परजीवी

परजीवी

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"शालिनी की बहू आयी है मायके से, चावलों का कट्टा लाई है, दो दिन पहले रमा की बहू आयी थी, दोहते को साइकिल दिला के भेजी है नानी ने, एक हमारी आई है दो जोड़े कपडे ले कर, कैसी फूटी किस्मत है मेरी?" बेटे-बहू को सुनाते हुए शगुन बोले जा रही थी! 


विश्वास सब कुछ समझते हुए भी चुप रहा और आँखों से ही मंजू को भी चुप रहने का इशारा किया। वह जानता था, माँ को समझाना बेकार है। सारी उम्र पिता जी नहीं समझा सके, तभी तो जाते-जाते कह के गए थे, "बेटे धीरज रखना, माँ है तुम्हारी, प्रपंच करने का कोई मौका न देना!" एक चुप सौ सुख इस कहावत को विश्वास ने अपने जीवन में ढाल लिया था!


"पापा ये परजीवी क्या होता है?"


"परजीवी का मतलब होता है वो जीव जो अपने जीने के लिए दूसरों पर निर्भर रहते है!"


"हूँ... अच्छा पापा क्या इंसानो में भी परजीवी होते है!"


“पहले लगता था नहीं होते, पर जब से शादी हुई है तब से पता लगा की सास नाम की प्राणी परजीवी होती है, जो हमेशा बहू के मायके से आस लगा कर रखती है!"


"अब पता चल गया परजीवी का मतलब?"


कह कर विश्वास बाजार की ओर निकल गया, बिना माँ की ओर देखे! वो जानता था उसका धीरज माँ की वो घूर उसकी पीठ पर बर्दाश्त कर सकता, चेहरे पर नहीं!


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