महारानी
महारानी
"कल हम काम पर नहीं आयेंगे मैड़म जी। " रानी ने कहा
"क्यों ?,तुम ने तो कभी त्यौहार पर छुट्टी नहीं ली फिर कल क्या है ? " शगुन ने पूछा।
"ऊ मैड़म जी हमारे घरवाले ने छुट्टी लेने को कहा है, उसने भी अपने सेठ से कल की छुट्टी की बात कर रखी है। " रानी ने मुस्कराते हुए कहा।
"क्यों कल कोई खास बात है। " शगुन ने मुस्कराते हुए पूछा।
"ऊ कल आखा तीज है ना अम्मा कहती थी हम आखा तीज को पैदा हुई थी। "रानी ने सकुचाते हुए कहा।
"तो कल तुम्हारा जन्मदिन है ? "शगुन ने पूछा
"जी ऊ मैड़म जब हम ब्याह के आये तो हमारे घरवाले ने कही थी कि अपने मायके में तुम रानी थी पर मैं अपने घर में तुझे महारानी बना कर रखूँगा, इसलिए कल ।"रानी ने शरमाते हुए कहा।
" वाह ! वैरी गुड़ पर महारानियाँ तो बर्तन साफ नहीं करती। "शगुन ने छेड़ने के अंदाज से कहा।
"काम को मना करता है वो पर मेरा मन करता है उसका हाथ बटाने को। मेरी हर बात मानता है। तकलीफ मुझे होती है दर्द उसकी आँखों में दिखता है। "रानी बोले जा रही थी और शगुन टुकर टुकर उसे देखे जा रही थी।
"रुक जरा। "कह कर शगुन अंदर वाले कमरे में गयी।
लौटी तो उसके हाथ में एक साड़ी थी ।
"ले ये साड़ी कल ये ही पहन लेना और ये सौ रूपये शगुन के। ईश्वर करे तुम हमेशा अपने पति के दिल में महारानी बन कर रहो। " शगुन ने मुस्कराते हुए कहा।
अठारह साल की रानी अड़तालीस साल की शगुन को समझा गई थी कि महारानी बनने के लिए धन की नहीं अपनों की परवाह की जरूरत है।