संजय असवाल

Abstract

4.4  

संजय असवाल

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संस्मरण..बिना टिकट

संस्मरण..बिना टिकट

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बात उस समय की है जब हम कॉलेज में पढ़ते थे और साथ ही साथ बैंकिंग प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कोचिंग संस्थान में रोज का आना जाना था। 

पिताजी महीने का किराया और खाने पीने के लिए कुछ पैसे भेज देते पर उन पैसों से महीना काटना बहुत मुश्किल होता था। उस समय प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए एक अलग ही जुनून था । कुछ बन कर दिखाना है। अपने पैरों में खड़ा होना है। रात दिन मेहनत करना, दोस्तों के कमरों में जाकर परीक्षा संबंधित विषयों में शामिल होना, साथ साथ अभ्यास करना सच एक अलग ही अहसास था।

उसी बीच हम सभी मित्रों ने बैंकिंग के बहुत सारे फॉर्म भरे, कोई परीक्षा भोपाल कोई लुधियाना कोई लखनऊ कोई पटना आदि देश के विभिन्न क्षेत्रों में प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए जाना होता। दूर दराज के परीक्षाओं के लिए सिर्फ ट्रेन ही माध्यम होती थी।

ये घटना तब की है जब हम सभी मित्रों का बी एस आर बी भोपाल की परीक्षा थी। और हम सभी परीक्षा से दो दिन पूर्व ही भोपाल पहुंच गए थे। भोपाल पहुंच कर हमने एक धर्मशाला में हाल किराए पर लिया। 

क्यों कि परीक्षा दो दिन बाद होनी थी, तो सभी मित्रों ने आगरा घूमने ताजमहल देखने का प्लान बनाया। सभी मित्रों ने अपनी हामी भरी। अगले दिन हम सभी मित्र ट्रेन की सामान्य कोच से आगरा की ओर चल दिए। ट्रेन में खूब हल्ला गुल्ला मस्ती की। दोस्तों का साथ ही अलग होता है, और इसी को हम सब बखूबी जी रहे थे।

आगरा पहुंचने पर पैसे बचाने के उद्देश्य से सभी पैदल ही लाल किला और ताजमहल देखने चल पड़े। सच दोस्तों संग एक अलग ही अहसास था और वो भी विश्व प्रसिद्ध ताजमहल के दीदार। दिन भर आगरा घूमने के बाद हम सभी ने छोटे छोटे ढाबों में मिलकर नान कढ़ी चावल खाए, वो स्वाद आज भी मेरी जीभा पर बरकरार है, जैसे अपने लड़कपन में थी। देर तक आगरा के बाजारों में इकट्ठा घूमते हुए इधर उधर खाते कब शाम हो गई पता ही नहीं चला। अब भोपाल लौटने के लिए हम सभी रेलवे स्टेशन पहुंच गए। वहां ट्रेन अपने प्लेटफार्म पर चलने को तैयार खड़ी थी। हम सभी टिकट खिड़की की ओर भागे तो वहां इतनी लंबी कतार लगी थी कि टिकट मिलना असंभव लग रहा था। अब क्या करे यही हम सभी मित्रों ने विचार किया। ट्रेन चलने में अब कुछ समय बचा था और कतार खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी तो सभी मित्र बिना टिकट लिए ही ट्रेन के जर्नल बोगी में घुस गए। बोगी में बहुत भीड़ थी। सभी मित्र एक साथ एक कोने में दुबके पड़े थे। अब ट्रेन भोपाल की ओर चल पड़ी। मन में संतोष तो था पर बहुत डर भी लग रहा था कि बिना टिकट यात्रा करने पर टीटी द्वारा पकड़ लिया तो सजा मिलेगी साथ ही जेल भी हो सकती है। सभी घबराएं हुए थे और बस इसी सोच में डूबे हुए मायूस नजर आ रहे थे। मन में पछतावा का बोध भी होने लगा था कि क्यों ऐसे ही बिना टिकट बोगी में घुस गए टिकट लेना चाहिए था। नही तो दूसरे दिन आ जाते पर अब क्या हो सकता था। ट्रेन धीरे धीरे भोपाल की ओर बढ़ रही थी और एक स्टेशन में टीटी टिकट चेक करने बोगी में आ गया। हम सब के तो हाथ पांव फूल गए। सभी साधारण घरों से ताल्लुक रखने वाले सीधे साधे भोले भाले नवयुवक थे जिन्होंने मजबूरी में एक अपराध कर दिया और ऊपर से उनके ऊपर प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता का दबाव परिवार वालों की प्रतिष्ठा का सवाल कि अगर पकड़े गए और सजा मिली तो घर वालों को क्या जवाब देंगे।

इसी डर खौफ के उधेड़बुन में ट्रेन आगे बढ़ती गई और अगले स्टेशन में टीटी भी उतर गया। पूछने पर पता चला कि कुछ लोगों में विवाद हो गया था इसलिए टीटी को आना पड़ा। ये सुन कर जान में जान आई पर भोपाल में पहुंचने पर क्या होगा इसका भय अब भी ज्यों का त्यों बना हुआ था। ट्रेन कुछ घंटों में भोपाल पहुंचने वाली थी और हम सभी मित्र असहज ही यात्रा कर रहे थे। इस दौरान किसी मित्र ने किसी मित्र से बात नहीं की और न ही ट्रेन की यात्रा का लुत्फ़ लिया बस घबराए एक कोने में बैठे अब क्या होगा यही सोचते रहे। आखिर कुछ घंटों की यात्रा के पश्चात ट्रेन भोपाल रेलवे स्टेशन प्लेट फार्म नंबर पांच पर खड़ी हो गई। सभी यात्री धीरे धीरे बोगी से बाहर निकलने लगे। बाहर टीटी सभी से टिकट चेक कर रहे थे। हम सभी अपराध बोध में एक साथ प्लेट फार्म से बाहर निकलने वाले गेट पर पहुंचे तो एक वृद्ध टीटी जिनके सफेद बाल, काला कोट और आंखों में बड़ा सा काला चश्मा लगाया हुए खड़े थे। जब हम सभी मित्र वहां पहुंचे तो उन्होंने हमसे टिकट मांगा तो हमने नहीं है कह कर उनके सामने हथियार डाल दिए। पहले तो उन टीटी अंकल ने हम सभी मित्रों की जम कर क्लास लगाई। हमें बिना टिकट यात्रा करने के जुर्म में तीन माह की जेल और टिकट की कीमत का दस गुना दंड वसूलने की बात कही। हम सभी से कहां से आए हो कहां जाना है क्या करते हो कह कर रेलवे पुलिस थाने ले गए। जब हम लोगों ने उन्हें अपने बारे में बताया और भोपाल आने की वजह बताई और क्यों हम टिकट नहीं ले पाए आदि सारी बात बताई तो वो कुछ शांत हुए। पर लगातार हमें हमारे द्वारा किए अपराध के लिए डांटते रहे । उन्होंने जो ब्रह्म वाक्य कहा वो आज भी कानों में अक्षरश गूंजता रहता है "कि किसी नए कार्य की शुरुआत किसी गलत तरीके से कभी नहीं करनी चाहिए अन्यथा जीवन भर पश्चताप होता है"। हम सभी मित्रों ने उनके आगे अपनी गलती और अपने अपराध को स्वीकार कर लिया तो वो पिघल गए और हमसे सिर्फ आगरा भोपाल के टिकट का पैसा ही चार्ज कर भविष्य में इस तरह की गलती न करने के आश्वासन लेकर छोड़ दिया। हमने भी उनके सामने कान पकड़ कर प्रतिज्ञा ली कि भविष्य में कभी बिना टिकट यात्रा नही करेंगे चाहे कितनी भी मजबूरी हो। 

टीटी अंकल ने हम सभी मित्रों को फिर रेलवे स्टेशन के मुख्य द्वार से जाने की अनुमति के साथ परीक्षा की असीम शुभकामनाएं दी।

हम सभी मित्र उनका दिल से धन्य वाद करते हुए स्टेशन से बाहर निकल ईश्वर का भी दिल से नमन किया कि हम सभी को बड़ी मुसीबत से बचा लिया।

आज इस घटना को घटे पच्चीस साल हो गए और टीटी अंकल और उनकी कही बात अक्सर याद आती है।

" किसी भी नए कार्य की शुरुआत गलत तरीके से कभी नहीं करनी चाहिए अन्यथा जीवन भर पछताना होता है।" 


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