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Rekha Rana

Abstract Drama

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Rekha Rana

Abstract Drama

सोने की सीढ़ी

सोने की सीढ़ी

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अम्मा का पार्थिव शरीर आखिरी सफर के लिए तैयार किया जा रहा था। घर में रोना मचा हुआ था। परपोता विश्वास मुखाग्नि देगा, यही अम्मा की अंतिम इच्छा थी, सोने की सीढ़ी चढने का बड़ा अरमान था अम्मा को। उधर अर्थी सजाई जा रही थी, दूसरी ओर रामसरन का व्यवहार उग्र हो रहा था। हमेशा शालीन रहने वाला रामसरन बेवजह कभी बेटे को डाँट रहा था, कभी सबके सामने पत्नी शगुन के काम में मीनमेख निकाल रहे थे। रोती पोत्र बहू को जब पड़ोस की पंडताईन ने चुप कराने की गरज से कहा, "रोती काहे हो बहुरिया सोने की सीढ़ी चढ़ गई है तोरी अम्मा।" 

बस इतना सुनना था के रामसरन के धीरज का बाँध टूट गया। दहाड़ मार कर अम्मा के चरणों में लोटने लगा और कहता जा रहा था, "क्या अम्मा...? क्यों चली गई मुझे छोड़ कर, तू तो सोने की सीढ़ी चढ़ी के ना चढ़ी पर आज मैं अनाथ हो गया।" 

कह कर बिलख कर रोने लगे। उनका क्रंदन देख सब भावुक हो गए और उन्हें रामसरन के बदले व्यवहार का कारण भी समझ में आ गया था। 

अब सबकी जुबान पर सोने की सीढ़ी की बजाय माँ बेटे के प्यार के चर्चे थे। 


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