Anusha Dixit

Tragedy Others

4.0  

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सिर्फ मेरी माँ - भाग 3

सिर्फ मेरी माँ - भाग 3

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माँ को लेकर उर्मिला लगभग दोपहर को घर पहुँची, अनजान जगह देखकर माँ कुछ विचलित सी हो गयी।

नहीं मुझे नहीं जाना, नहीं नहीं मुझे मेरे घर ले चलो। बहुत ही घबराए स्वर में माँ बोल उठी।

सुनो माँ शांत हो जाओ, ये तुम्हारा ही घर है। उर्मिला उन्हें समझाते हुए बोली।

नहीं ये हमारा घर नहीं तू झूठ बोल रही है, इसमें अमरूद का पेड़ कहाँ है और वो वो रमा गाय भी तो नहीं है। मुझे अपने घर जाना है। माँ ने तो एक ही रट पकड़ ली।

उर्मिला उन्हें शांत करने की कोशिश कर ही रही थी। तभी रिया चिल्लाते हुए बाहर निकली "कौन है पढ़ने भी नहीं देते।"

देखो रिया नानी आयी हैं, नमस्ते करो इनसे।

इनसे नमस्ते, ये तो मुझे पहचानती भी नहीं। इनसे नमस्ते करना न करना बराबर है।

कैसे बात करती हो रिया बड़ों से, क्या यही सिखाया है मैंने तुम्हें आजतक।

इतने में राहुल भी अपने कमरे से बाहर आ गया और हँसते हुए बोला "मम्मी, रिया क्या गलत कह रही है। नानी को तो अपना ही होश नहीं है हमारी क्या सुनेंगी।" और ये कहते हुए वहाँ से चला गया।

उर्मिला को बहुत बुरा लग रहा था। उसके बच्चे इतने असंवेदनशील कैसे हो सकते हैं, उसका सिखाया हुआ सब बेकार है। ये तो अपने से बड़ों को सम्मान देना ही नहीं जानते। अगर आज उसकी माँ अपने होश में नहीं है तो क्या उसे ऐसे ट्रीट किया जाएगा। कभी ये बच्चे अपने नानी नाना से मिलने के लिए कितने आतुर रहते थे और आज वो इनके पास दो चार पल बैठ भी नहीं सकते क्यों, क्योंकि आज वो पहले जैसी स्थिति में नहीं हैं।

माँ अब पहले से शांत हो चुकी थी। उर्मिला ने घर की नौकरानी को माँ के लिए नियम कायदे समझाए। माँ को नहलाया और खाना खिलाकर सुला दिया।

शाम को सुबोध घर पर आ गया। उर्मिला ने बताया कि मैं माँ को घर ले आयी हूँ। सुबोध ने ये सुना और बिना उत्तर दिए अपने कमरे में चला गया। सुबोध के व्यवहार से उर्मिला इतना तो समझ चुकी थी कि माँ को यहाँ लाना इन्हें अच्छा नहीं लग रहा।

आज माँ को यहाँ एक दिन हो चुका था वो थोड़ी थोड़ी यहाँ की अभ्यस्थ भी हो गयी थी। लेकिन घर के लोग उन्हें अपना नहीं पा रहे थे। सुबह को उर्मिला ने सब के लिए ब्रेकफास्ट तैयार किया और माँ के लिए मूंग की दाल बनाई। दोपहर के खाने के लिए बाई को निर्देश दिए और माँ का ख्याल रखने का बोल कर बैंक चली गयी। पर बैंक में भी उर्मिला को केवल माँ की चिंता सता रही थी।


ऐसा नहीं था कि उर्मिला ऐसे किसी बुजुर्ग का ख्याल पहली बार रख रही थी, इससे पहले भी उसने अपनी सासू माँ को भी संभाला था जब उन्हें पैरालिसिस का अटैक पड़ा था लेकिन तब सुबोध उसका पूरा साथ देता था पूरी जिम्मेदारी के साथ, लेकिन आज उर्मिला खुद को अकेला पा रही थी। न पति न बच्चे कोई उसका जरा सा भी हाथ बंटाने को तैयार नहीं था। 

तभी उसकी नज़र उस ट्रांसफर ऑर्डर पर गयी जिसका कोई समाधान उसे निकलता हुआ नहीं दिख रहा था। वो सब कुछ भूलकर अपना काम करने लगी। पाँच दिन ठीकठाक बीत गए एक दिन उर्मिला बैंक में ही थी। तभी घर से बाई का फ़ोन आया वो घबराई सी बोली" मेमसाब माँ जी मिल नहीं रही"

"मिल नहीं रहीं क्या मतलब है, कहाँ गयीं सुबह तो ठीक छोड़ कर आई थी।"

"मेमसाब आप जल्दी आ जाओ।"

"क्या तुमने साहब को फ़ोन किया?"

हाँ, किया था लेकिन उन्होंने कहा वो नहीं आ सकते।

"अच्छा ठीक है, मैं अभी आती हूँ।" इतना कहकर बैंक मैनेजर से बोल कर उर्मिला जल्दी अपनी कार से घर को रवाना हुई। रास्ते में उसे बहुत बुरे बुरे खयाल आया रहे थे, कहाँ गयीं होंगी माँ, कहाँ भटक रही होंगी, कहीं कुछ हो न जाये?

वो रास्ते मे इधर उधर देखती भी जा रही थी, तभी उसे एक महिला नजर आयी जो मेन रोड पर गाड़ियों के बीच हकबकाई सी खड़ी थी और उसने अपने हाथों से अपने कान बन्द कर लिए थे क्योंकि चारों तरफ से हॉर्न बज रहे थे। उर्मिला तुरंत अपनी गाड़ी से उतरी और देखा तो वो उसकी माँ ही थी। उर्मिला ने तुरंत उन्हें अपनी कार में बैठाया और घर की तरफ रवाना हो गयी।

घर जाकर बाई से पता चला कि रिया और माँ के बीच कुछ बात हो गयी थी जिसकी वजह से रिया ने माँ को कुछ कह दिया और माँ घर छोड़कर चल पड़ी।

उर्मिला को रिया पर बहुत गुस्सा आया और उसने रिया से पूछा तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई माँ से ऐसे बात करने की?

आप मुझे क्यों डाँट रही हो जरा ये भी तो सुनो इन्होंने क्या किया है?

मतलब तुम कहना क्या चाहती हो, रिया?

मम्मा इन्होंने मेरे सारे लिपिस्टिक खराब कर दिए, इन्होंने उनसे वाल पर ड्राइंग बनाई।

तो क्या हो गया रिया? तुम जानती हो उनकी तबियत ठीक नहीं है। उर्मिला ने परेशान होते हुए कहा।

तबियत ठीक नहीं है तो ये अपने रूम से बाहर निकलती ही क्यों हैं?

रिया ये घर उनका भी है वो जहाँ चाहे जा सकती हैं। उर्मिला ने लगभग चिल्लाते हुए कहा।

नहीं, मम्मा ये घर इनका नहीं ये हमारा घर है यहाँ ये सिर्फ मेहमान हैं।

रिया.......एक थप्पड़ पड़ेगा और ये कहते हुए उर्मिला ने हाथ उठा लिया।

रिया सहम गयी और रोते हुए अपने कमरे में चली गयी। उर्मिला समझ नहीं पा रही थी कैसे सामंजस्य बिठाऊँ इन सबके बीच।

क्रमशः भाग 4 में पढ़िए...


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