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PRATAP CHAUHAN

Abstract

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PRATAP CHAUHAN

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समुंदर

समुंदर

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 एक समय था जब मैंने पहली बार समुंदर देखा ।कितना विशाल समुंदर लग रहा था। मानो कि इस समुंदर का कोई अंत नहीं है। अनंत दूरी तक फैला हुआ है समंदर। वह दृश्य बहुत ही रोमांचक था।


 जब मैं गोवा में गया था गर्मियों की छुट्टियों में। मैं आगरा से गोवा घूमने गया। दूसरे दिन शाम को वास्को द गामा रेलवे स्टेशन पर उतरा। वास्को द गामा रेलवे स्टेशन पर मेरे रिश्तेदार वरुणापुरी से मुझे रिसीव करने आए थे। मैं कार द्वारा पहुंचा वरुणापुरी। वह पहाड़ी क्षेत्र है ।

 एक दिन सुबह-सुबह जब मैं वरुणापुरी की सड़कों पर टहल रहा था, तब मेरे से किसी ने कहा वह देखो समुंदर। जब मैंने समुंदर की तरफ देखा तो समझ नहीं आ रहा था कि समुंदर का अंत कहां है। क्योंकि आसमान और समुंदर एक दूसरे में मिले हुए थे।


आसमान भी नीला और समंदर का पानी भी नीले रंग का। काफी देर तक देखने के बाद समुंदर और आसमान के बीच का अंतर महसूस हुआ किया। अब मैं बेचैन था समुंदर के पानी को छूने के लिए, फिर पहाड़ियों से उतरते हुए नीचे सी बीच पर पहुंचा। अर्थात समुंद्र किनारे, यहां पर बहुत सारे मछुआरे मछली पकड़ रहे थे। वह समझ गए यह कोई अजनबी है। उन्होंने कहा आओ समुंदर की लहरों से मिलो। समुंदर की लहरों का संगीत सुनो। फिर क्या था मैं स्विमिंग ट्रंक पहनकर सैलो वॉटर में उतर गया और समुंदर में तैरने का मजा लेने लगा। वह जो मजा आता समुंदर के सैलो वॉटर में तैरने का। वह तो अद्भुत ही नजारा था। उसके बाद से फिर तो कई मौके मिले समुंदर के पानी में तैरने के लिए। क्योंकि मैंने भारतीय नौसेना को ज्वाइन कर लिया था, और कई विदेशी समुंदर भी देखे । वहां के समुंदर के सैलो वॉटर में स्विमिंग की और बहुत ही आनंद उठाया ।



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