शॉर्टकट
शॉर्टकट
सफलता का मीठा जहर: एक रूमानी व्यंग्यात्मक कहानी
🌹 सफलता का शॉर्टकट 🌹
🌺 आधुनिक युवाओं की घृणित सोच पर करारा व्यंग्य 🌺
✍️ श्री हरि
🗓️ 19.12.2025
शहर की रातें अब कभी अकेली नहीं लगतीं। वे खुद को चमकदार लाइटों की चादर ओढ़ लेती हैं, इतनी तेज कि दिल की अंधेरी गलियों में छिपा सन्नाटा किसी को नजर ही न आए। ऊंची-ऊंची शीशे की इमारतें, जहां सपने टंगे रहते हैं जैसे दीवार पर सस्ते पोस्टर। कैफे की मेजों पर मोमबत्तियां पिघलती हैं, और लोग अपनी आंखों में ठहरे अकेलेपन को "लाइफस्टाइल" कहकर सजा लेते हैं। यह शहर है आज के युवाओं का—जहां महत्वाकांक्षा इतनी तेज दौड़ती है कि नैतिकता पीछे छूट जाती है। वे सोचते हैं कि सफलता का रास्ता लंबा क्यों हो, जब शॉर्टकट मीठे रिश्तों से होकर गुजरता है? हा! कितनी घृणित सोच, जहां प्रेम को सौदे में बदल दिया जाता है, और आत्मा को बेचकर खरीदी जाती है एक चमकदार जिंदगी।
आरव इसी शहर का एक युवा था—या कहें, सपनों की भूलभुलैया में फंसा हुआ एक नाम। उसके पास डिग्री थी, लेकिन नौकरी की तलाश में दिन रात एक कर दिए थे। वह जानता था कि मेहनत से ऊपर पहुंचा जा सकता है, लेकिन यह शहर इंतजार नहीं करता। यहां लोग सीढ़ियों से नहीं चढ़ते, लिफ्ट से जाते हैं—और हर लिफ्ट का बटन किसी न किसी की जेब में दबा होता है। आरव की आंखों में वह चमक थी जो आज के युवा कहते हैं "हसल कल्चर", लेकिन अंदर से वह खोखला था। वह सोचता, "क्यों न शॉर्टकट लूं? आखिर सब तो यही कर रहे हैं।" व्यंग्य देखिए—यह सोच कितनी सड़ी हुई है, जहां संघर्ष को कमजोरी मान लिया जाता है, और सौदेबाजी को स्मार्टनेस।
फिर आई नायरा—उसकी जिंदगी में जैसे कोई पुरानी रूमानियत वाली फिल्म का सीन। वह मिली एक लग्जरी पार्टी में, जहां शैंपेन के गिलास टकराते थे और लोग अपनी सफलता की कहानियां बेचते थे। नायरा की उम्र चालीस पार थी, लेकिन उसकी मुस्कान में वह गर्माहट थी जो युवा दिलों को पिघला देती। साड़ी की सिलवटें इतनी परफेक्ट कि लगता समय खुद उसके लिए रुक गया हो। "तुम्हारी आंखें सपनों से भरी हैं," उसने धीरे से कहा, अपनी उंगलियां आरव के हाथ पर रखते हुए। आरव का दिल धड़का—यह प्रेम था? नहीं, यह करुणा थी, लेकिन आज के युवा इसे प्रेम समझ बैठते हैं।
नायरा एक सफल बिजनेसवुमन थी, विधवा, अकेली। उसके पास पैसा था, कनेक्शन थे, और एक ऐसा अकेलापन जो वह युवा ऊर्जा से भरना चाहती थी। आरव ने सोचा, "यह मौका है। क्यों न इस्तेमाल करूं?" हा! कितनी घिनौनी सोच—प्रेम को पैसों की सीढ़ी बनाना, जहां भावनाएं सिर्फ बहाना हैं।
उनकी मुलाकातें रूमानी थीं। शाम को वे कैफे में बैठते, जहां नायरा की आंखें चमकतीं और आरव अपनी महत्वाकांक्षाओं की कहानियां सुनाता। "मैं तुम्हें उड़ान दूंगी," नायरा ने कहा, अपनी उंगलियां उसके बालों में फिराते हुए। आरव ने महसूस किया एक गर्माहट—जैसे कोई मां का स्पर्श, लेकिन इससे ज्यादा। वे रातें बिताते, जहां बातें धीमी होतीं, चुंबन गहरे, और आरव की जेबें भारी। नायरा उसे गिफ्ट देती—महंगे कपड़े, एक अच्छी जॉब का रेफरेंस, और बदले में आरव उसे कंपनी। यह प्रेम जैसा लगता था, लेकिन व्यंग्य यह कि आज के युवा इसे "म्यूचुअल बेनिफिट" कहते हैं। वे सोचते हैं कि यह स्मार्ट है, लेकिन वास्तव में यह आत्मा का सौदा है। आरव ऊपर चढ़ रहा था—ऑफिस में प्रमोशन, दोस्तों में इज्जत—लेकिन अंदर से वह खोखला हो रहा था। "यह शॉर्टकट है," वह खुद को समझाता, लेकिन रातों में नींद नहीं आती। उसके माता-पिता की याद आती—वह मेहनत की मिसाल, जो अब वह भूल चुका था।
शहर के दूसरे कोने में माया थी—एक युवती जिसके सपने फिल्मी थे, लेकिन रास्ते कांटेदार। वह अभिनेत्री बनना चाहती थी, हर ऑडिशन में जाती, मुस्कुराती, लेकिन लौटती खाली हाथ। "आगे बात करेंगे," निर्देशक कहते, लेकिन वह जानती थी कि "आगे" का मतलब क्या है। आज के युवा सोचते हैं कि सफलता के लिए बॉडी को दांव पर लगाना सामान्य है। कितनी घृणित सोच! माया की आंखों में वह चमक थी जो सपनों से आती है, लेकिन दिल में डर।
फिर मिला विक्रम मल्होत्रा—एक बड़ा प्रोड्यूसर, उम्र पचास पार, लेकिन पैसा इतना कि वह किसी को भी स्टार बना सकता था। "तुममें पोटेंशियल है," उसने कहा, अपनी आंखों में एक भूख लिए। माया ने हिचकिचाया, लेकिन सोचा, "शॉर्टकट क्यों न लूं? सब तो यही कर रही हैं।" व्यंग्य देखिए—यह सोच कितनी सड़ी है, जहां सम्मान को बेचकर खरीदी जाती है एक भूमिका।
उनकी रूमानी शामें शुरू हुईं। विक्रम उसे महंगे रेस्टोरेंट ले जाता, जहां वाइन बहती और बातें गहराती। "मैं तुम्हारा संरक्षक हूं," वह कहता, अपनी बाहों में उसे खींचते हुए। माया महसूस करती एक रोमांच—प्रेम जैसा, लेकिन नीचे छिपी असुविधा। वह उसे पहली फिल्म देता, लेकिन बदले में रातें। यह प्रेम नहीं था, सौदा था। आज के युवा इसे "नेटवर्किंग" कहते हैं, लेकिन यह घिनौना है—जहां शरीर को टिकट बनाया जाता है सफलता के लिए।
माया चमक रही थी—स्क्रीन पर, पार्टीज में—लेकिन अंदर से टूट रही थी। "यह सही है," वह खुद को समझाती, लेकिन आंसू रुकते नहीं। उसके दोस्त कहते, "तू स्मार्ट है," लेकिन व्यंग्य यह कि स्मार्टनेस अब नैतिकता की दुश्मन हो गई है।
आरव और नायरा की रूमानी दुनिया में दरारें आने लगीं। एक शाम नायरा ने कहा, "लोग मुझे शुगर मॉमी कहते हैं। उन्हें नहीं पता कि मैंने भी कभी सच्चा प्रेम चाहा था।" उसकी आंखों में आंसू थे, और आरव का दिल पिघला। लेकिन वह जानता था कि यह करुणा है, प्रेम नहीं। वह ऊपर पहुंच चुका था, लेकिन अब लगता जैसे आत्मा छूट गई हो। "हमने शॉर्टकट लिया," वह सोचता, "लेकिन यह जहर है।" व्यंग्य कितना करारा—आज के युवा सोचते हैं कि पैसा और सेक्स सफलता की चाबी हैं, लेकिन वे भूल जाते कि इससे आत्मसम्मान मर जाता है।
माया की हालत भी वैसी ही थी। विक्रम के साथ रातें अब बोझ लगतीं। "प्यार?" उसने पूछा एक दिन। विक्रम हंसा, "यह बिजनेस है, डार्लिंग।" माया रोई नहीं, लेकिन अंदर से जाग गई। "यह घृणित है," वह सोची, "मैंने खुद को बेच दिया।"
एक ग्रैंड इवेंट में आरव और माया मिले—दोनों चमकदार, लेकिन आंखों में एक ही सवाल। "हमने शॉर्टकट लिया," आरव बोला, अपनी कॉफी में घूरते हुए। "और अब खुद को खो दिया," माया ने कहा, उसकी मुस्कान में व्यंग्य। वे बातें करते रहे—अपने अनुभव साझा करते, और महसूस करते कि यह शहर युवाओं को खा जाता है। व्यंग्य देखिए—आज के युवा "एम्पावरमेंट" के नाम पर सौदेबाजी करते हैं, लेकिन अंत में अकेले रह जाते हैं।
आरव ने नायरा से विदाई ली। "तुम मेरी कमी नहीं थे," नायरा ने कहा, अपनी आंखों में एक रूमानी उदासी लिए, "तुम मेरी करुणा थे।" वह रोकी नहीं, क्योंकि जानती थी कि सच्चा प्रेम बंधन नहीं डालता।
माया ने विक्रम से दूरी बना ली। संघर्ष लौटा, लेकिन अब सांसें हल्की थीं—क्योंकि आत्मा वापस मिल गई थी।
शहर वही रहा, लेकिन अब आरव और माया अलग थे। वे जानते थे कि सफलता का शॉर्टकट मीठा लगता है, लेकिन जहर है।
आज के युवाओं की सोच कितनी घृणित—जहां प्रेम को सौदे में बदल दिया जाता है, करुणा को सेक्स में, और महत्वाकांक्षा को नैतिकता की कब्र। वे सोचते हैं कि "लाइफ हैक" से जीतेंगे, लेकिन व्यंग्य यह कि वे हारते हैं खुद को। नायरा और विक्रम जैसे लोग भी पीड़ित हैं—समाज की क्रूरता के, जहां उम्र अकेलापन लाती है।
लेकिन युवा? वे चुनते हैं यह रास्ता, और फिर पछताते हैं। यह कहानी दोषारोपण नहीं, बल्कि व्यंग्य है—उस समाज पर जहां सुविधा प्रेम बन जाती है, और सौदे संबंध। क्योंकि जब अकेलापन सामूहिक हो जाता है, तो रिश्ते मीठे दिखते हैं, लेकिन भीतर कड़वे होते जाते हैं। सच्ची सफलता मेहनत से आती है, न कि शॉर्टकट से। हा! कितना करारा व्यंग्य आज की पीढ़ी पर।
🌸 समाप्त 🌸

