PRATAP CHAUHAN

Romance Inspirational

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PRATAP CHAUHAN

Romance Inspirational

प्यार का सफर भाग-2

प्यार का सफर भाग-2

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कुश की आँखों से बिरह के आंसू निकल रहे थे। वो जल्दी से ट्रेन में गया और अपना सामान लेकर वापस आ गया संजना के पास।

संजना:- तुम यहाँ क्यों उतर गये ? अभी तुम्हारी मंजिल नहीं आई है कुश जाओ वापस ट्रेन में ।

कुश :- अब तुम्हारे ही शहर में हम संगीत सीखेंगे ।क्योंकि:-

तुम ही हो संगीत मेरा,

                     तुम ही मेरी मंजिल।

बीच सफर में मिलन हुआ है,

       अब प्रणय मिलन को व्याकुल दिल । ।

दोनों खागा स्टेशन पर भीड़ के बीच में ही गले मिलने लगते हैं। जुदा ना होने के कसमें वादे करते हैं । दोनों एक साथ रहने का वादा करते हुए शहर की गलियों में अपना आशियाना ढूंढ़ते हैं ।

जब गलियों से गुजरते हुए वो एक होटल के नजदीक पहुंचे तो कुश ने कहा आज हम दोनों इस होटल में रुकते हैं। बिना किसी अवरोध के ढेर सारी बात करेंगे।

संजना ने मुस्कराते हुए कहा, अरे बुद्धू यह खागा मेरा शहर है। यहाँ मेरा अपना घर है। तुमको होटल में रुकने की कोई जरूरत नहीं है। मैं तो तुमको अपने शहर की गलियां दिखा रही थी। इसी बहाने थोड़ा चलना हो जाता है जो हमारे फिजिक के लिये लाभप्रद है। चलो अब रिक्शा करते हैं और घर चलते हैं ।

कुश :- अरे वाह बहुत अच्छा शहर है तुम्हारा। वैसे मुझे लगा था कि तुम यहाँ किसी काम से आई हो। तुम अकेली थी इसलिये मैं भी ट्रेन से उतर गया।

संजना ने नाराजगी भरे अंदाज में कहा, तो क्या तुम मुझे सदियों पहले वाली अबला समझते हो ? मैं कराटे मास्टर हूँ तुम जैसों को तो कई बार गुंडों के चंगुल से छुड़ाया है। इसलिए मेरी फिक्र छोड़ो अपनी फिक्र करो। तुम मुझ पर दया करके मेरे साथ चल रहे हो। यह प्यार का नाटक था?

कुश :- अरे यार तुम भी ना, क्या बोले जा रही हो। मेरा यह मतलब बिल्कुल भी नहीं था कि तुम अकेली हो या अबला नारी हो। तुम बहुत कॉन्फिडेंट यह बिल्कुल सच है। मगर तुम्हारा साथ दे सकूँ तुम अपने को लॉनली फील ना करो इसलिये मैं तुमको कम्पनी देने के लिये ट्रेन से उतरा था। मतलब वो कहाबत है ना कि एक से दो भले ।

संजना :- ठीक है-ठीक है, अब मुझे मस्का मत लगाओ। चलो अब उस रिक्शे वाले को बुलाओ ।

कुश रिक्शा लेकर आता है दोनों रिक्शे में बैठते है। संजना कुश को शहर दिखाते हुए अपने घर ले आती है। घर के बाहर गेट पर दोनों खड़े होते हैं। संजना डोर बेल बजाती है। कुछ देर बाद संजना के पापा गेट खोलते हैं । जब वो कुश को संजना के साथ देखते हैं तो पूछने लगते हैं- संजना, यह तुम किसको साथ लायी हो? कौन है ये महाशय ?

संजना कुछ बोलती उससे पहले है कुश ने कहा:- हेलो सर, नमस्कार! मैं एक विद्यार्थी हूँ। मेरा नाम कुश है। मुझे संगीत का बहुत शौक है ।

संजना के पापा कुश के नमस्कार का जबाब देते हुये बोले :- खुश रहो बेटा जीते रहो। अच्छी बात है तुम विद्यार्थी हो। तुमको संगीत का शौक यह भी अच्छी बात है, लेकिन यहाँ मेरे घर पर संगीत नहीं सिखाया जाता है फिर यहाँ आने का मकसद क्या है ? मैं तो एक स्टेशन मास्टर हूँ मेरा नाम पन्ना लाल है। मुझे तो पूरा शहर जानता है। तुम कैसे कंफ्यूज हो गये।

संजना अपने पापा की बात को बीच में रोकते हुये बोली:- सुनो पापा पहले हम लोग घर के अंदर चलते हैं फिर आराम से आपको पूरी कहानी बताएँगे

पन्ना लाल दोनों को के साथ ड्राइंग रूम में आते हैं। तभी संजना की माँ शोभा देवी भी ड्राइंग रूम में आ जाती हैं । कुश संजना की माँ को नमस्कार करता है और पैर छूता है।

शोभा देवी ने संजना की तरफ आँखों से इशारा करते हुये कुश के बारे में जानना चाहा।

संजना ने कहा अब आप लोग सुनो यह कुश है। हम दोनों की मुलाकात आज ही ट्रेन में हुई है। यह तो प्रयागराज जा रहा था मगर मुझे अकेला स्टेशन पर उतरते देख खुद भी उतर गया। इसकी सोच अच्छी लगी इसलिये मैंने दोस्ती कर ली है। अगर आप दोनों को कोई एतराज ना हो तो कुश आज हमारे घर पर ही रुकेगा। कल यह चला जायेगा।

पन्ना लाल :- हाँ बेटा कोई बात नहीं, तुम दोस्त हो कुश की और दोस्त का ख्याल रखना चाहिये। बहुत बढ़िया बेटा। कुश बेटा तुमने कहा कि तुमको संगीत का शौक है कोई गीत सुनाओ ना फिर

कुश मुस्कराते हुये बोला:- क्यों नहीं सर, जरूर ! कुश गीत गाता है....!

हे हे हे....हे हे हे

चाहता हूँ  तुम्हें मगर,

इजहार  नहीं  करता

      तेरा दिल ना दुखा ओ सनम,

       मैं तो लफ्जों से  हूँ  डरता

जिन्दा रहता हूँ मगर,

उनकी यादों के सहारे।

          कश्ती में  हम  दो  दिल हैं,

          जो   ढूंढ   रहे   हैं  किनारे।

आ  जाओ  सनम अब,

पतवार सम्भालो ।

            मुझको आदत है तुम्हारी ,

            मंझधार में नैय्या को बचा लो ।


वाह भाई वाह क्या बात है !बहुत खूब बेटा। बहुत ही अच्छा अंदाज है, सुर लेकर गाते हो। अच्छी रियाज की है ।

पन्ना लाल तारीफ किये जा रहे थे, तब संजना ने अपने पापा को बताया कि कुश प्रयागराज किसी उस्ताद से रियाज की प्रैक्टिस करने जा रहा है।

यह सुनकर पन्ना लाल ने कुश से पूछा, कौन उस्ताद हैं ?

कुश ने बताया कि वह प्रयागराज जाकर "उस्ताद रियाज कैर खां" से फ़िल्मी गानों की तर्ज रियाज की तालीम लेगा।

पन्नालाल:- कैर खां तो यहीं पर हमरे शहर मे हमारा तो पुराना याराना है उनसे रुको अभी बात कराते हैं तुम्हारी लाओ फोन दो अपना

कुश अपना फ़ोन पन्ना लाल को देता है।

पन्ना लाल ने कैर खां को फोन लगाया।

फोन रिसीव होते ही पन्ना लाल ने "हेलो! कहा

तो उधर से आवाज आई " कौन जनाब बोल रहे "?

पन्ना लाल :- नमस्कार जनाब, मैं एस. एम. पन्ना लाल बोल रहा हूँ ।

कैर खां- अच्छा अच्छा स्टेशन मास्टर साब,नमस्कार नमस्कार जी "सलाम वालेगुम"

हाँ जनाब कैसे हो? बहुत दिनों बाद कैसे याद आई मेरी? बोलिये जनाब!

पन्ना लाल:- जनाब आपका एक चेला मेरे घर पर आया है। आज रात को आप भी यहीं मेरे घर पर रुकिए।

कैर खां :- ठीक है जनाब, जरूर आऊंगा ।

रात को 8 बजे कैर खां पन्ना लाल के आये जब वो कुश से मिले, कुश ने बहुत गाने सुनाये। उसके गाने सुनकर खां साब बहुत खुश हुये। जब उनको पता चला कि आज ही ट्रेन में संजना की मुलाकात कुश से अकस्मात हुई है । तो उन्होंने पन्ना लाल से कहा:- ये दो प्रेमी हैं। इनको ऊपर वाले ने अपने विधान के अनुसार मिलाया है। इनकी शादी हो जाये यही उचित है ।

पन्ना लाल:- जी उस्ताद, आप कह रहे हैं तो संजना की शादी कुश से होगी । कुश सीधा-साधा लड़का है। होनहार है।

दो महीने बाद दोनों की शादी हो गयीं और दोनों प्रयागराज जाकर एकसाथ प्यार का आशियाना बनाकर रहने लगे।


      


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