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Rekha Rana

Abstract

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Rekha Rana

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सुखद अनुभव

सुखद अनुभव

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शगुन बस में बैठी खिड़की से बाहर के नजारों का आनंद ले रही थी। रास्ते के स्टॉपेज से एक किशोरवय लड़का दो भारी बैग लेकर चढ़ा। बस में बहुत भीड़ थी। सामान रखने की जगह में बैग फिट नहीं हो पा रहे थे। खड़े यात्री भी उस लड़के को घूर रहे थे। लड़का परेशान सा इधर - उधर देख रहा था। 

शगुन को उस लड़के पर तरस आ गया और उसने उस लड़के को इशारा किया कि एक बैग उसे पकड़ा दे। उसने बैग शगुन को पकड़ा दिया। 

 एक घंटे बाद उस लड़के का स्टॉपेज आ गया। 

शगुन ने उसको बैग पकड़ाया तो उसने मुस्कुराते हुए कहा, "थैंक यू आण्टी"। 

" क्या जरूरत थी आपको उसका बैग रखने की घुटने भी दुखने लगे होंगे। "शगुन के साथ बैठी महिला ने कहा।  

" नहीं.... कोई दर्द नहीं है। "शगुन ने मुस्कराते हुए संक्षिप्त सा जवाब दिया। 

" अगर बैग में कोई गैरकानूनी सामान तो आप फँस सकती थी। " महिला ने शंका जताई। 

" हूँ........ बात में दम तो है पर अगर उस लड़के के नजरिए से सोचें तो उसके मन में भी तो डर होगा ना उसके बैग से कुछ चोरी होने का।" शगुन ने प्रशनात्मक लहज़े में कहा। 

" पर देखिए ना उसने मुझ पर विश्वास दिखाया ना..... यही तो दिक्कत है हमारी के हम समाज की बुराइयों की बात तो बहुत करते हैं, और सोचते हैं उन बुराइयों को सुधार कोई और करेगा। हम अकसर इन किशोरों में बुराइयाँ ढूंढते रहते हैं। अरे अगर हम इन्हें सुखद अनुभव देंगे..... तो बदले में ये भी हमें सुखद अनुभव लौटायेंगें।" शगुन ने आत्मविश्वास से कहा। 

"जी.... आपके साथ बैठ कर मुझे भी सुखद अनुभव मिला।" कह कर वह महिला मुस्कुराई। 

बदले में शगुन भी मुसकुराई। 


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