Deepak Kaushik

Abstract

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Deepak Kaushik

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संबंध

संबंध

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अक्सर देखा जाता है कि कुछ लोगों के बीच एक अजीब सा भावनात्मक रिश्ता होता है। कभी ऐसा होता है कि दो व्यक्ति चाहे एक-दूसरे से कितने भी दूर क्यों न हो एक-दूसरे के सुख-दुख का अहसास उन्हें होता रहता है। एक अजीब सी अदृश्य डोर उन्हें एक-दूसरे से जोड़े रखती है। कभी ऐसा होता है कि एक के बिना दूसरे का जीवन संभव नहीं होता। एक बीमार पड़ता है तो दूसरा भी बीमार पड़ जाता है। एक अगर भूखा है तो दूसरे की भी भूख मर जाती है। फिर चाहे दूसरे के आगे छप्पन भोग की थाली ही क्यों न सजी रखी हो। मनुष्यों में तो इस तरह का भावनात्मक रिश्ता दिखाई ही देता है पशु-पक्षी भी पीछे नहीं हैं। ऐसी ही एक सच्ची कहानी आप लोगों से साझा कर रहा हूं। 

बात कोई तीन-चार साल पहले की है। जेठ का महीना था। मैं अपने छोटे से टूटे-फूटे से घर में एक तरह से बंद ही था। क्योंकि बाहर आग बरस रही थी। घर से बाहर निकलने की इच्छा भी नहीं हो रही थी और बाहर निकलने में स्वास्थ्य के बिगड़ने का खतरा भी था। बाहर की जमीन भी इतनी गर्म थी कि यदि बिना चप्पल आदि पहने घर से बाहर निकल जाएं तो पैर झुलस जाएं। घर के एकमात्र कमरे के पंखे की हवा भी हवा नहीं लू बरसा रही थी। लेकिन जरूरत पड़ने पर निकलना ही पड़ता था। ऐसी परिस्थिति में जब मैं लघुशंका के लिए अपने कमरे से निकल कर शौचालय में गया तो देखा कि शौचालय के एक कोने में एक पिल्ला बड़े इत्मीनान से सो रहा था। मैं यहां स्पष्ट कर दूं कि मेरे एक कमरे के उस घर में उस समय कमरे से निकलते ही एक छोटा सा लान, एक मेन गेट, मेन गेट के बगल में शौचालय, शौचालय के बगल में सीढ़ी, सीढ़ी के नीचे स्नानागार, स्नानागार के बाद रसोई और भंडार के लिए दरवाजा, इस दरवाजे के बगल में वही एकमात्र कमरे का दरवाजा था। बहरहाल, मैंने पिल्ले को पहले कभी नहीं देखा था। न जाने कहां से भटक कर आ गया था। एक बार मन में आया कि इसे भगा दूं। मगर फिर सोचा, इसमें भी तो जीवन है। कहां जाएगा बेचारा, इतनी गर्मी में। मैं जिस काम के लिए आया था उसे करने लगा। इस बीच पिल्ले ने आंख खोलकर देखा और फिर सो गया।

शाम हुई। पिल्ला वहीं बना रहा। कहीं नहीं गया। मैंने रात में उसे शौचालय से बाहर बुलाकर रोटी डाल दी। उसने रोटी खाई। कुछ देर खेला। फिर वहीं लान में सो गया। अगले दिन सुबह देखा वहां एक के स्थान पर दो पिल्ले थे। उस दिन मैंने दोनों को रोटी डाल दी। तीसरे दिन उनकी संख्या और बढ़ी। अब ये चार हो गए थे। खैर मैं उन्हें रोटी डालता रहा। इसी बीच मैंने यह भी देखा कि उनमें से एक नर था, शेष तीन मादा। कोई तीन-चार दिन बाद ही उनमें से एक जो नर था, गायब हो गया। पता चला कि उसे कोई पालने के उद्देश्य से उठा ले गया है। अब मेरे घर में तीनों मादाएं थीं। ये तीनों रात भर घर से बाहर रहती। सुबह धूप तेज हो जाने पर घर के अंदर शौचालय में घुसकर सोती रहती। लगभग १५ दिनों के बाद एक पिलिया और गायब हुई। इसके बारे में बाद में पता चला कि एक बाइक से कुचल कर उसकी मृत्यु हो गई है। खैर; अब भी हमारे घर पर दो पिल्लियां पली हुई थीं। लेकिन इनका साथ भी बहुत ज्यादा दिन नहीं रहा।

लगभग दो महीने बाद की बात है। मैंने दोनों को रोटी डाली तो एक ने तो खाई मगर दूसरी ने नहीं खाई। मैंने इस बात को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया। क्योंकि पशुओं में एक प्राकृतिक व्यवस्था होती है कि जब उनका पेट खराब होता है या कोई अन्य शारीरिक परेशानी होती है तो वे भोजन का त्याग कर अपने शरीर को ठीक कर लेते हैं। एक-दो दिन निराहार रहने के बाद उनका शरीर स्वस्थ हो जाता है। मगर उसने तो पूरी तरह आहार का त्याग कर दिया था। दो दिन पश्चात उसके आहार त्यागने का कारण समझ में आया। दरअसल उसे या तो किसी जहरीले कीड़े ने काट खाया था या फिर उसने स्वयं ही कोई जहरीली वस्तु खा ली थी। उसके मुंह से निकलने वाले झाग ने इस बात की सूचना दी थी। अंततः पांच-छह दिनों के बाद उसने अपनी नश्वर देह का त्याग कर दिया।

उन दिनों मैं अपने भवन के निर्माण कार्य में लगा होने के कारण उनकी तरफ बहुत ज्यादा ध्यान दे पाने में असमर्थ था जिसके कारण मैं उनका उपचार भी नहीं करवा पाया। उस पिलिया के मृत शरीर को घर से तीस-चालीस कदम की दूरी पर स्थित जंगल में छुड़वा दिया। अब मेरे पास केवल एक ही पिलिया बची थी। उसे मैं बराबर रोटी डालता रहा। पिछली पिलिया को जब मैंने जंगल में छुड़वाया था उसके बाद केवल एक समय उस बची हुई पिलिया ने रोटी खाई। लेकिन जैसे ही उसे ये अहसास हुआ कि अब वो पूरी तरह अकेली रह गई है उसने भी रोटी खानी बंद कर दी। उसे मैंने पुचकारा, मेरे पड़ोसियों ने पुचकारा मगर उसे रोटी नहीं खानी थी तो नहीं खाई। अंततः वो भी सप्ताह भर निराहार रहने के बाद असार संसार से विदा हो गई।

इस घटना को मैं अब भी याद करता हूं। जब भी उन दोनों पिलियों को याद करता हूं, उनके बीच का भावनात्मक संबंध मुझे आश्चर्य में डाल देता है। इस तरह का संबंध मनुष्यों में भी कम ही दिखाई देता है। जहां एक की मृत्यु के बाद दूसरा सिर्फ इसलिए मृत्यु का वरण कि उसका साथी काल‌ के गाल समा गया है।


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