Kunda Shamkuwar

Abstract Inspirational Tragedy

2.5  

Kunda Shamkuwar

Abstract Inspirational Tragedy

सपने देखने का हक़

सपने देखने का हक़

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उस कूड़ा बीनने वाली छोटी सी लड़की ने सवाल किया,"क्या हम लोग आपको चोर नजर आते है?"

उसकी आँखों की बेचैनी और आवाज की तल्खी ने मुझे बरबस उसको सुनने को मजबूर कर लिया।मैंने उसकी ओर मुखातिब होकर पूरी संवेदना से पूछा,"जरा बताओगी की क्या हुआ है?" 

उसने फिर तल्खी से कहा,"होगा क्या? यह दुनिया हमारे लिए है ही नहीं।यहाँ तो सिर्फ अमीर लोग ही रह सकते हैं।हमें बस यह कूड़ा साफ़ करना होता है और इसे करते हुए हमें इस तरह की नजरों से देखा जाता है,जैसे हम कोई चोर हो।"

उसकी बातों में दम था क्योंकि हम लोग खुद ही गार्ड्स को डाँटते रहते है कि सोसाइटी में 'फालतू' लोगों की entry ना हो।

मैंने बात बदलते हुए पूछा,"तुम बड़ी होकर क्या बनोगी?" उसने तपाक से जवाब दिया, "मैं बड़ी होकर गार्ड बनूँगी और किसी भी कूड़ा बीनने वालों को रोकूंगी नहीं, क्योंकि वह बड़ी ही ईमानदारी से कूडा बीनने का काम करते रहते है।" मैं उस से किसी और जवाब को expect कर रही जैसे की कोई डॉक्टर, टीचर या फिर पुलिस वग़ैरा वग़ैरा,लेकिन मुझे तो जैसे शॉक लगा और मैं भौंचक सी रह गयी उसके इस जवाब से।

मैं बिलकुल निरुत्तर होकर सोचने लगी की गरीब या फिर समाज में निचले पायदान पर रहने वाले लोगों के सपने भी ज़्यादा ऊँचे नही होते।क्या उनको सपने देखने का हक़ भी है?शायद है,शायद नहीं है....


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