मुक्ति-भाग 1
मुक्ति-भाग 1
जमुना की आँख रात में अचानक से ही खुल गयी। जनवरी के महीने में वो पसीने से पूरी तरबर थी। उसकी धड़कने घोड़े की गति सी चल रहीं थी। वो उठी और पास रखे घड़े से पानी पीने की कोशिश करने लगी। अचानक उसके हाथ से बर्तन छूट गया और आवाज से पास में सो रहे उसके पति हरिराम की नींद भी खुल गयी। उसने जमुना से पूछा"क्या हो गया जो आधी रात में उठ के बैठ गयी, औऱ इत्ती घबराई क्यों है ? जमुना खुद को संभालते हुए बोली"वो वो मैंने बहुत बुरा सपना देखा"। "अरे ऐसा क्या देख लिया जो मेरी नींद भी हराम करदी" हरिराम झल्लाते हुए बोला। जमुना बोली"मैंने पिताजी को बहुत बुरी हालत में देखा, वो किसी रेगिस्तान में फंस गए हैं उनकी हालत पागलों की तरह हो गयी है वो पानी के लिए तड़प रहे है और जमुना जमुना पुकार रहे हैं। एजी आप मेरी एक बात मानलो मुझे मेरे पिताजी से मिलवाने ले चलो। मेरा मन किसी अनिष्ट की आशंका से बहुत घबरा रहा है। "अच्छा अच्छा अम्मा से बात करता हूँ, अगर वो हाँ कह देंगी तो चलेंगे। "हरिराम ने कहा।
जमुना का वक़्त काटे नहीं काट रहा था उसे रह रह के अपने पिता की याद आ रही थी। कैसे मात्र पांच वर्ष की उम्र में उसकी माँ के मर जाने के बाद उसके पिता ने उसकी परवरिश के लिए दिन रात एक करदी। उन्होंने लोगों के लाख समझाने के बाद भी दूसरा विवाह नहीं किया। " मेरी प्यारी राजकुमारी'"हाँ राजकुमारी ही तो कहते थे वो जमुना को। उसे याद आ रहा था कैसे उसके पिता ने उसके लिए अपने परिवारवालों से वैर ले लिया था। क्योंकि जमुना एक लड़की थी और उसकी दादी उसके पिता की दूसरी शादी कराकर एक पोता चाहती थी।
लेकिन जमुना के पिता ने साफ इंकार कर दिया। समय बीतता गया जमुना बड़ी हुई और उसका विवाह हरिराम से कर दिया गया। ये सास ससुर, पांच ननदों और दो देवरों वाला बड़ा परिवार था। लेकिन जमुना ने कभी किसी को शिकायत का कोई मौका नहीं दिया। वो दिन रात एक करके सबकी सेवा करती रहती। लेकिन विवाह के पांच साल बाद भी उसे संतान की प्राप्ति नहीं हुई थी, जिसका ताना उसकी सास उसे रोज सुबह शाम मार लेती थी।
तभी उसकी सास की आवाज उसके कानों में पड़ी"अरी ओ जमना ओ जमना कहाँ मर गयी, मुझे गरम पानी मिलेगो या ना, या फिर इसके लिए भी तू इंतजार ही कराएगी। अभी लायी माँजी और इसी के साथ जमुना पुरानी यादों से हडबडाकर बाहर निकल आयी। "लीजिये माँजी, धर दे मेरे सर पे जैसे तेरो करम जला बाप तुझे धर गयो मेरे सर पे। दान न दहेज ऊपर से तुझ जैसी नालायक, काम की न काज की दुश्मन अनाज की। सुनले तुझे इस साल और बरदास कर रही हूँ। इसके बाद भी अगर पोते का मुँह न मिला देखन को तो में हरिया की दूसरी सादी करवा दूँगी।
जमुना चुपचाप सर झुकाये सब सुनती रही।
इतने में हरिराम आ गया। "अम्मा में सोच रहा कि अपनी रज्जो के विवाह का निमंत्रण सबको दे आवे। हाँ लल्ला सही है, एक निमंत्रण वीरपुर जाके इसके बाप को भी दे अईये। वो अपनी आंख से देखले की सादी केहवे किसे हैं, उसकी तरह न जो बारात को स्वागत भी ढंग से न कर पाओ। तभी हरिराम को जमुना की रात की बात याद आ गयी। वो हिचकते हुए बोला "क्यों न अम्मा जमुना को भी उसका गाँव दिखा लाऊँ अपने पिताजी से भी मिल लेगी। "तेरा दिमाग तो ठिकाने पर है, दो महीने में तेरी बहन की सादी है और तू इसे घुमाने ले जायेगो। घर को काम कौन करेगो इसको बाप। "अम्मा जी लगभग चीखते हुए बोली। उनकी आवाज से जमुना सहम गयी। उसकी हिम्मत न हुई कुछ भी कहने की।
धीरे धीरे दो महीने बीतने को आये रज्जो की शादी का समय निकट आ गया। सब तैयारियों में लगे थे। जमुना ने भी पूरी जिम्मेदारी संभाल रखी थी । खुद तो उसे खाना खाने का भी समय न मिल पा रहा था। आज रज्जो की लगन लिखी जानी थी। तभी दरवाजे पर ठक ठक हुई। कोई आया था, घर के ही किसी सदस्य ने दरवाजा खोला। पूछा "आप कौन ?"मैं रामपाल हूँ, वीरपुर से आया हूँ। मुझे हरिराम जी से मिलना है। व्यक्ति ने अपना परिचय दिया।
हरिराम आया, "हाँ बताइये"। व्यक्ति ने कहा" जमुना बिटिया के पिताजी की तबियत बहुत खराब है, उनका कुछ नहीं पता, खाना पीना भी लगभग बन्द सा ही हो गया है। दिन रात जमुना जमुना की रट लगाए रहते है। कृपा करके, उसे वीरपुर उसके पिता जी से मिलवा लाएं। हरिराम कुछ कह पाता, इससे पहले अम्मा जी निकल आयी, बोली"ठीक ठीक है, भेज देंगे। "समधी जी से कहना पांच पल्ले मिठाई और दो बोरी अनाज तैयार रखें। "जी, संछिप्त से उत्तर देता हुआ व्यक्ति वहां से चला गया। "देख हरिया अपनी बहुरिया से कुछ भी केहेन की जरूरत न है रज्जो की सादी के बाद देखेंगे। "पर अम्मा वो उसके पिताजी हैं"हरिराम हिचकिचाते हुए बोला। "चुप जो मैंने कह दियो वो कह दियो"अम्माजी गुस्से से बोली। आगे हरिराम कुछ भी न बोल पाया।
आज रज्जो की शादी थी, घर का माहौल बहुत खुशनुमा था लेकिन जमुना के आँसू रुक न रहे थे और उसे हिचकी भी लगातार आये जा रहीं थी। उसकी भी समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है ?
अम्माजी बोली"ऐसी मनहूस सी सूरत क्यों बना रखी है, कुछ चैन से होने देगी या न ?चल मेरे लिए पानी लेके आ कुँए से। जमना चुपचाप वहां से चली गई।
रज्जो की शादी अच्छे से निबट गयी। लगभग दस दिन बाद हरिराम बोला, "चलो वीरपुर चलते हैं। "और अम्माजी , जमुना बोली। उनसे मैंने पूछ लिया है। हरिराम ने कहा।
दोनों वीरपुर की तरफ बैलगाड़ी से चल दिये। जमुना बहुत खुश भी थी और डरी हुई भी। उसे अपने पिता की बहुत चिंता हो रही थी। सुबह की चली हुई पहुँचते पहुँचते उसे शाम हो गयी। उसने घर में प्रवेश किया....... अब दूसरे अंक में पढ़िए।