anuradha chauhan

Abstract

4.2  

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संदली

संदली

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" तुम कब तक यूँ अकेली रहोगी ?"

लोग उससे जब तब यह सवाल कर लेते हैं और वह मुस्कुरा कर कह देती है," आप सबके साथ मैं अकेली कैसे हो सकती हूं।"

उसकी शांत आंखों के पीछे हलचल होनी बन्द हो चुकी है। बहुत बोलने वाली वह लड़की अब सबके बीच चुप रह कर सबको सुनती है जैसे किसी अहम जबाब का इंतजार हो उसे।जानकी ने दुनिया देखी थी उसकी अनुभवी आंखें समझ रहीं थीं कि कुछ तो हुआ है जिसने इस चंचल गुड़िया को संजीदा कर दिया है लेकिन क्या ?

" संदली !, क्या मैं तुम्हारे पास बैठ सकती हूं?", प्यार भरे स्वर में उन्होंने पूछा।

" जरूर आंटी, यह भी कोई पूछने की बात है।", मुस्कुराती हुई संदली ने खिसक कर बैंच पर उनके बैठने के लिए जगह बना दी।

" कैसी हो ?क्या चल रहा है आजकल ? ", जानकी ने बात शुरू करते हुए पूछा।

" बस आंटी वही रूटीन, कॉलिज- पढ़ाई", संदली ने जबाब दिया।" आप सुनाइये।"" बस बेटा, सब बढ़िया है। आजकल कुछ न कुछ नया सीखने की कोशिश कर रही हूं।", चश्मे को नाक पर सही करते हुए जानकी ने कहा।

" अरे वाह ! क्या सीख रही है इन दिनों?", संदली ने कृत्रिम उत्साह दिखाते हुए कहा जिसे जानकी समझ कर भी अनदेखा कर गई। 

आपने बताया नहीं आंटी !क्या सीख रही हैं आजकल? लोगों के चेहरे पढ़ना सीख रही हूँ !

मतलब? आश्चर्य उतर आया उसकी शांत आँखों में। ऐसा भी हो सकता है भला? मैं नहीं मानती ! संदली ने कहा।

बहुत आसान है बेटा ! उम्र के इस पड़ाव पर आकर, मैं इतना तो समझ गई हूँ ! सामने वाले के मन में क्या है !

अच्छा तो बताइए, मेरे मन में क्या है? संदली ने पूछा। कोई गहरा राज, कोई दर्द छुपा है !उसकी आँखों में झाँकते हुए जानकी बोली।

यह झूठ है ! ऐसा कुछ नहीं है ! मैं चलती हूँ आंटी ! झटके से उठते हुए संदली बोली।

कभी मन की बात करना चाहो ! मुझसे आकर कर सकती हो बेटा ! पीछे से आवाज लगाते हुए जानकी बोली।

माँ नहीं !पर माँ जैसी हूँ ! विश्वास कर सकती हो मुझ पर !पल भर ठिठकी। फिर वहाँ से चली गई।

फिर तीन-चार दिन दिखाई नहीं दी। पता नहीं कहाँ चली गई !अब आएगी भी या नहीं? मेरी मति मारी थी जो उसके घाव हरे कर दिए।

आंटी ! !तभी किसी ने कंधे पे हाथ रखा।देखा संदली खड़ी थी। अरे आ पास आ ! जानकी ने प्यार से हाथ पकड़ा।

जानकी का प्यार भरा स्पर्श पाकर संदली सिसककर सीने से लग गई।

कुछ देर रोने के बाद,हँसती-खेलती फैमिली थी मेरी ! मम्मा-पापा एक-दूसरे पर जान छिड़कते थे।पर कुछ दिन से सब बदल गया था।

पापा की लाइफ में कोई और आ चुका था !इस बात को लेकर दोनों में झगड़े बढ़ने लगे !इस बार छुट्टियों में सब बदला-बदला सा प्रतीत हो रहा था !

मम्मा-पापा मुझसे सच छुपाने की कोशिश कर रहे थे !मेड़ से सच्चाई पता चली तो पापा से बहुत विवाद हुआ !

पापा ने गुस्से में मुझ पर हाथ उठा दिया !मम्मा को यह बर्दाश्त नहीं हुआ ! और उस रात नींद की गोलियाँ खाकर वो हमेशा-हमेशा के लिए सो गई !

इतना कहकर संदली फूट-फूटकर रो पड़ी। जानकी की आँखो से आँसू गिरने लगे।उफ़ कितना दर्द छुपा रखा था इस बच्ची ने अपने अंदर !

जानकी ने संदली को रोने से नहीं रोका।वो चाहती थी उसका दर्द इन आँसुओं के साथ बह जाए।


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