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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Abstract Comedy Classics

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Abstract Comedy Classics

सफलता का शॉर्टकट

सफलता का शॉर्टकट

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🥰 सफलता का शॉर्टकट 🥰

🤪 एक समकालीन हास्य–व्यंग्य 🤪

✍️ श्री हरि

🗓️ 19.12.2025


आज के युग में सफलता कोई साधना नहीं रही,

वह एक ऐप हो गई है—

डाउनलोड करो,

दो फ़िल्टर लगाओ,

तीन डायलॉग बोलो

और रातों-रात “स्टार” बन जाओ।

मेहनत अब पुरानी बीमारी मानी जाती है—

जिसका इलाज

रील, रैप, रीलोड और रिव्यू में है।

आजकल के लड़के-लड़कियाँ

सफलता के लिए पढ़ते नहीं,

पोज़ देते हैं।

कॉलेज की डिग्री से पहले

इंस्टाग्राम का ब्लू टिक चाहिए।

डिग्री पूछो तो कहते हैं—

“सर, कंटेंट क्रिएटर हूँ।”

रील बनाने का जुनून ऐसा है कि

कभी रेल के सामने डांस,

कभी पुल से लटककर अभिनय,

कभी चलती बाइक पर ज्ञान-वर्षा—

और जब कोई पूछे,

“जान का ख़तरा नहीं?”

तो जवाब आता है—

“भैया, व्यूज़ के बिना

ज़िंदगी में क्या रखा है!”

लड़कियाँ भी पीछे नहीं हैं—

कला, साहित्य, खेल…

इन सबमें टाइम लगता है,

इसलिए सीधे “ट्रेंड” पकड़ो।

संकोच को पुराने कपड़ों की तरह

अलमारी में टाँग दिया गया है।

संवाद ऐसे कि

अर्थ शब्दकोश में ढूँढना पड़े,

और भाव ऐसे कि

संस्कृति शर्म से

नेटवर्क एरिया छोड़ दे।

उधर फिल्मों की दुनिया है—

जहाँ अभिनय से पहले

“समर्पण” की चर्चा होती है।

कहानी, किरदार, संवाद—

ये सब सेकेंडरी हैं,

प्राइमरी है—

आप क्या-क्या “समायोजित” कर सकती हैं।

सपने बड़े हैं,

रास्ता छोटा चाहिए।

नौकरी मिलते ही

ईमानदारी का पोस्टमार्टम शुरू।

पहले दिन शपथ—

“मैं भ्रष्टाचार नहीं करूँगा।”

दूसरे दिन फ़ाइल—

“सर, कुछ चाय-पानी…?”

तीसरे दिन—

रिकॉर्ड टूट चुके होते हैं,

और अफ़सर साहब

शॉर्टकट से

कार, कोठी और कद

तीनों बढ़ा चुके होते हैं।

राजनीति तो शॉर्टकट की

पीएचडी है।

ईमानदार पार्टी के

ईमानदार नेता

इतने ईमानदार कि

शराब में भी

घोटाला खोज लेते हैं।

कहते हैं—

“हम सत्ता नहीं चाहते।”

पर प्रधानमंत्री की कुर्सी

हर रात सपने में

गोद में आ बैठती है।

और हमारे

खानदानी पप्पू!

उन्हें तो मेहनत से

एलर्जी है।

भाषण में देश कम,

दुश्मन ज़्यादा याद आते हैं।

कभी विदेशी मंच से

भारत को समझाते हैं,

कभी विदेशी गोद में बैठकर

देशभक्ति की नई परिभाषा गढ़ते हैं।

प्रधानमंत्री बनना है—

पर सीढ़ियाँ चढ़ने की जगह

लिफ़्ट चाहिए,

वो भी पड़ोसी देश की।

कुल मिलाकर

आज सफलता कोई मंज़िल नहीं,

एक वायरल घटना है।

आज चमके,

कल गायब।

पर इतिहास की समस्या यह है कि

वह शॉर्टकट वालों को

फुटनोट में रखता है,

और मेहनतकशों को

मुख्य पृष्ठ पर।

इसलिए भाइयो-बहनो,

रील बनाइए—

पर ज़िंदगी की।

नाम कमाइए—

पर भरोसे का।

और दाम चाहिए तो

मेहनत की दुकान खोलिए—

क्योंकि

शॉर्टकट से मिली सफलता

अक्सर

सीधे पतन की ओर जाती है।


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