Anusha Dixit

Abstract

4.8  

Anusha Dixit

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सिर्फ मेरी माँ भाग -1

सिर्फ मेरी माँ भाग -1

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हेलो उर्मिला दी, नमस्ते।

हाँ बोलो रचित कैसे हो ? माँ, रेनू और बच्चे सब ठीक हैं।

हाँ दी,सब ठीक हैं। वो दी मुझे आपसे माँ के बारे में ही बात करनी थी।

क्यों क्या हुआ माँ को, सब ठीक तो है।

हाँ सब सही है लेकिन दी, मैं अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता।तुम तो जानती हो माँ की बीमारी बढ़ती जा रही है और ......

और क्या रचित,तू ये कहना चाहता है माँ अब बोझ बन चुकी है तेरे लिए।कैसी बात कर रहा है।

कैसी बात का क्या मतलब क्या तुम नहीं जानती माँ के बारे में,एक बात को बार बार समझाना पड़ता है याद दिलाना पड़ता है, कभी कुछ गिरा देती हैं, कभी चीज़े भूल जाती हैं।एक चीज़ को बार बार पूछती हैं।खुद से नहा भी नहीं पाती।बच्चों जैसी जिद करती हैं रात को उन्हें नींद नहीं आती। बच्चे और रेनू कितने परेशान हो जाते हैं न उनकी पढ़ाई सही से हो रही है न में ही काम में ध्यान दे पा रहा हूँ।और रेनू भी तो कितना थक जाती है।

तो फिर क्या चाहते हो?उर्मिला ने सपाट स्वर में कहा।

दी ,अब में उन्हें अपने पास नहीं रख सकता।मैं क्या सोच रहा था ,उन्हें किसी वृद्धाश्रम या मेन्टल असायलम में भर्ती करवा देते हैं।

रचित तेरी हिम्मत भी कैसे हुई ये सब कहने की,तू माँ को जीते जी मारना चाहता है।इस हालत में तू उन्हें अकेले छोड़ेगा क्योंकि अब तू उन्हें निभा नहीं सकता।मेरी रेनू से बात करा।

दी,बी प्रैक्टिकल।और वैसे भी ये हम दोनों का फैसला है।

फैसला !जब गाँव का मकान बिकना था तो मैंने तुम्हारे सामने एक शर्त रखी थी कि मैं इन कागजों पर तभी सिग्नेचर करूँगी जब तुम माँ को हमेशा खुश रखोगे।तब तो तुमने और रेनू ने बड़ी जल्दी हाँ बोला था और मकान बिकने के पूरे 30 लाख रुपए भी ले लिए थे,पर आज तुम अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हट रहे हो।तुम कितने लालची हो रचित।

हाँ,तो तुम्हारी शादी भी फ्री में नही हो गयी थी।और उसके बाद के भी कितने खर्चे,इतनी ही चिंता है माँ की तो तुम क्यों नही रख लेती उन्हें।

रचित अब तू अपनी हद पार कर रहा है।

नहीं दी में सच्चाई बोल रहा हूँ, जो तुम्हें कड़वी लग रही है।

रचित तू.......तभी उर्मिला को अपने पति सुबोध की गाड़ी का हॉर्न सुनाई दिया।वो उनके सामने कोई तमाशा नहीं चाहती थी।इसलिए उसने फ़ोन काट दिया। उर्मिला की आँखों में आसूँ आ गए।

उसके पति सुबोध एक जाने माने डॉक्टर और समाज सेवी भी थे।न जाने कितने बूढ़े और बच्चों की जिंदगी उन्होंने संभाली थी।उर्मिला को लगा वो उसकी माँ को भी इस बड़े घर में आश्रय दे ही देंगे।आज रात उसे नींद न आई और कल उसने अपनी माँ को घर लाने के बारे में सुबोध को बताने का फैसला किया।

गुड मॉर्निंग, सुबोध।

गुड मॉर्निंग और क्या है ब्रेकफास्ट में जल्दी लाओ।

ये लो सुबोध और उर्मिला ब्रेकफास्ट सर्वे करने लगी।साथ ही साथ अपनी बात को कहने का प्रत्यन करते हुए बोली।सुबोध मैं माँ को घर लाना चाहती हूँ।

क्यों क्या हुआ,अचानक से।रचित है तो उनकी देखभाल के लिए।

रचित है लेकिन मैं भी तो उनकी बेटी हूँ मेरे भी तो कुछ फ़र्ज़ है उनके लिए।

फ़र्ज़ हैं ,लेकिन मकान के तीस लाख लेते वक्त तो उसने बड़ी जल्दी सर हिलाया था उसने।अब क्या हुआ?

नहीं उठाना चाहता वो जिम्मेदारी, वो उन्हें पागल खाने भेजना चाहता है।मैं उन्हें ऐसे अकेले नहीं छोड़ सकती।

लेकिन उर्मिला तुम्हे भी बैंक जाना होता है,रिया और राहुल का भी ध्यान रखना होता है,अब एक और जिम्मेदारी।कैसे करोगी?

सुबोध मम्मी का भी ख्याल रखा था न,उन्हें भी तो पैरालिसिस हुआ था।

तुम्हें समझाना बेकार है ,ठीक है जो करना है करो और सुबोध झल्लाते हुए अधूरा नाश्ता छोड़कर अपने क्लिनिक चला गया।

उर्मिला समझ न पा रही थी, उसके पति सच में बहुत अच्छे इंसान हैं या ये सब दिखावा है। उर्मिला ने अपने बच्चों रिया और राहुल को कॉलेज जाने के लिए उठाया। रिया 19 साल की थी और राहुल 21 साल का।खुद भी वो बैंक जाने के लिए तैयार होने लगी, वो बैंक में पी.ओ. के पद पर कार्यरत थी । बैंक पहुँच कर भी उसका मन किसी काम में नहीं लग रहा था। तभी उसकी नज़र ट्रांसफर ऑर्डर पर पढ़ी,जो लखनऊ के किसी बैंक में होना था।मेरठ से लखनऊ जाना उसके लिए आसान नहीं था।अगले 1 महीने में उसे लखनऊ जाना था।ये देख कर वो बहुत परेशान हो गयी।सुबोध, बच्चे और अब माँ भी कैसे संभालेगी वो ये सब।वो हर हालत में ये ट्रांसफर रुकवाना चाहती थी।इसके लिए उसने अपने मैनेजर से बात भी की।लेकिन उन्होंने भी कोई संतोषजनक जवाब नही मिला।बैंक का काम खत्म करके वो अपनी माँ को लेने रात की ट्रेन से दिल्ली रवाना हो गयी।

{क्रमशः भाग दो में पढ़ें}


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