त कामों के लिए स्कूल की छुट्टी होने के बाद रोक लिया था। स्कूल की दूसरी टीचर्स मेधा और दीपा धर्मदास की एक न सुनती थी और छुट्टी होते ही अपनी स्कूटी उठा कर अपने घर चली जाती थी।

सुधा संकोची स्वभाव की होने के कारण ना नहीं बोल पाती थी इसलिए धर्मदास उसे तीसरे दिन किसी न किसी काम के बहाने स्कूल में रोक लेता था और फिर इधर-उधर की बातें करके उसका दिमाग खाया करता था। धर्मदास स्कूल के पास के गाँव में रहता था और बूढ़ा होने के कारण उसकी घर के लिए कोई जिम्मेदारियां भी नहीं थी इसलिए वो कब तक स्कूल में बैठा रहे उसके परिवार को कोई फर्क नहीं पड़ता था। सुधा की समस्या अलग थी, पति से तलाक के बाद अब वो अपनी तीन साल की बेटी के साथ अपनी माँ के घर में रहती थी।

अपनी एकमात्र संतान अकेली बेटी के तलाक से दुखी सुधा की माँ उसके और उसकी बेटी के भविष्य के लिए परेशान रहती थी। सुधा की परेशानी तो अलग ही थी; दूसरे पुरुषो के समान धर्मदास भी उसके तलाकशुदा होने को उसके चरित्रहीन होने और प्रत्येक पुरुष को आसानी से उपलब्ध होने का अवसर मानता था और अपनी इसी सोच की वजह से वो सुधा को अक्सर स्कूल में देर से रोक लेता था।

आज जब सुधा स्कूल से अपनी स्कूटी लेकर निकली तो सर्दी की शाम होने की वजह से धुंधलका सा छाने लगा था। सुधा चिंतित थी कि अब ३५ किलोमीटर का सफर रात में कैसे होगा। एक बार उसने स्कूल वाले उस गांव से शहर जाने वाली बस से जाने की सोची तो और निराश हो गई क्योंकि सर्दी में शहर जाने वाली अंतिम बस तो चार बजे ही गांव से जा चुकी होगी।

नवादा और तिरपुरी जैसे छोटे गाँव पार करके जब सुधा हाइवे पर पहुँची तो शाम के ०५ : ३० हो चुके थे और अब शाम ने रात का रूप ले लिया था। थोड़ी देर में कोहरा भी आ जाएगा इसलिए सुधा अपनी स्कूटी को बहुत तेजी से चला रही थी। वो लगभग १० किलोमीटर ही चली थी कि हाइवे पर ट्रको और कारो की लम्बी कतार देख कर उसका माथा ठनका। थोड़ी दूर चलने पर उसे दो पुलिस वाले दिखे जो उसे वापिस जाने का इशारा करते हुए बोले, "वापिस जाओ आगे दो ट्रको का एक्सीडेंट हो गया है रास्ता बंद है, खुलने में टाइम लगेगा।"

अब इस रात में वो कहाँ जाए, यही सोचते हुए सुधा ने अपनी माँ को फोन करके सारी स्थिति बताई, माँ को वो चिंतित नहीं करना चाहती थी लेकिन माँ को बताना तो जरूरी था।

"यहाँ से दो किलोमीटर पीछे पीपलगाँव चली जाओ वहाँ से उलटे हाथ पर जो खड़ंजे वाली सड़क है उससे सीधी चली जाना, पंद्रह किलोमीटर बाद तुम्हे यही हाइवे मिल जाएगा।" एक पुलिस वाला बोला, "लेकिन रात में वो रास्ता लेडीज के लिए अच्छा नहीं है इसलिए तुम्हारा जाना ठीक भी नहीं है इसलिए यहीं ट्रैफिक खुलने का इंतजार कर लो तो अच्छा रहेगा।"

तभी कुछ कारे वापिस आने लगी और पीपलगाँव की तरफ बढ़ने लगी। तभी सुधा के मन में न जाने क्या आया वो भी अपनी स्कूटी लेकर उन कारों के पीछे चल पड़ी। वो कुल दो कारें थी और काफी तेजी से चल रही थी। दो किलोमीटर बाद पीपलगाँव आया और वो दोनों कारे गाँव के साथ से जाने वाले खड़ंजे पर बढ़ गई। सुधा ने एक बार सोचा और वो भी उन कारों के पीछे चल पड़ी।

खड़ंजे वाला रास्ता बहुत उबड़ खाबड़ था, सुधा को स्कूटी चलाने में बहुत दिक्कत हो रही थी। धीमी गति से चलने की वजह से अब सुधा अपने आगे चलने वाली कारों से बहुत पीछे रह गई थी और कुछ देर में वो कारे उसे नजर आनी भी बंद हो गई।

अभी वो मुश्किल से सात किलोमीटर भी नहीं चली थी कि अचानक उसकी ठीक से चलती स्कूटी बंद हो गई।

"हे भगवान, ये भी आज ही होना था। दीपा सही कह रही थी स्कूटी की सर्विस करा ले किसी दिन तुझे यह धोखा दे सकती है।" सोचते हुए सुधा स्कूटी से नीचे उतरी लेकिन अब वो करे तो क्या करे? उसे तो स्कूटी को चलाऔर एक एस ने के अलावा उसके बारे में कुछ पता ही नहीं था।

वो पैदल ही स्कूटी लेकर चल पड़ी लेकिन आगे का आठ किलोमीटर का सफर वो भी इस सुनसान और खराब सड़क पर कैसे हो पाएगा वो सोचकर परेशान हो उठी। उजाड़ रास्ता था यदि कोई मानव दरिंदा मिल गया तो आज उसकी वो दुर्गति हो सकती है जो वो लड़कियों के बारे में अक्सर सुनती देखती आई थी। उसने यह सोचा भी नहीं था की तभी उसके पीछे से तेज लाइट आने लगी और एक एस यू वी उसके पास से होकर गुजरी।

कुछ दूर जाकर वो एस यू वी रुक गई और जब सुधा उस एस यू वी के बगल से निकली तो उस एस यू वी के चारो दरवाजे खुले और उनमे से पाँच आदमी निकले।

"क्या हुआ मैडम? स्कूटी खराब हो गई क्या; लाओ हम ठीक कर दे।" उन पाँचो में से एक बोला।

उन पाँचो को देखकर सुधा सहम सी गई।

"अबे यार टाइम खराब मत करो।" उन पाँचो में से एक बोला, "जंगल का तोहफा है; जल्दी से इसे चखो और अपना रास्ता पकड़ो।"

यह सुनकर सुधा डर गई और वो चिल्ला कर बोली, "खबरदार किसी ने मुझे छुआ भी......"

"छू लेंगे तो क्या कर लेगी?" उनमे से एक बोला, "ले छू लिया।"

कहते हुए उसने सुधा का हाथ पकड़ लिया।

सुधा बुरी तरह चींख रही थी क्योकि उसे अब पता लग चुका था कि उसकी क्या दुर्गति होने वाली है।

तभी पूरा क्षेत्र एक मोटर साईकिल की आवाज से रोशनी से भर गया और एक बुलेट मोटर साइकिल धड़धडाते हुए वही आ कर रुक गई।

"आ बेटी मेरी मोटर साईकिल पर बैठ जा, और तुम पॉंचो अपने रास्ते जाओ, नहीं तो बहुत बुरा हाल करूँगा तुम सबका।" मोटरसाइकिल पर बैठे एक कद्दावर इंसान की गंभीर आवाज से सुधा और वो पाँचों चौक पड़े।

सुधा को समझ नहीं आ रहा था कौन सही है कौन गलत लेकिन फिर भी उसने उस बदमाश का हाथ झटका और दौड़ कर मोटरसाइकिल पर जा बैठी। उसके बैठते ही मोटरसाइकिल हवा से बातें करने लगी और पंद्रह मिनट बाद वो मोटरसाइकिल हाइवे पर जा पहुँची। सड़क के पार एक रोडवेज स्टैंड था जहाँ दो रोडवेज खड़ी थी।

"वो सामने रोडवेज स्टैंड है; बसे शहर ही जा रही है।" वो कद्दावर मोटरसाइकिल सवार बोला, "इनसे तुम शहर की तरफ जा सकती हो, तुम्हारी स्कूटी पीपलगाँव के बाहर वाले कार सर्विस पहुँच जाएगी; कल जिस समय मन करे उठा लेना।"

कहकर वो कद्द्वार मोटरसाइकिल सवार वापिस खड़ंजे वाली सड़क की तरफ बढ़ गया।

अब तक सुधा उस डरावने अनुभव से उभर नहीं पा रही थी उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो अजनबी फरिश्ता कौन था जो समय रहते आ गया और उसको बचाकर हाइवे तक छोड़ गया।

सुधा ने अपनी आँखों से अनायास ही निकल आए आसुँओ को पोंछा और सड़क के पार खड़ी रोडवेज बस की तरफ बढ़ गई।


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