ढोल
ढोल
आज गंगू के कान ढोल की आवाज से फटे जा रहे थे।वो आज से 35 साल पीछे चला गया जब अपने बेटे सुरेश के जन्म की खुशी में उसने ऐसे ही ढोल बजवाये थे उस दिन खूब खुशियां मनाई थी।ढोल वालों पर उसने 50 50 के नोट उड़ाये थे।उस समय उसे अपनी माँ का खाँसना रंग में भंग सा महसूस हो रहा था।"क्या तुम थोड़ी देर चुप नहीं रह सकतीं।"उसकी माँ ने कितने विनती भरे स्वर में अपनी दवाई के लिए कहा था।जिसको उसने उस ढोल के स्वर में अनसुना कर दिया था।
आज वो अपने ही घर के बाहर मंदिर की सीढ़ियों पर बैठा था,पूरी रात हो गयी थी उसे मंदिर की सीढ़ियों पर"निकलो यहाँ से अब तुम यहाँ नहीं रह सकते,अब मैं तुम्हारा ख़र्चा नहीं उठा सकता।"सुरेश के यह स्वर उसके कानों में बार बार गूँज रहे थे।तभी ढोल वाला उसके पास आया "बाबूजी तुम भी कुछ नेग देदो पोता हुआ है क्या अब भी जेब हल्की न करोगे,जे खुशी के मौके रोज रोज न आते।"
गंगू ने अपना हाथ अपनी जेब की ओर बढ़ाया जिसमे केवल एक 50 का नोट था और 5 का सिक्का पड़ा था।तभी वो उस ढोल वाले ने नोट ये कहते हुए लगभग छीन सा लिया" क्या बाबूजी तुम भी अपने पोते के नाम पर भी तुम कंजूसी कर रहे हो।"गंगू ने उसे कातर दृष्टि से देखा और वहाँ से उठ कर चल दिया।
