Lokanath Rath

Action Classics Inspirational

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Lokanath Rath

Action Classics Inspirational

सपनो के सौदागर

सपनो के सौदागर

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जिन्दगी भी क्या क्या सिखाता है और क्या क्या करवाता है। बचपन से सब बड़े होते हुए कुछ ना कुछ सपने देखते है और अपनी उस सपने को पूरा करने फिर जुड़ जाते। कुछ अपनी सपना पूरा करते है और कुछ कर नहीं पाते। पर सपने देखना कभी कोई बन्द नहीं करता। सपने देखा करो और उसे पूरा करने के लिए अपनी पुरे कर्म ईमानदारी और लगन के साथ करो। उसको तब तक रात दिन देखते रहो जबतक वो आप हासिल नहीं करते।

ये सारे बाते बचपन से मनोज अपनी पिता अजय कुमार से सुनते आरहा है। कभी कभी मनोज अपनी माँ अनीता से पूछता है, "माँ पिताजी मुझे और सबको जिन्देगी का बहुत बड़ा पाठ पढ़ाते आरहे है पर सच मे उनका सपना क्या था ? और अगर था तो वो पुरे हुए की नहीं ? मुझे तो हिम्मत नहीं हों रहा है पूछने के लिए। क्या तुम कुछ बता सकती हों ?"अपनी बेटा मनोज के बात सुनते हुए अनीता थोड़ी मुस्कुराती हुई बोलती," बेटा तुम अभी दसवीं मे पढ़ रहे हों। तुम्हारे पिता अब तुमको और बाकि तुम्हारे सारे दोस्तों को ऐ जिन्देगी का जो पाठ पढ़ाते है, वो भी उनके एक सपना है। यहाँ तुम्हारा इस गाओं मे कोई स्कूल नहीं था।

लोग यहाँ इसीलिए अपने बच्चो को यहाँ से दूर भेज पढ़ने की हिम्मत नहीं करते थे। तुम्हारी पिता इस स्कुल का आरम्भ खुद किये थे और अब ये इतनी बड़ी बन गया है। अब सब अपने बच्चों को पढ़ाते है। ये भी तुम्हारी पिता के एक सपना था। ये सबके पीछे भी एक बड़ी दर्दभरा कहानी है। बस इतने समझ लो की तुम्हारे पिता सपनो के सौदागर के शिकार होकर तब तय किये की उनके जैसे किसी और को दर्द ना मिले और कोई जैसे सपनो के सौदागर के फिर शिकार ना हों। इसीलिए वो ये सब कर रहे है। ये भी उनका एक सपना है। बस बाकि सब बाते तुम खुद बाद मे समझ पाओगे। अभी जैसे वो बोलते वैसे करते जाओ। " इतना कह कर अनीता अपनी घर की काम मे लग गई।मनोज ये सब सुनकर सोचने लगा की वो सपनो के सौदागर कौन है और उसके पिता अजय कुमार के साथ क्या हुआ था ? फिर वो अपने पढ़ाई मे ध्यान देने लगा कियूँ की इम्तेहान नजदीक आरहा था। ऐसे मनोज पढ़ाई मे बहुत तेज है और संगीत मे भी बहुत अच्छा है। वो अपनी पिता अजय कुमार से संगीत सीखा है और अब वो सबसे बड़े संगीत के गुरु पंडित रामचरण जी से सिख रहा है। पंडित रामचरण जी भी उसके पिता को सिखाते थे। अब वो करीब अशी शाल के होंगे पर उनसे सिखने बहुत बड़े बड़े कलाकार भी आते है। जब मनोज करीब तीन साल का था तब वो बड़ी सुरीली आवाज मे उसके पिता माता के साथ सूबे शाम भगवान के प्रार्थना गाया करता था। ये देखते हुए अजय ने उसे फिर संगीत सिखाना सुरु किये। बस तब से मनोज का संगीत का सफर चालू हुआ। अबतक उसने बहुत प्रतियोगिता जीत चूका है। अभी मनोज अपनी सपनो को ठीक से तय नहीं कर पा रहा है। उसको संगीत के लिए प्यार है पर वो पढ़ लिख कर कुछ बड़ा काम करना चाहाता है। इसीलिए कुछ तय नहीं कर पा रहा है।

जब दशवी की इम्तेहान ख़तम हुआ तो एक दिन अजय अपने बेटे मनोज को पूछे, " बेटा अब तुम आगे क्या करना चाहाता है ? कुछ तय किया ? "पहेले मनोज थोड़ा डर गया की क्या बोलेगा ? पर हिम्मत जुटाकर डर डर के बोला,"सच कहूँ पिताजी की मे कुछ ठीक से तय नहीं कर पा रहा हूँ। मुझे संगीत से बहुत प्यार है। लगता है जैसे ये मेरा जिन्देगी का एक बड़ा अंश है पर कुछ बड़ा काम करने को भी सोचता हूँ। अब आप मुझे बताइए की मे क्या करूँ ?"तब अजय थोड़ी देर मनोज को देखा और फिर दूर मे बैठी पत्नी अनीता को भी देखा। फिर अजय बोले,"देखो बेटा तुम संगीत से बहुत प्यार करते हों। तुम ये भी चाहते हों कुछ बड़ा काम करोगे। पर क्या काम करोगे तुम्हे पता नहीं। जिस काम के बारे मे तुम्हे पता नहीं उसे तुम पसंद करोगे या नहीं वो भी एक प्रश्न है। पर जिस को तुम जानते हों, प्यार करते हों और वो तुम्हे पसंद है, तो कियूँ ना उसी मे कुछ बड़ा करने नहीं सोचते हों ? मेरा मतलब की कियूँ ना तुम संगीत के दुनिया मे कुछ बड़ा करने के बारे मे सोचते नहीं ? अगर सोचोगे तो फिर मे तुम्हे उसके लिए देश के सबसे बड़ा संगीत कला एकादमी मे पढ़ने और तालीम लेने भेज सकता हूँ। पर पहेले तुम सोचो और तुम्हारे सपनो को अपनी दिल और दिमाक मे बिठा लो। तब फिर वो सपने को पूरा करने के लिए अगर रास्ते मे कुछ अर्चना आएगा या कोई सपनो के सौदागर मिलेगा, तो तुम उन सब को नजर अंदाज़ करके अपनी कामियाबी जरूर हासिल करोगे।

तुमको में अपनी सपनो के बारे मे बताता हूँ। मे संगीत को बहुत पसंद करता था। उसके सिख्या भी लिया। फिर कालेज की पढ़ाई ख़तम करके मे मुंबई गया एक नौकरी करने के लिए जो मुझे मिल गया था। वो भी एक बिज्ञापन करनेवाला संस्था मे। सोचा था की नौकरी के साथ साथ वहाँ संगीत मे भी कुछ करलूँगा। मे वहाँ कुछ संगीत का छोटा छोटा कार्यक्रम मे भाग लिया। मे अच्छा गाता था। ये देख कुछ छोटे बिज्ञापन संस्था मुझे उनकी बिज्ञापन के लिए गाने को काम दिए। मेरी संस्था भी मुझे काम दिआ। फिर मे नौकरी के साथ ये करते रहा। असल मे मुझे मालूम नहीं चला की मेरा कलाकार बनने का सपना को धीरे धीरे वो लोग थोड़ा थोड़ा पैसा देकर ख़तम कर देंगे। जब समझ मे आया मे नौकरी छोड़ के संगीत मे पूरा ध्यान दिआ। पर तब तक बहुत डेर हों चूका था। दुनिया आगे बढ़ते गया था और मे बहुत पीछे रहेगया। वहाँ तेरे माँ से मेरा दोस्ती हुई। मेरे बुरे दिन मे उसने मुझे बहुत मदत किया। पर वो सपनो के सौदागर लोग मुझे मजबूर करदिए की मे आगे बढ़ न पाऊं। तब फिर यहाँ तेरा दादा जी का स्वर्गबास हुआ। तब मे और तेरे माँ यहाँ आये और तब से मे और लौट के नहीं गया। हाँ मे पैसे बहुत कमाया पर मेरे सपनो को पूरा नहीं करपाया। ये मेरा गलती था। मे संगीत के ऊपर पूर्ण रूप से पहेले भरोसा नहीं किया था। उसके पुरे तालीम नहीं लिए थे। इसीलिए मे हमेशा सपनो के बारे मे बोलता हूँ। अब तुम सोच के मुझे बताओ। "

ये सुनने के बाद मनोज अपने कमरे मे चला गया। वो उसके पिता के दर्द अब समझ रहा था। अब उसको लगा की उसे संगीत मे कुछ बड़ा करने होगा और उसका पूरा तालीम लेना होगा। रातभर वो सोचते रहा। सूबे सूबे उठकर मनोज अपने पिता माता के पास गया और बोला, "अब मे सोच लिया। मुझे संगीत मे अच्छा तालीम लेना है। आज से पाँच साल तक सिर्फ मे संगीत का तालीम लूंगा। उसके बाद उसके ऊपर काम करूँगा और मेरा तालीम और अभ्यास जारी रहेगा जिन्देगी भर के लिए। ये अब मेरा सपना है और मे किसी भी हालात मे इसका साथ नहीं छोडूंगा। अब मे पूरा ठान लिया हूँ की संगीत मे बड़ा काम करके दिखाऊंगा। कोई भी सपनो के सौदागर कभी मेरे सपनो को चुरा नहीं सकते, ख़तम कर नहीं सकते।"मनोज के मुँह से स्पस्ट रूप से इतने सुनने के बाद अजय ने बोले,"साबास बेटा। यही जिद कभी छोड़ना नहीं। पुरे ईमानदारी से अपने सपनो को पूरा करने के लिए मेहनत करते रहना। अब तुम्हारा सारे तालीम का ब्यबस्था मे करदूंगा।।"

फिर अजय ने पुणे का संगीत कला एकादमी के साथ संपर्क किए अपनी बेटा मनोज को वहाँ दाखिला देने के लिए। मनोज भी उसका प्रबेस परीक्षा के लिए तैयारी पुरे रात दिन लगाके करने लगा। वहाँ वो उसमे सफल हों गया। उसका दाखिला हों गया। अब वो अपनी सपनों को पूरा करने मे रात-दिन मेहनत करने लगा पुरे जुनून के साथ।


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