Ragini Pathak

Abstract Drama Tragedy

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Ragini Pathak

Abstract Drama Tragedy

संतुष्टि

संतुष्टि

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रमा की शादी को बीस साल हो चुके थे। परिवार में सास सरला जी, पति अनिकेत और दो बेटे, राहुल और राजेश थे। पति की अच्छी खासी नौकरी थी। बच्चे भी बड़े हो चुके थे। कुल मिलाकर एक उच्च माध्यम वर्गीय परिवार जो देखने में बहुत ही खुशहाल था। सामान्य तौर पर एक स्त्री को इससे ज्यादा और क्या चाहिये?

रमा जहाँ व्यवहारिक और मृदुभाषी थी, आस-पड़ोस उसके व्यवहार से बहुत खुश रहता। सबके साथ उसके मित्रवत व्यवहार था। लेकिन इसके उलट अनिकेत निहायत ही अहंकारी, पुरुषार्थ का अहम और खुद को सर्वोपरी और स्त्रियों को तुच्छ समझने की भावनाओं से ओत-प्रोत था।

वो हर बात में रमा को नीचा दिखाता, बात चाहे कपड़े की हो, खाना बनाने की या दोनों के बीच अंतरंग पलों की। अठरह वर्ष की उम्र में रमा की शादी अनिकेत से कर दी गयी। तब से अब तक रमा ने अनिकेत का सिर्फ तिरस्कार ही झेला था। रमा की भावनाएं उसके लिए कोई मायने नहीं रखती थीं। समय के साथ-साथ रमा ने भी कुछ बातों पर चुप्पी तोड़ी थी, लेकिन अभी भी कई बार वो अनिकेत की बातों पर चुप हो जाती। उसका मन दुखी हो जाता, जब अनिकेत अपने और रमा के अंतरंग पलों के बीच ये कह देता, “अब तुम में वो बात नहीं रही। अब मन सन्तुष्ट नहीं होता।”

इतना सुनते ही रमा शर्म से पानी-पानी हो जाती। उसकी समझ में ही नहीं आता कि वो क्या उत्तर दे? क्या कहे कि ये सब सामान्य है,उम्र के साथ साथ एवं प्रसव होने के बाद हर स्त्री के शरीर में ये बदलाव होते ही हैं। उनमें से योनि का ढीलापन भी एक सामान्य समस्या है। और हर समय शरीर की बनावट एक सी नहीं होती। लेकिन कहे किस से क्योंकि अनिकेत के लिए रमा की जरूरत सिर्फ खाना, बच्चे और उन कुछ देर के अंतरंग पलों के लिए ही थी या यूं कहें कि सेक्स की भूख मिटाने के लिए। उसकी सन्तुष्टि या मर्जी तो कोई मायने ही नहीं रखती थी। रमा के मन की अनकही बात अनिकेत कभी समझा ही नहीं था।

रमा का मन हो या ना हो अनिकेत को जब भी अपनी शारीरिक जरूरत पूरी करनी होती तब रमा पर वो अपना पूरा हक जताते हुए कहता, “पत्नी का तो पहला धर्म होता है पति को खुश करना।” किसी भूखे भेेड़िये की तरह अपनी हवस पूरी करता और रमा को खुद से दूर कर देता।

हर रात सब कुछ रमा के साथ दोहराया गया। लेकिन आज रात अनिकेत ने जैसे ही कहा, “तुम अब बूढ़ी हो चुकी हो, तुमे अब पहले वाली बात नहीं”, शर्मसार रमा अंदर ही अंदर टूट गयी। मन में आया कि कह दे मजा तो अब मुझे भी नहीं आता क्योंकि तुम में भी वो बात नहीं रही। लेकिन चुप ही रही।

अगले दिन रमा दोपहर में अपने कमरे में बैठकर टीवी पर मूवी देख रही थी, तभी डोरबेल की आवाज हुई। रमा ने दरवाजा खोला देखा तो अनिकेत दरवाजे पर खड़े थे।

“अरे! आप इतनी जल्दी? आज आप तो लेट आने वाले थे,” रमा ने पूछा।

अंदर घुसते हुए अनिकेत ने कहा, “हाँ, मीटिंग जल्दी खत्म हो गयी। और तुम ऐसे क्यों बोल रही हो? क्या मैं अपने घर जल्दी नही आ सकता।” कहते हुए अनिकेत कमरे में गया।

रमा रसोई में अनिकेत के लिए पानी लेने गयी। तभी अनिकेत ने जोर से आवाज देते हुए कहा, “रमा! रमा! यहाँ आना!”

रमा भागती हुई कमरे में गयी। उसने बोला, “क्या हुआ अनिकेत?”

“तुम्हें थोड़ी सी भी शर्म नहीं, इस उम्र में ऐसे काम? ऐसी मूवी देख रही हो? ‘लिपिस्टिक अंडर माय बुर्का?’ दिमाग ठिकाने है या नहीं? ऐसी मूवी देखकर ही आजकल औरतों का दिमाग खराब हो रहा है, और पतियों को छोड़कर…”

आज रमा की सहन शक्ति टूट गयी। उसने बीच मे अनिकेत की बात को काटते हुए गुस्से में कहा, “क्या बुराई है इस मूवी में ज़रा मैं भी तो जानू? क्यों औरतें अपने मनोभाव को नहीं रख सकतीं ? क्या पुरुषों को ही भगवान ने भावनायें दीं? पुरुष कहीं कुछ भी कहें, करें कोई बात नहीं,औरत ने दिल की बात की तो खराब हो गयी? वाह रे समाज के ठेकेदार।

तुम्हारी सामान्य जानकारी के लिए बता दूँ कि बिना नारी के नर कभी पूर्ण नहीं। जो भावनाएं पुरूष के अंदर होती हैं, वही औरतों के अंदर भी होती हैं। पुरुष वासना की बात करे तो मर्दानगी और औरत करे तो चरित्रहीन क्यों? पुरूष को संतुष्टि ना मिले या मन करे तो एक नहीं कितनों से भी घर के बाहर संबंध बनाओ, ‘कोई बात नहीं मर्द है’ और औरत करें तो शर्म, चरित्र हीन है? औरत लिए जो काम पाप हुआ, पुरूष के लिए वो पुण्य कैसे हो सकता है?

और हाँ, मुझे इस मूवी को देखने मे कोई शर्म नहीं आयी। और ना ही आगे ऐसी मूवी देखने में आएगी, जो महिला प्रधान या उनके मनोभाव को बताती हो।

और एक आखिरी बात तुम जो मुझे कहते हो ना कि ‘तुम में अब वो बात नहीं’, वो बात तुम पर भी लागू होती है कि तुम में भी अब वो बात नहीं रही। वरना ऐसी बातें कभी ना करते। इस मूवी की नायिकाओ में से एक में मैं खुद के भी दुःख और भावनाओं को देख पा रही हूं। मैं तो कहूंगी तुम भी फिर से देख लो इस बार। दोस्तों के साथ मजे के लिए नहीं, अकेले में ध्यान से ताकि आज से या अब आगे से तुम भी मेरी भावनाओं को समझ सको।

आखिरी बात जिस दिन हम औरतों ने सच मे अगर पुरुषों के मन को समझना या उनकी खुशी का ध्यान रखना छोड़ दिया ना, तो यकीन मानो तुम लोगो की ये रंगीन दुनिया बेरंग हो जाएगी। औरत कोई खिलौना नहीं जो पुरुषों को खेलने के लिए बनायी गयी है। वो भी एक इंसान है। इसलिए सामंजस्य और समानता बहुत ज़रूरी है घर परिवार चलाने के लिए, पति-पत्नी के बीच और समाज चलाने के लिए महिलाओं और पुरुषों के बीच।”

एक सांस में अपनी बात कहते हुए रमा कमरे से निकल गयी और अनिकेत आज निरुत्तर रमा को देखता रह गया। बात अनिकेत के समझ आयी कि नहीं वो तो पता नहीं, लेकिन आज रमा का मन जरूर हल्का हो गया था।


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