सच या सपना- भाग 2
सच या सपना- भाग 2


वो बात जो आशुतोष आसानी से याद नहीं करना चाहता था।
तभी उसके सामने पीठ किये हुए एक लड़की खड़ी थी,जैसे ही उसने मुड़ कर देखा आशुतोष डर कर पसीने पसीने होकर पीछे को गिर गया और बोला 'तुम'।
'हाँ ,मैं सानवी लड़की ने जबाव दिया। पर तुम तो आज से छब्बीस साल पहले मर गयी थी न। आशुतोष ने भययुक्त स्वर में कहा। हम जैसों को चैन की मौत कहाँ,और ये कर सानवी जोर से हँस दी।
देखो सानवी जो कुछ हुआ उसके लिए मुझे माफ़ करदो। उस दिन में शराब के नशे में था। मुझे पीकर बाइक नहीं चलानी चाहिए थी।
लेकिन मेरा क्या,मैं तो मर गयी और साथ में जीते जी मर गयी मेरी माँ सानवी ने क्रोध में कहा।
(छब्बीस साल पहले)
आशुतोष मनाली बाइक से घूमने निकल था। ढावे पर रुककर उसने शराब पी,उसे यकीन था कि वो इस हालत में बाइक चला लेगा। रात होने लगी उसे कम दिखाई देने लगा वो अपनी ही धुन में चलने लगा सामने डेड एन्ड का बोर्ड लगा था लेकिन उसे वो दिखाई नहीं दिया जैसे ही उसे लगा कि आगे रास्ता नही है उसने झटके से अपनी बाइक मोड़नी चाही की सामने एक 23-24 साल की लड़की उससे टकरा कर गिर गयी। टक्कर इतनी जोर दार थी कि लड़की का सर पत्थर से टकरा गया और उसके सर से खून निकलना चालू हो गया। आशुतोष का सारा नशा काफ़ूर हो गया था,वो भी गिर गया था हाथ में काफी चोट आई। लेकिन उसने खुद को संभाला और लड़की के पास गया। उसकी हालत देखकर वो घबरा गया और वहाँ से भागने की कोशिश करने लगा। तभी लड़की की आवाज आयी सुनो,रुको। आशुतोष रुक गया। लड़की कराहते हुए बोली। देखो मेरी माँ मर जाएगी अगर उसे ये दवाई नहीं मिली तो उसे दमा की बीमारी है। मेरे अलावा उसका कोई है भी नहीं। आशुतोष को लगा उसे इस लड़की को हॉस्पिटल ले जाना चाहिये। वो उसे उठाने की कोशिश करने लगा। लेकिन लड़की बोली उसके पास ज्यादा वक्त नहीं है,तुम ये दवा मेरी माँ तक पहुँचा दो ,पता मेरे पर्स में है। और सुनो मेरे बाद मेरी माँ का कोई नहीं होगा तुम्हें उनकी मदद करनी होगी। इतना कहने के बाद वो मर गयी। आशुतोष किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहता था,लेकिन उसे ऐसा करना सही नहीं लग रहा था। उसने सोच लिया कि अब चाहें जो हो उसे उस लड़की का कहा पूरा करना होगा। उसने उसका पर्स टटोला। अंदर एक डायरी मिली जिसमें उस लड़की का नाम पता लिखा था। उस लड़की का नाम सानवी था वो एक स्कूल में टीचर थी। आशुतोष उस लिखे पते पर जैसे तैसे पहुंचा उस जगह से वो ज्यादा दूर नहीं था। आशुतोष को वो मकान मिल गया। दरवाजा खट खटाया तो वो खुद से ही खुल गया अंदर एक अंधी औरत थी जो बीमार भी थी। सानवी तू आगयी बेटा बहुत देर लगा दी। आशुतोष की समझ नहीं आया वो क्या कहे बोला ' माँ जी मैं सानवी मैडम के स्कूल का एक कर्मचारी हूँ, वो स्कूल में एक बहुत जरूरी काम आ गया था तो सानवी मैडम को स्कूल जाना पड़ा। रात में कौन सा काम बेटा ?सानवी की माँ ने प्रश्न किया। 'अरे माँ जी वो जल्द ही आ जाएंगी दरअसल बात ये है कि होस्टल में एक बच्चे की तबियत बहुत खराब हो गयी है तो सानवी मैडम रास्ते में मिल गयी इसलिए वो रास्ते से ही स्कूल चली गईं। और मुझे आपके पास भेज दिया। आशुतोष ने सूखे गले से झूठ बोल दिया। '
अच्छा बेटा तो कब तक आ जायेगी?सानवी की माँ ने पूछा।
ज
ी वो,वो आधे एक घंटे में आ जायेंगी। इतना कहकर आशुतोष वहाँ से चला गया। उसे अपने किये का बहुत पछतावा था,उससे कैसे इतनी बड़ी गलती हो गयी। उसने किसी की जान लेली है। वो एक पत्थर पर जाकर बैठ गया। और डर तथा पछतावे के कारण रोने लगा। उसका ध्यान अपने हाथ की ओर गया जिसमें काफी चोट आयी थी। उसने बाइक में रखी फर्स्ट एड किट निकाली, चोट पर डेटोल लगाई खुद से ड्रेसिंग की और चल पड़ा। वहाँ उसका एक दोस्त रहता था वो उसके घर गया दोस्त उसकी हालत देखकर डर गया। ये क्या हुआ है? अरे कुछ नहीं यार कल रास्ते में एक पत्थर पड़ा था दिखाई नहीं दिया और मेरा एक्सीडेंट हो गया। कुछ दिन तक वो वहीं रहा उसे रात में नींद नहीं आती थी। लेकिन पुलिस उस तक कभी पहुंच नहीं पाई। वो स्वस्थ हो गया था उसने अपनी बाइक को खोलकर अलग अलग उसके पुर्जे बेच दिये। और वो चैप्टर वहीं क्लोज़ हो गया। वो वापस दिल्ली आ गया उसने कभी इस घटना का जिक्र किसी से नहीं किया। थोड़े दिन बाद बैंक में जॉब भी लग गयी। और उसने अनजान पते से सानवी की माँ को अपनी तनख्वाह का 20% हिस्सा अनजान पते से हर महीना भेजना शुरू कर दिया।
(आज का दिन)
देखो सानवी मैंने तुम्हारी माँ के लिए हर महीने पैसों की मदद की है आशुतोष ने कहा। 'पैसों की मदद की तो कौन सा एहसान किया तुम्हें तो जेल में होना चाहिए था',सानवी ने गुस्से में कहा। अगर तुम ये ही चाहती हो तो में तैयार हूँ मैं अपना गुनाह कबूल कर लूँगा। आशुतोष ने पछतावे के साथ कहा। 'तुम नहीं जानते 26 साल से मेरी आत्मा ऐसे ही भटक रही है, मैं रोज मरती हूँ। मेरी ये दशा तुम्हारी वजह से हुई है। मेरी माँ आज बिल्कुल बेसहारा हो चुकी है जो रिश्तेदार उनके पास रहते थे उन्होंने भी उन्हें छोड़ दिया है,पागल सी हो गयी है वो। जब तक वो परेशान रहेगी मैं भी ऐसे ही भटकती रहूँगी। सानवी की आत्मा ने दुखी होकर कहा। आशुतोष ने कहा,जो हुआ मैं उसे बदल तो नहीं सकता लेकिन तुम्हारी माँ को अपने साथ ले जा सकता हूँ मैं मैं.... वादा करता हूँ मै मरते दम तक उनकी सेवा करूँगा। सानवी की आत्मा बोली 'वादा करो', आशुतोष ने हाँ में सर हिलाया। तभी सानवी की आत्मा वहाँ से गायब हो गयी। आशुतोष ने खुद को एक पहाड़ी पर बेहोश से पाया एकबारगी को तो वो समझ नहीं पाया ये 'सच था या सपना'।
वो उठा और फिर एक बार उस पते पर गया। देखा तो वहां एक बहुत बूढ़ी औरत थी जो ढेर सारी कपड़े की कतरनों के बीच बैठी थी। आशुतोष उसके पास गया और बोला माँ जी। बुढ़िया उसकी आवाज पहचान गयी और बोली 'कहाँ हैं मेरी बेटी तुमने कहा था वो थोड़ी देर में आ जाएगी,कहाँ है वो? आशुतोष डर गया तभी एक आदमी आया और बोला 'अरे साहब,पागल औरत है इसकी लड़की जब से मर गयी तब से ये उसकी राह देखती रहती है और ऐसे ही उसके बारे में पूछती रहती है। आशुतोष की आँखों में पछतावे के आँसू आ गए वो बोला 'मैं एक एनजीओ से आया हूँ, जो बूढ़े और बीमार लोगों की सहायता करता है। मैं इनको यहाँ से ले जाने आया हूँ। अच्छा, कहकर वो आदमी वहां से चला गया। आशुतोष सानवी की माँ को अपने साथ दिल्ली ले आया वहाँ उसने उनका इलाज कराया। और उन्हें अपने साथ रख लिया। इस उम्मीद के साथ शायद अब सानवी की आत्मा को शान्ति मिल गए और उसे उसके पापों का प्राश्चित।