महानगर के बियाबान
महानगर के बियाबान
चुपचाप अकेला बैठा विश्वास पुराने दिनों के बारे में सोच रहा था, सबकुछ दिया था ईश्वर ने जो एक खुशहाल जीवन के लिए चाहिए, पर कहाँ संभाल पाया था विश्वास ! कभी -कभी शराब तो वह शादी से पहले भी पीता था, पर शादी के बाद तो शराब में डूबता चला गया ! बेटा भी अठारह साल का हो गया पर विश्वास ने रवैया नहीं बदला ! माँ के बहुत करीब था विक्की, पिता के बारे में कुछ कहता तो माँ चुप रहने के लिए कह देती !
पर उस रात चुप नहीं रह पाया, विश्वास ने नशे में खाने की थाली शगुन के ऊपर दे मारी, सारे कमरे में खाना फ़ैल गया, खाना साफ करते हुए शगुन की आँखों से टपकते आँसुंओं ने विक्की को बेकाबू कर दिया ! पहली बार पिता के सामने जुबान खुल गई !
"खबरदार अब माँ को कुछ कहा तो !"
"आ गया तू माँ के पिल्ले, पहले तुझे ही देखता हूँ !"जानवर बन गया था विश्वास !
बाप-बेटे के बीच बचाव करने को जैसे ही शगुन बीच में आई, जोर से धक्का मारा विश्वास ने, शगुन का सर टी० वी० ट्रॉली में जा लगा और खून का फव्वारा फट पड़ा, घबराया विक्की जल्दी-जल्दी पड़ोसी को बुला लाया पर तब तक देर हो चुकी थी !
सुबह आनन्-फानन में शगुन संस्कार कर दिया !
माँ की तेरहवीं पर फूट-फूट कर रोया था विक्की, श्रद्धांजलि देते वक्त बस इतना ही कहा "आप सब के कहने पर मैंने इस आदमी के खिलाफ ऍफ़०आई०आर० दर्ज नहीं कराई, पर अपनी माँ के हत्यारे के साथ मैं न रह सकूंगा, जा रहा हूँ पता नहीं कहाँ, यही सोच लेना मेरी माँ के साथ मेरी भी तेहरवीं हो गई ?"
तीन साल हो गए थे विक्की को गए हुए, असलियत जानते हुए मित्र, रिश्तेदारों सब ने विश्वास से दूरी बना ली थी !
और भरा-पूरा संसार विश्वास को बियाबान सा महसूस हो रहा था !