टिकट का किराया
टिकट का किराया
राधेश्याम का मृत शरीर वृद्धाश्रम के हॉल में रखा थादोनों बेटों को रात ही खबर कर दी गयी थीपर कोई सा नहीं आया था हाँ बड़े बेटे ने जल्दी आने में असमर्थता जाहिर करते हुए छोटे का नाम मुखाग्नि देने के लिए तजवीस किया तो छोटे बेटे ने भी बड़े भाई का कर्तव्य कह कर इतिश्री कर ली थी !
"देखो अशफाक पहले ही जिंदगी में बहुत गलतियाँ कर चुका हूँ और शर्मिंदा मत कर यार मेरी बात मान जा अरे अपनी औलाद को बेहतर तरीके से जानता हूँ मैं मर भी जाऊंगा तो अर्थी को कन्धा देने भी न आयेंगे हाँ तुम जरा वसीयत की खबर भेजोगे तो दौड़े चले आयेंगे मुझे पता है मेरी चिता को आग तुम ही दोगे ! "पर मैं तो !"
"ये धर्म-कर्म मुझे न समझाओ जिंदगी की शाम मेंअब तो ये जीवन यात्रा अपने अंतिम पड़ाव पर है एक महीने से अस्पताल में हूँ कोई खबर नहीं ली मेरी और तुमने तो मुझे ऐसे संभाला जैसे कोई माँ अपने बच्चे को और मैंने हमेशा तुम लोगों को हिकारत छी छी अब जाओ वकील को बुला लो इससे पहले उपरवाले का बुलावा आ जाये !
"हम लोग बेटा क्यों चाहते है क्योंकि वो हमारा अंतिम संस्कार करेगा हूँ sssssss जैसे कोई यात्रा की टिकट कराता है तो हम किराया उसी को देते हैं तो मैंने भी फैसला किया है मेरा संस्कार तू करेगा और मेरी जायदाद और पैसा मैं आश्रम को दान कर जाऊंगा जरा ऐसे बेटों की गलतफहमी तो दूर करूँ जिन्हे लगता है की बाप की सम्पत्ति पर सिर्फ बेटों का अधिकार होता है !" "अच्छा ! अच्छा ! ठीक है डाक्टर ने ज्यादा बोलने को मना किया है ना अच्छा अब हाथ छोड़ और आराम कर !
हाथ खाली थे अशफाक एकदम से वर्तमान में आ गया सारी रात पत्थर बना अशफाक खाली हाथ देख अब आंसूं रोक नहीं पा रहा था
" लाले की अन्तिम यात्रा शुरू करो इंतजार पसंद नहीं था उसे !" आँसू पौंछते हुए अशफाक खड़ा हो गया !