जड़ का अस्तित्व
जड़ का अस्तित्व
"नसीब हाउस "धुंधला से गए थे गेट के बाहर लिखे ये शब्द, मकान भी खंडहर सा लगने लगा था !
बेटे विश्वास के साथ योगेश आया हुआ था गांव में घर और जमीन बेचने, पिछले कई दिनों से वही था आज लौटने का इरादा था, बस खरीदार का इंतजार था !
"अरे तुम सुबह- सुबह कहाँ चले गए थे ?अब कहीं नहीं जाना, खरीदार आने वाला है !"
"पापा एक बात पूछूं, क्या ये मकान और जमीन बेचनी जरूरी है ?"
"हाँ जरूरी है, तुम्हे फैक्ट्री नहीं लगानी क्या ?"
"फैक्ट्री यहां भी तो लग सकती है !"
"यहाँ ?"
"प्लीज पापा, ये आपका गांव है ........ये मेरा गांव है .........! अगर हम यहां फैक्ट्री लगाएंगे तो मकान जमीन बेचने की जरूरत नहीं पड़ेगी, कुछ पूंजी तो है हमारे पास, कुछ बैंक से लोन ले लेंगे !"
"पहले ये बताओ ये सब तुम्हारे दिमाग में डाला किसने ?"
"पापा, हम पिछले तीन चार दिन से यहां है,मैं यहां किसी को नहीं जानता, पर जब मैं ये बताता हूँ के मैं नसीब सिंह का पोता हूँ, तो यहां सबकी नजरों में मुझे अपने लिए स्नेह और दादा जी के लिए बहुत आदर दिखा ! पर जब उन्हें पता चलता के हम यहां क्यों आये है, तो उनके चेहरे पर मायूसी झलक जाती ! और उनके वो मायूस चेहरे देख मन परेशान हो जाता है !
"आज सुबह मैं पंचायत घर गया था, वो जहां दादा जी की मूर्ति लगी है, एक सुकून सा मिला, जब मई वहां से चलने को हुआ और मूर्ति के चरण छुए तो लगा मूर्ति उदास है मानो कह रही हो,"जा रहे हो बेटा फिर कभी ना आने के लिए, और मेरे मुँह से यही निकला "नहीं, मैं कहीं नहीं जा रहा, यही रहूंगा आपके देखे सपने जरूर पूरे होंगे !"
"अच्छी तरह सोच लो !"
"सोच लिया पापा ...................!"
"सुना था एक पोता अपने दादा का पुनर्जन्म होता है, आज देख भी लिया नसीबे !" ये रामसरन चाचा की आवाज थी जो कुर्ते की बांह से अपने आंसू पौछ रहे थे।